पिछले कुछ वर्षों से सुप्रीमकोर्ट ने एक के बाद एक महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं जो महिलाओं के हक में थे लेकिन इसके बावजूद समाज में आनर किलिंग के मामले होते रहते हैं। धर्म, गोत्र के मामले में समाज अब भी पुराने दकियानुसी विचारों के जाल में फंसा पड़ा है। हाल ही में दिल्ली में अंकित नाम के युवा फोटोग्राफर की लड़की के परिवार वालों ने निर्मम हत्या कर दी। अंकित का कसूर इतना था कि वह मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था और उससे शादी करना चाहता था। लड़की भी शादी के लिए तैयार थी। अब लड़की का परिवार जेल में है। आरोपियों ने किस सम्मान की खातिर हत्या की वह सम्मान क्या हत्या करने के बाद बच पाया? हत्या करके एक परिवार को तो पूरी जिन्दगी के लिए ऐसा जख्म दिया गया जिसे भरने में समय लगेगा और खुद भी जेल की सजा भुगतेंगे। अंतरजातीय, अंतर धार्मिक या ऐसी शादियां करना आज भी मुश्किल है। खाप पंचायतें बार-बार अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। किसी एक वजह से नहीं बल्कि अपनी बर्बर हरकतों और तुगलकी फरमानों की वजह से। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतें काफी कुख्यात हैं। दुनिया भले ही कितनी क्यों न बदल जाए, चांद पर बस्तियां बनाने का समय भले ही हकीकत में बदल जाए लेकिन ये पंचायतें अपनी बर्बर मानसिकता में ही जीती हैं।
सवाल यह है कि जब भारतीय संविधान में सबको अपने मन मुताबिक जीवन जीने और संबंधों का अधिकार है तो फिर ये पंचायतें कौन होती हैं जो अपनी मनमर्जी चलाने के लिए लोगों के मूलभूत संवैधानिक हकों को छीने? आखिर प्रशासन इन पंचायतों से सख्ती से निपटता क्यों नहीं? दरअसल भारत की राजनीति कुछ इस कदर हावी है कि शासन और प्रशासन दो अलग-अलग चीजें हैं। दो अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। इसे कोई मानने को राजी ही नहीं। क्योंकि प्रशासनिक कामों का श्रेय राजनीतिक पार्टियां लेने से नहीं थकतीं। इसलिए जब सरकारें चाहती हैं कि उनकी प्रशासनिक गतिविधियों को सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टियों के क्रिया-कलाप न समझा जाए तो लोग तैयार नहीं होते। वोट बैंक की सियासत के चलते भी खाप पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है जिन पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है वही खाप पंचायतों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
खाप पंचायतों पर सुप्रीमकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि अगर दो वयस्क शादी करना चाहते हैं तो कोई तीसरा व्यक्ति दखल नहीं दे सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि शादी में न मां-बाप, परिवार समाज और इसके अलावा कोई दखल नहीं दे सकता। शीर्ष अदालत खाप पंचायत और आनर किलिंग के खिलाफ शक्तिवाहिनी संगठन की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि ‘‘हम वही कर सकते हैं कि कौन सी शादी निरस्त है, कर सकते हैं या नहीं, कौन सी शादी अच्छी है या बुरी, अगर दो वयस्क शादी करना चाहें तो कोई उसमें दखल नहीं दे सकता। खाप पंचायत की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि खाप पंचायतें अंतरजातीय, अंतर धार्मिक विवाह के खिलाफ नहीं बल्कि एक ही गोत्र में शादी के खिलाफ है, इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वे समाज के ठेकेदार नहीं बन सकते। याचिका में मांग की गई है कि खाप पंचायतें बहुत ताकतवर हैं और सुप्रीमकोर्ट को इनको रोकने और नियंत्रण में करने के लिए कदम उठाने होंगे।
पिछले महीने इसी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि अंतरजातीय विवाह करने वाले वयस्क पुरुष और स्त्री पर खाप पंचायतों अथवा संगठनों का किसी भी प्रकार का हमला गैर-कानूनी है। शीर्ष अदालत अंतरजातीय, अंतर धार्मिक या ऐसी शादियां करने वाले जोड़ों की सुरक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय पुलिस कमेटी का गठन करने की सोच रही है। यह कमेटी सुनिश्चित करेगी कि ऐसे जोड़े खाप पंचायत, परिजन और रिश्तेदारों द्वारा होने वाली हिंसा से सुरक्षित रह सकें। खाप पंचायतें तो मुहब्बत की दुश्मन साबित हुई हैं। जब तक लोगों की मानसिकता नहीं बदलती तब तक हिंसक घटनाएं होती रहेंगी। पुरानी कहावत है जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी? लोगों को समाज के बदलने के साथ-साथ अपनी सोच बदलनी ही होगी।