हरियाणा राज्य के कथित ताकतवर नेता पराजित हो चुके हैं, कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा ने “चुनाव में व्यापक जीत” हासिल करने की उम्मीद जताई थी लेकिन कांग्रेस ने उस राज्य में हार का सामना किया, जिस पर उसकी उम्मीदें टिकी थीं। दूसरी ओर, बीजेपी ने अपने खोए हुए वैभव का कुछ हिस्सा शायद फिर से हासिल कर लिया। लोकसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले थे क्योंकि “इस बार 400 पार” के नारे के बावजूद बीजेपी बहुमत भी नहीं हासिल कर पाई।
जम्मू-कश्मीर में, लोकतंत्र की जीत हुई है, लोग भारी संख्या में मतदान के लिए निकले, यह स्पष्ट करते हुए कि उन्होंने बंदूक के बजाय मतपत्र को चुना है। पीडीपी के ‘किंगमेकर’ होने के दावे की कमजोरी अब सबके सामने है। इसके अलावा, ‘आजादी’ के समर्थक भी पीछे हटते दिखे।
प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। रशीद को भी, जिन्होंने हाल ही में लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हराकर शानदार जीत हासिल की थी, इस बार हार का सामना करना पड़ा लेकिन यह कहानी केवल दो राज्यों की चुनावी प्रतियोगिता की नहीं है। यह हिरयाणा और जम्मू-कश्मीर में कौन जीता और कौन हारा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
यह मुख्य रूप से उस राष्ट्रीय संदेश के बारे में है जो मतदाताओं ने जून में हुए लोकसभा चुनावों और अक्टूबर में हुए राज्य चुनावों में दिया है। यह उन सब के बारे में भी है, जो राजनीतिक दलों ने सीखे या अनदेखा किए, और उन महत्वपूर्ण निष्कर्षों के बारे में है जो इन चुनावी मुकाबलों से राजनीतिक दलों को मिले हैं। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बीच नहीं है। अगर किसी को इन दोनों में से एक को चुनना हो, तो संभावना है कि लोग देश चलाने के लिए अनुभवी नेता मोदी को ही चुनेंगे। राहुल गांधी ने भले ही भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिये समर्थन जुटाया हो या प्रधानमंत्री मोदी पर निशाने साधे हों लेकिन इसे इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि लोग उन्हें देश का नेतृत्व सौंपने के लिए तैयार हैं। हालांकि यह भी सच है कि मोदी दीर्घकालिक रूप से भारत के लिए सबसे अच्छा विकल्प न हों, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वे देश के लिए तत्कालिक समाधान जरूर हैं।
अब सवाल उठता है कि फिर मतदाताओं ने बीजेपी का पूरा समर्थन क्यों नहीं किया और जनादेश क्यों खंडित हुआ? जवाब साफ है, बीजेपी को बहुमत न मिलना इस बात का संकेत है कि मतदाता बीजेपी के बाहर विकल्पों की तलाश करने को तैयार है और यही उन्होंने किया। उन्होंने इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया, लेकिन बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए उतनी मजबूती से आगे नहीं बढ़े। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि पहले चरण में भारतीय मतदाता एक मजबूत विपक्ष की तलाश में थे, जो सरकार पर आवश्यक अंकुश और संतुलन स्थापित कर सके, जो कई मौकों पर मनमाने ढंग से काम कर रही थी।
इसी कारण “संविधान बचाओ” का आंदोलन सफल रहा। राहुल गांधी ने भारतीय संविधान की पॉकेट बुक भले ही साथ में रखी हो, लेकिन इसे केवल कांग्रेस का अभियान मानना गलत होगा। यह एक संयुक्त विपक्ष का संघर्ष था। साथ ही, यह भी स्पष्ट है कि बीजेपी को एक मजबूत और संयुक्त विपक्ष ही हरा सकता है। लेकिन जब कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होता है, तो कांग्रेस को बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसा कि हरियाणा में हुआ। जम्मू-कश्मीर में भी, कांग्रेस को नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन की वजह से फायदा हुआ। हालांकि, स्थानीय मुद्दों की भी बड़ी भूमिका थी।
कांग्रेस की बात करें तो वह नेतृत्व के अभाव और एक व्यक्ति पर निर्भरता के बीच झूलती रही। जम्मू-कश्मीर में उनके पास कोई जननेता नहीं था जो प्रचार कर सके और न ही वह अपने चुनाव अभियान के दौरान पूरी ताकत झोंक पाई। इसके विपरीत, हरियाणा में उसने हुड्डा पर अत्यधिक निर्भरता की घातक गलती की, जिसके कारण अन्य नेता, जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री और एक दलित नेता कुमारी शैलजा, को दरकिनार कर दिया गया। हुड्डा जाति से जाट हैं। हुड्डा का समर्थन करने से महत्वपूर्ण दलित वोट हाथ से निकल गए।
दूसरी तरफ, बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस को “दलित विरोधी” पार्टी के रूप में प्रचारित किया। बीजेपी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलित नेताओं का अपमान किया है, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित नेता कुमारी शैलजा भी शामिल हैं। कुमारी शैलजा ने चुनाव में सक्रिय रूप से प्रचार नहीं किया था। परेशानियों को और बढ़ाने के लिए केंद्रीय मंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें बीजेपी में शामिल होने को कहा।
एक बार फिर एग्जिट पोल गलत साबित हुए
लोकसभा चुनावों की तरह, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के राज्य चुनाव यह साबित करते हैं कि एग्ज़िट पोल पूरी तरह गलत होते हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान, जब सभी पोल यह मान रहे थे कि बीजेपी को बहुमत मिलना तय है, तो भगवा पार्टी ने 543 में से केवल 240 सीटें जीतीं। सरकार बनाने के लिए उसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा।
हरियाणा में एग्ज़िट पोल्स ने कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत और जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की थी। इसके विपरीत, हरियाणा में बीजेपी ने सत्ता हासिल की और नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर में निर्णायक जीत दर्ज की। इससे क्या पता चलता है? कि भारतीय मतदाता परिपक्व है और अपने विचार प्रकट करने में सावधानी बरतता है। वह जो कहता है और जो करता है, उनमें स्पष्ट अंतर हो सकता है। यह तो एक पहलू है, लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण संदेश यह है कि भारत में लोकतंत्र अब भी जीवित है, भले ही कुछ मुट्ठीभर लोग उसे दबाने की कोशिश कर रहे हों।
- कुमकुम चड्ढा