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व्हाट्सएप का अकडू रवैया

केन्द्र सरकार ने व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पालिसी को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। केन्द्र ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र देकर आग्रह किया है कि वह व्हाट्सएप को उसकी नई प्राइवेसी पालिसी को लागू करने से रोके क्याेंकि नई नीति की वजह से नागरिकों के डाटा मिसयूज का खतरा बढ़ जाएगा।

केन्द्र सरकार ने व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पालिसी को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। केन्द्र ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र देकर आग्रह किया है कि वह व्हाट्सएप को उसकी नई प्राइवेसी पालिसी को लागू करने से रोके क्याेंकि नई नीति की वजह से नागरिकों के डाटा मिसयूज का खतरा बढ़ जाएगा। व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पालिसी के तहत उपयोगकर्ता या तो इसे स्वीकार कर सकते हंै या एप से बाहर निकल सकते हैं लेकिन वे अपने डाटा को फेसबुक के स्वामित्व वाले या किसी तीसरे एप के साथ साझा करने का विकल्प नहीं चुन सकते। सरकार के बार-बार कहने पर भी व्हाट्सएप का अकडू रवैया सामने आ रहा है। 
व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पालिसी भारतीय द्वारा संरक्षण और गोपनीयता कानूनों में खामियों का ही नतीजा है। दरअसल भारत में अभी तक डाटा संरक्षण पर एक मजबूत व्यवस्था वाला कोई कानून नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा डाटा की सुरक्षा और गोपनीयता की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार को दे रखी है। सरकार के निजी डाटा सुरक्षा संरक्षण विधेयक 2019 लोकसभा में पेश किया हुआ है। इसके कानून बन जाने पर यह डाटा संरक्षण की एक सख्त व्यवस्था बनाएगा, जो व्हाट्सएप जैसी कम्पनियों की सीमा तय करेगा, जो डाटा की उचित सुरक्षा एवं संरक्षण के बिना ही ऐसी गोपनीयता की नीतियां जारी करती है। इसके अलावा सूचना प्रौद्यो​गिकी अधिनियम 2000 भी संसद में पारित होने के लिए लम्बित है। निजता का सवाल अब बहुत बड़ा हो चुका है और दुनिया की महाकाय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा मनमानी कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। ये कम्पनियां न केवल कार्पोरेट घरानों को डाटा बेचती हैं, बल्कि इनसे विज्ञापन लेकर भी दोहरा लाभ कमा रही हैं। यह कम्पनियां दुनिया के देशों के लोगों के ​दिमागों पर भी राज कर रही हैं। लोग इन माध्यमों से जो भी ​निजी सूचनाएं पोस्ट करते हैं, कम्पनियां उन्हें कार्पोरेट घरानों के कारोबार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती हैं। यद्यपि यह कम्पनियां दावा करती हैं कि हम विभिन्न देशों के लिए मुफ्त मंच उपलब्ध करा रही हैं ले​किन लोगों को इस मुफ्त की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही हैं। लोग इन कम्पनियों की मनमानी के लिए उत्पाद बन गए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने अब सरकारों को हिलाने और ​विभिन्न आंदोलनों को आक्रामक बनाने का खेल शुरू कर दिया है। इन प्लेटफार्मों की मनमानी के खिलाफ अब पूरी दुनिया में आवाज उठने लगी है। फ्रांस के बाद आस्ट्रेलिया ने कड़े कदम  उठा लिए हैं। प्रतिरोध की पहल फ्रांस में हुई, जिसमें फ्रांसीसी मीडिया घरानों की खबरें लेने पर कॉपीराइट कानून लागू कर दिया गया है। जिसके बाद गूगल ने फ्रांसीसी मीडिया कम्पनियों को खबरों का भुगतान करना शुरू कर दिया है। आस्ट्रेलिया ने भी इस मुद्दे पर तीखे तेवर दिखाए हैं। यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी बात करके गूगल और फेसबुक पर शिकंजा कसने में सहयोग मांगा था। आस्ट्रेलिया जल्द ही संसद में कानून बनाएगा ताकि स्वदेशी खबरों के दुरुपयोग पर नियंत्रण किया जा सके। भारत में भी ऐसे ही कानूनों की दरकार है। अभी हाल ही में  केन्द्र सरकार ने ओटीपी प्लेटफार्मों और डिजिटल मीडिया को कानून के दायरे में लाने को लेकर नए नियम बनाए हैं, उन्हें भी अदालत में चुनौती दे दी गई है। भारत की समस्या है कि यहां कानून बनाना भी आसान नहीं है। कानूनों पर चिंतन मंथन होने की बजाय लोग कानूनों को अदालत में चुनौती दे देते हैं। दरअसल वर्चुअल समाज का लगातार विस्तार होता जा रहा है। सम्पर्क और संवाद के माध्यम से रूस में वर्चुअलीकरण की प्रक्रिया मूल रूप से सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित है। ऐसे लगता है कि समाज के स्तर पर पूर्व में स्थापित सामाजिक संरचना के समानांतर एक नई वर्चुअल सामाजिक सरंचना निर्मित हो गई है। सर्वर की खराबी के चलते सोशल मीडिया एप व्हाट्सएप 45 मिनट तक ठप्प रही तो हंगामा हो गया। फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्ट्राग्राम के ठप्प पड़ने के बाद लोगों ने विभिन्न हैशटैग के जरिये अपनी परेशानी जाहिर की। दरअसल हम इनके इस कदर गुलाम हो चुके हैं कि हम इनके बिना रह ही नहीं सकते। क्या कानून इन कम्पनियों की मनमानी पर लगाम लगा सकेगा? यह प्रश्न विचारणीय है। दुनिया अब ऐसी हाे गई है-
‘‘एक जमाना था, जब मोबाइल गिरता था,
तो बैटरी बाहर आ जाती थी, अब मोबाइल गिरता है
तो कलेजा, फेफड़े, लिवर, किडनी, सब बाहर आ जाते हैं।’’

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