बहुत वर्ष पहले दीवार फिल्म में अमिताभ बच्चन ने कहा था-मेरे पास मां है। यही नहीं जब मेरी मां इस दुनिया से जल्दी चली गई तो मेरे पास मेरी सासू मां थी और जब अश्विनी जी के पिता की हत्या हो गई, रिश्तेदारों ने सब कुछ छीन लिया था तो अश्विनी जी के पास और उनके भाई के पास एक ताकत, एक विश्वास, एक भक्ति और एक शक्ति के रूप में मां थी जिसके कारण वह जिन्दगी की कठिनाइयों भरे समुद्र को पार करते गए और हर मुश्किल को ललकार कर कहते और अनुभव करवाते गए कि आ मुश्किल मेरा सामना कर, मेरे पास मां है। वाकई में मां के आशीर्वाद, प्यार, दुलार हर समय जिन्दगी में सहारा बनते हैं। कहते हैं जहां ईश्वर भी नहीं पहुंच पाता वहां मां पहुंच जाती है।
पिछले दिनों ऐसी घटनाएं सामने आईं कि दिल दहल गया और आज के कलियुग की समझ आने लगी क्योंकि पिछले 15 वर्षों से वरिष्ठ नागरिकों का काम करते-करते यह तो समझ आ गई कि आज के युग में राम और श्रवण तो हैं परन्तु संख्या में कमी हो रही है। गूगल गुरु से हर चीज मिल जाती है परन्तु संस्कार नहीं मिलते, खोजने से भी नहीं मिलते इसीलिए अपने वरिष्ठ नागरिकों के रियल अनुभवों से किताबें लिखीं-आशीर्वाद, जिन्दगी का सफर, जीवन संध्या, आज और कल, अनुभव और इंग्लिश में ब्लैशिंग्स जो लाखों की संख्या में देश-विदेशों में पढ़ी गईं, सराही गईं क्योंकि इसमें कहानी नहीं जिन्दगी की वह सच्चाइयां हैं जो लोगों के साथ सच में घटित हुईं और बताती हैं कि बच्चों के साथ मां-बाप और मां-बाप के साथ बच्चों को कैसे पेश आना चाहिए। संस्कार क्या हैं, इतने सालों में इतनी मेहनत कर हर बुधवार को बुजुर्गों को 4 पेज समर्पित कर लग रहा था कुछ तो पोजिटिव मूवमेंट शुरू हुई है।
परन्तु पिछले दिनों की घटनाएं-
1. राजकोट में अपनी मां की बीमारी से तंग आकर एक बेटे ने छत से फैंककर मां की ही हत्या कर डाली।
2. बेटे ने अपने माता और पिता को गोरखपुर के गांव में प्रोपर्टी न मिलने के कारण मार डाला।
3. दिल्ली में एक स्कूली छात्र ने अपनी मां और बहन की हत्या बल्ले से कर डाली।
कहने और गिनने को ऐसी हजारों घटनाएं हैं जो हमारी आत्मा को झकझोर डालती हैं। 65 साल की श्रीमती विनोद भाई नाथवानी जयश्री बेन को उसके प्रोफैसर बेटे ने राजकोट में योजनाबद्ध तरीके से मार डाला। वह मां की बीमारी से दु:खी था और उसने कहा कि उसकी मां छत से गिर गई है। सीसीटीवी फुटेज से सब कुछ सामने आ गया। अक्सर हम सुनते हैं कि पूत कपूत हो जाते हैं, माता कुमाता नहीं हो सकती। वाकई अगर उस मां का बेटा बीमार होता तो मां तो उसके लिए जान लुटा देती। यह मां ही है जो खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुलाती है। बच्चों को दांत नहीं होते हैं तो उन्हें मुलायम चीज बनाकर खिलाती है। अंगुली पकड़कर चलना सिखाती है।
वह बच्चे की प्रथम गुरु होती है, फिर उस भगवान रूपी मां के साथ ऐसा सलूक? दिल बहुत भारी है, दु:खी है, व्याकुल है। मैं देशभर के बच्चों को, बेटों व बहुओं को अपील करती हूं कि माता-पिता, दादा-दादी की सेवा करो। इनसे आशीर्वाद ले लो। पिछले दिनों मैं अपने क्लब की सबसे पुरानी सदस्या शांति वोहरा का हाल पूछने गई जिसकी तीनों पीढिय़ां-बहू, पौत्रवधू और पड़पोता सेवा कर रहे थे और वे खुशी से अपनी दादी सास की क्लब की खुशियों के बारे में वर्णन कर रहे थे। यही नहीं क्लब की राजमाता श्रीमती कमला ठुकराल, जिनके बेटे और पति नहीं, उनकी दोनों बेटियां और दोनों दामाद सेवा कर रहे हैं। श्रीमती आदर्श विज की हमारे क्लब की अवार्डिड बैस्ट बहू विधू विज सेवा कर रही हैं और आशीर्वाद ले रही हैं। वाकई ले लो दुआएं मां-बाप की, सर से उतरेगी गठरी पाप की।