सीवरेज में अकाल मौतों का जिम्मेदार कौन ?

एक तरफ भारत चांद के उस हिस्से पर पहुंच चुका है जहां दुनिया के दूसरे देश पहुंचे नहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी देश में गटर साफ करते हुए हर साल करीब 70 लोगों की मौत हो जाती है।
सीवरेज में अकाल मौतों का जिम्मेदार कौन ?
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एक तरफ भारत चांद के उस हिस्से पर पहुंच चुका है जहां दुनिया के दूसरे देश पहुंचे नहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी देश में गटर साफ करते हुए हर साल करीब 70 लोगों की मौत हो जाती है। इंसानों से सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करवाना बंद करने की सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम आज भी जारी है। भारत सरकार ने यह संसद में माना है और बताया है कि इसमें हर साल कई लोगों की जान जा रही है। बीती 22 अक्टूबर को राजस्थान के सीकर जिले के फतेहपुर इलाके में सेप्टिक टैंक की सफाई करने उतरे 3 मजदूरों की दम घुटने से मौत हो गई। टैंक में सफाई के दौरान गंदगी और जहरीली गैस फैलने के कारण उनकी सांसें थम गईं।

गत 9 अक्टूबर को दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके में एक सरकारी इमारत के निर्माण स्थल पर एक भयानक हादसे में 3 मजदूरों की सीवर की गैस से दम घुटने से मौत हो गई। घटना के वक्त साइट पर पुराने सीवर की सफाई का काम चल रहा था। सीवर में उतरे मजदूरों के लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। बीती 1 मई को मजदूर दिवस के दिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रेजीडेंसी के सामने नई सीवर लाइन में सफाई के दौरान जहरीली गैस के चलते दो मजदूरों की मौत हो गई। सीवर लाइन बिछाने वाले ठेकेदार ने बिना सुरक्षा उपकरणों के ही मजदूरों को सफाई के लिए उतार दिया था। बीती 22 अप्रैल को यूपी के मुजफ्फरनगर में सीवर की सफाई कर रहे दो मजदूरों की दम घुटने से दर्दनाक मौत हुई थी।

2 फरवरी 2022 में फरीदाबाद के सेक्टर 14 हुड्डा बाजार में सफाई कर्मियों की मौत हो गई थी। 9 सितम्बर 2022 को दिल्ली के मुंडका बक्करवाला में सीवर की सफाई के दौरान दो मजदूरों की जहरीली गैस से दम घुटने से मौत हो गई थी। 18 सितम्बर 2022 को कानपुर के मालवीय नगर में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 3 मजदूरों की मौत हो गयी थी। इस तरह की मौतों का क्रम लगातार जारी है। वर्ष 2023 में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया है कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब है इस काम को करने में हर साल औसत 67.8 लोग मारे गए। सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं। अकेले 2019 में ही 117 लोगों की मौत हो गई। कोविड-19 महामारी और तालाबंदी से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 लोगों की जान गई। महाराष्ट्र में तस्वीर सबसे ज्यादा खराब है, जहां सीवर की सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में कुल 54 लोग मारे जा चुके हैं। उसके बाद बारी उत्तर प्रदेश की है जहां इन पांच सालों में 46 लोगों की मौत हुई। दिल्ली की स्थिति भी शर्मनाक है क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी और महाराष्ट्र या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के मुकाबले एक छोटा केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद वहां इन पांच सालों में 35 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

ऐसी हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। हर बार कहा जाता है कि यह लापरवाही का मामला है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है। लोग भी अपने घर के सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अनियोजित क्षेत्र से मजदूरों को बुलाते हैं। यदि उनके साथ कोई दुर्घटना होती है, तो उनके आश्रितों को न तो कोई मुआवजा मिलता है, न ही कोताही बरतने वालों को समझा। शायद पुलिस को भी नहीं मालूम कि इस तरह सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।

कानूनन शौचालयों, सीवर लाइन, सेप्टिक टैंक की सफाई किसी इंसान से नहीं करवाई जा सकती। जब तक मशीन ऐसा करने में सक्षम न हो। अधिनियम में सफाई कर्मचारी को 48 किस्म के सुरक्षा संसाधन मुहैया करवाने का प्रावधान किया गया है। जिनमें ब्लोअर के लिए एयर कंप्रेसर, गैस मास्क, ऑक्सीजन सिलेंडर, हाथ के दस्ताने आदि हैं, लेकिन इन्हें कुछ भी मुहैया नहीं कराया जाता है। नियम के तहत इन्हें सीवर लाइन में उतारने की सख्त मनाही है। सिर्फ मशीन से ही सफाई का नियम है। लेकिन, इन्हें आज भी बिना किसी सुरक्षा और उपकरण के गटर में उतारा जा रहा है।

भारत में सीवेज की सफाई एक बड़ी समस्या है। भारत में ड्रेनेज की सफाई के दौरान कई लोग अपनी जान तक गंवा देते हैं। जो न केवल खतरनाक है बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। हालांकि अमेरिका में इस काम को करने का तरीका बिल्कुल अलग है। अमेरिका में सीवेज की सफाई के लिए तकनीक का बड़े स्तर पर उपयोग होता है।

यह तो हम सब जानते हैं कि सीवर-सेप्टिक टैंकों में मीथेन, कार्बनमोनोऑक्साइड जैसी कई जहरीली गैसें होती हैं। ऐसे में इनकी सफाई के लिए किसी इन्सान को उतारना उसे मौत के मुंह में भेजना है। वैसे भी आज जमाना इक्कीसवीं सदी का है। तकनीक का है। हम तकनीक की मदद से चांद और मंगल ग्रह तक पहुंच रहे हैं। ऐसे में सरकारों की नीयत साफ़ हो, इरादे मजबूत हों तो सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई का मशीनीकरण किया जा सकता है। जिन सफाई कर्मियों को सीवर-सेप्टिक में उतारते हैं उन्हें ही इन मशीनों को ओपरेट करने का प्रशिक्षण देकर उनसे मशीनों से सफाई करवाई जा सकती है।

आपको जानकार हैरानी होगी कि गटर-सीवर साफ करने वाले 90 फीसदी कर्मचारी 60 साल की उम्र से पहले ही अपनी जान गंवा देते हैं। देश में गंदगी के बीच रहने और गंदगी साफ करने वाले 8 सफाई कर्मचारियों की मौत हर घंटे होती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि ’यह किस तरह का सरकारी तंत्र है। सरकारी तंत्र में जो लोग बैठे हैं, उनमें क्या संवेदनशीलता नहीं हैं। जो गरीब होने के कारण मजबूरी में विकट परिस्थितियों में ऐसे कठिन काम करते हैं और उनकी जब मौत हो जाती है तो सरकार उन्हें कोई मुआवजा तक नहीं देती।’यह विडंबना ही है कि सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने नौ वर्ष पहले सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किये थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है।

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