लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

पटना क्यों डूबा?

यद्यपि मानसून की आधिकारिक रूप से विदाई हो चुकी है, इस बार देश में अच्छी-खासी वर्षा हुई है लेकिन विदा होते मानसून ने राजधानी पटना समेत बिहार के कई इलाकों को बाढ़ की चपेट में ले लिया है।

यद्यपि मानसून की आधिकारिक रूप से विदाई हो चुकी है, इस बार देश में अच्छी-खासी वर्षा हुई है लेकिन विदा होते मानसून ने राजधानी पटना समेत बिहार के कई इलाकों को बाढ़ की चपेट में ले लिया है। अब जाकर कुछ राहत के आसार दिखाई देने लगे हैं। 
राजधानी पटना में तो हालात इस कदर नियंत्रण से बाहर दिखाई दिए कि बिहार का प्रशासन कहीं नजर नहीं आया। जब सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार के सुशासन की सड़कों पर नावें चलने लगीं, पटना के वीआईपी इलाके भी पूरी तरह जलमग्न हो गए तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाथ खड़े कर दिए। इसे प्रकृति का प्रकोप बताया। 
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी तीन दिन बाद परिवार समेत घर से निकाला गया। वह भी बाढ़ के बीच बेबस दिखाई दिए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्षा सामान्य से कहीं अधिक हुई और वर्षा ने कई वर्षों के रिकार्ड तोड़ डाले लेकिन प्रकृति से ज्यादा बाढ़ का संकट काफी हद तक मानव निर्मित भी है। अधिक वर्षा से होने वाले फायदे की इतनी खुशी नहीं, जितना तबाही का गम है। 
उत्सवों के माहौल में मायूसी का वातावरण दिखाई दे रहा है। मौतों का आंकड़ा रोज बढ़ रहा है। लोगों के घर, कीमती सामान बर्बाद हो चुका है। शहर में पानी-पानी है लेकिन पीने को स्वच्छ पानी नहीं है। लोग अपने छोटे-छटे बच्चों को लेकर पानी की तलाश कर रहे हैं। यह संकट मानव निर्मित इसलिए है क्योंकि सरकार विकास के नाम पर शहरों में अंधाधुंध और बिना किसी नियोजन के विकास होने देती है। 
महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक में संकरी गलियों में ऊंची इमारतें नजर आती हैं। शहरी नियोजन में जल निकासी की व्यवस्था सबसे अहम होती है। यदि जल निकासी की उचित व्यवस्था ही नहीं है तो फिर बाढ़ का आना स्वाभाविक है। सवाल यह है कि राजधानी पटना शहर के डूबने के क्या कारण हैं। कुछ वर्ष पहले त​मिलनाडु की राजधानी चेन्नई में भारी वर्षा के चलते ऐसे ही हालात पैदा हो गए थे। अनियोजित  और अनियमित विकास का सवाल तब भी उठा था। 
पटना के घनी आबादी वाले इलाकों में जल निकासी की व्यवस्था पहले ही असंतोषजनक थी, तो फिर बाढ़ ही आनी थी। सवाल यह भी है कि क्या स्थानीय प्रशासन ने सीवरेज की सफाई संतोषजनक ढंग से करवाई थी?अगर करवाई होती तो ऐसी नौबत आती ही नहीं। वर्षा ऋतु से पहले आमतौर पर स्थानीय नगर निकाय द्वारा सीवरेज और नालों की सफाई करवाना जरूरी है लेकिन काफी कुछ कागजों पर ही होता है और सफाई के नाम पर धनराशि की बंदरबांट हो जाती है। 
पटना से सटी गंगा, पुनपुन, गंडक और सोन नदियां पहले से ही खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं तो शहर के नालों का पानी उनमें कैसे समाता। कौन नहीं जानता कि ठेकेदारों और नेताओं को फंड लूट के गुर सिखाने वाले अफसर कितने माहिर हैं। सुविधा भोगी जीवन शैली ने सामाजिक सरोकारों को पीछे छोड़ दिया है। जैसे-जैसे हम विकास के सोपान चढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे पृथ्वी पर नए-नए खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। 
प्रकृति का मौसम चक्र भी अनियमित हो गया है। अब सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई निश्चित समय ही नहीं रह गया। इस कारण भूजल स्तर में भारी कमी आई है। प्राकृतिक संसाधनों का धड़ल्ले से उपयोग निर्माण उद्योगों, परिवहन एवं उपभोग के लिए किया जा रहा है। उपभोक्तावाद में तीव्रता से वृद्धि हो रही है। हम अपने घरों का कूड़ा-कचरा काफी मात्रा में नालियों में बहा देते हैं। यही कचरा जब गटरों में जमा हो जाता है तो जल की निकासी अवरुद्ध हो जाती है। 
बिहार में दस वर्ष तक लालू प्रसाद यादव का शासन रहा, नीतीश कुमार का लगातार तीसरा शासनकाल चल रहा है। सवाल यह भी है कि सुशासन बाबू ने शहर में फ्लाईओवर तो बना दिए लेकिन सीवरेज सिस्टम को सुधारने के लिए क्या किया? आपदा प्रबंधन के नाम पर भी नीतीश सरकार बेबस ही दिखाई ​दी। शहरों के लोग कभी नहीं सोचते कि अगर बाढ़ आ गई तो उन्हें क्या करना है और न ही स्थानीय प्रशासन इसका अभ्यास ही करता। 
पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का वादा तो जरूर किया जाता है लेकिन यह सब एक स्वप्न की तरह है। जिन घरों के भूतल पानी में डूब गए, क्या उसके ऊपर की मंजिलें सुरक्षित रह पाएंगी? पानी तो उतर जाएगा लेकिन घरों से लेकर सड़कों तक फैली सड़ांध से बीमारियां फैलेंगी। अतिवृष्टि के बारे में स्थानीय मौसम विज्ञान विभाग ने एक सप्ताह पहले ही आगाह कर दिया था, फिर भी राज्य सरकार शिथिल बनी रही, कोई एहतियाती व्यवस्था नहीं की गई। 
स्थानीय नगर निकाय भी खामोश तमाशा देखता रहा। बाढ़ के बाद की परिस्थितियों से उबरना उसके लिए बड़ी चुनौती है। यह चुनौती अन्य बाढ़ प्रभावित इलाकों की भी है। अगर ईमानदारी​ से काम होता तो बाढ़ से इतना नुक्सान नहीं होता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − 4 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।