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गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध क्यों?

गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाये जाने को लेकर यद्यपि बहुत से सवाल खड़े किए जा रहे हैं लेकिन केन्द्र सरकार का यह फैसला सामचिक फैसला है। यद्यपि कुछ किसान संगठनों का मानना है कि निर्यात पर पाबंदी के बाद गेहूं के दाम घटेंगे जिससे उनका नुक्सान हो सकता है।

गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाये जाने को लेकर यद्यपि बहुत से सवाल खड़े किए जा रहे हैं लेकिन केन्द्र सरकार का यह फैसला सामचिक फैसला है। यद्यपि कुछ किसान संगठनों का मानना है कि निर्यात पर पाबंदी के बाद गेहूं के दाम घटेंगे जिससे उनका नुक्सान हो सकता है। रूस, यूक्रेन युद्ध के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं का गंभीर संकट पैदा हो गया है। युद्ध की वजह से वैश्विक बाजार में गेहूं के दाम में 40 फीसदी से अधिक बढ़ौतरी हुई है। गेहूं व जौ के वैश्विक निर्यात में रूस और यूक्रेन की एक तिहाई हिस्सेदारी है लेकिन सप्लाई रुक जाने से दुनियाभर में महंगाई बढ़ी है। भारत भी इस प्रभाव से अछूता नहीं रहा है। वैश्विक बाजार में भारत के गेहूं की मांग काफी बढ़ चुकी है। 
यद्यपि यह भारत के लिए निर्यात बढ़ाने का एक अवसर है लेकिन इस बार भयंकर गर्मी के चलते गेहूं का दाना काफी सिकुड़ गया है। इससे गेहूं उत्पादन कम होने की ​चिंता सता रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार ​निजी खिलाड़ी मैदान में थे और उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत देकर किसानों से गेहूं की खरीद की। निजी व्यापारी गेहूं का स्टाॅक करने लगे थे। बाजार में गेहूं की कीमतें भी बढ़ रही हैं। देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और पड़ोसी तथा अन्य देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाने जैसा कदम उठाना पड़ा। पहले ही जारी किए जा चुके लैटर ऑफ क्रेडिट के तहत गेहूं निर्यात की अनुमति जारी रहेगी। निजी व्यापारी तभी धन का निवेश करते हैं जब उन्हें लाभ की उम्मीद हो। निजी व्यापारियों ने गेहूं की खरीद इसलिए की ताकि वो महंगे दामों पर इस का निर्यात कर सके और लाभ कमा सके। इस साल गेहूं की सरकारी खरीद 50-55 फीसदी कम हुई है और गेहूं के उत्पादन में 6 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। हालांकि कुछ कृषि विशेषज्ञ इस प्रतिशत को ज्यादा बताते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में गेहूं की मांग बढ़ने से व्यापारियों के लिए फायदे का सौदा है लेकिन इससे खुले बाजार में जमाखोरी बढ़ रही थी। सरकार का दावा है कि उसके पास राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के सभी लाभार्थियों को गेहूं की सप्लाई के लिए पर्याप्त स्टॉक है लेकिन यह स्थिति महंगाई का दबाव कम करने में सहायक नहीं है। सवा अरब से ज्यादा लोगों की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं है। गर्मियों में तापमान 49 डिग्री को छू चुका है। ग्लोबल वार्मिंग का असर खेती पर पड़ रहा है और इसका प्रभाव अगली फसल पर भी पड़ सकता है। 
भारतीयों को याद रखना होगा कि 2005-07 के दौरान हम गेहूं का भारी संकट झेल चुके हैं। तब भारत काे 71 लाख मीट्रिक टन गेहूं का आयात करना पड़ा था। भारत ने कई देशों को गेहूं का​ निर्यात भी किया था लेकिन बाद में राशन प्रणाली और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए गेहूं कम पड़ गया था। तब भारत को मजबूर होकर गेहूं आयात करना पड़ा था। कोरोना महामारी के पिछले दो वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री गरीब अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज भी बांटा जा रहा है। इस योजना को सितम्बर तक विस्तार दिया गया है। इससे गेहूं का संकट हो सकता है इसलिए सरकार को निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी। कल्पना कीजिए कि भारत को गेहूं की जरूरत पड़ती है तो युद्ध के चलते उत्पन्न हुई परिस्थितियों में खुद के लिए गेहूं हासिल करना मुश्किल होगा जहां तक महंगाई का सवाल है महंगाई का असर पूरे विश्व में है। तेल और गैस की सप्लाई बाधित होने से भी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। जिसका असर लोगों पर पड़ रहा है। चीन में कोरोना महामारी का असर अब भी देखा जा रहा है। लम्बे अर्से से लॉकडाउन से भी सप्लाई बाधित हुई। रूस, यूक्रेन युद्ध थमने के आसार नजर नहीं आ रहे। ऐसी स्थिति में घरेलू बाजार को संतुलित रखना एक बड़ी चुनौती है। भारत 69 देशों को गेहूं निर्यात कर रहा है और इस वर्ष अभी तक 14.63 लाख मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात किया जा चुका है। भारत विदेशों को गेहूं उपलब्ध कराने की स्थिति में भी था लेकिन अचानक समीकरण और लक्ष्य बिगड़ गये। मौजूदा संकट की मूल वजह मौसम की अप्रत्याशित मार है। किसानों की मांग को देखते हुए सरकार ने 13 फीसदी गेहूं के सिकुड़े दोनों को खरीदने की छूट दी है। गर्मी में गेहूं का दाना तो लगभग मर ही गया है। प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत कई राज्यों में गेहूं की बजाय चावल बांटे जा रहे हैं। भारत में दुनिया की दूसरी सब से बड़ी अबादी रहती है और लोगों की जरूरतों को पूरा करना मोदी सरकार की जिम्मेदारी है। 
घर में नहीं दानें, अम्मा चली भुनाने। ऐसी स्थिति भी देश के लिए अच्छी नहीं होती। अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद ही हम निर्यात करने की सोच सकते हैं। सरकार ने सोच समझकर फैसला किया। महंगाई घटती है तो लोगों को राहत मिलेगी। मानसून सामान्य रहने की स्थिति में पाबंदी हटाई भी जा सकती है। 

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