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शशिकला ने मैदान क्यों छोड़ा?

सियासत भी अजीब शह है जिसमें यह पता नहीं चलता कि कब कौन सा मोहरा उल्टी चाल चल कर बाजी को पलट डाले। ऐसा ही तमिलनाडु की राजनीति में घटा है जहां आगामी 6 अप्रैल को विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं।

सियासत भी अजीब शह है जिसमें यह पता नहीं चलता कि कब कौन सा मोहरा उल्टी चाल चल कर बाजी को पलट डाले। ऐसा ही तमिलनाडु की राजनीति में घटा है जहां आगामी 6 अप्रैल को विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। वैसे इस राज्य की राजनीति भी अपने आप में किसी राजा-रानी के किस्से की तरह कम रोचक नहीं रही है जहां जनता लोकतान्त्रिक व्यवस्था के भीतर ही राजतान्त्रिक गण स्थापना करती रही है और फिल्मी हस्तियों को सियासत में आने पर उनके मन्दिर तक बनवाती रही है। परन्तु 2016 में एक जमाने की अत्यन्त लोकप्रिय अभिनेत्री सुश्री जयललिता की मुख्यमन्त्री के पद पर रहते हुए मृत्यु हो जाने के बाद इस राज्य की राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन आता लग रहा है जिसे जनतन्त्र के लिए बेहतर निशान समझा जायेगा। उन्हीं जयललिता की अन्तरंग सहयोगी वी.के. शशिकला द्वारा राजनीति से हटने की अचानक घोषणा कर देने के बाद से राज्य के चुनावी राजनीतिक समीकरणों के उलट-पुलट होने की आशंका व्यक्त की जा रही है जबकि जमीनी हकीकत यह ऐलान करती लगती है कि इस राज्य की जनता पहले से ही मन बना चुकी है कि इन चुनावों में उसे किस पार्टी या गठबन्धन को सत्ता सौंपनी है। फिर भी राजनीति संभावनाओं का खेल मानी जाती है और किसी भी संभावना से इन्कार करना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती। स्वतन्त्र भारत का चुनावी इतिहास बताता है कि 1967 के आते-आते भारत की अधिसंख्य जनता के मन से कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वतन्त्रता आंदोलन में​ दिए गए बलिदानों का खुमार टूटने लगा था जिसके परिणाम स्वरूप उस समय देश के नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ था। इनमें तमिलनाडु सबसे प्रमुख था क्योंकि यहां स्व. अन्ना दुरै की सदारत वाली द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम पार्टी ने ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की थी और अपने बूते पर शानदार बहुमत लेकर द्रविड़ सरकार का गठन स्व. दुरै के नेतृत्व में ही किया था। परन्तु 1969 के शुरू में उनकी मृत्यु हो जाने पर स्व. एम. करुणानिधि  मुख्यमन्त्री बने और 1971 के आते- आते उनके प्रख्यात फिल्म अभिनेता व अन्नादुरै के परम सहयोगी रहे एम.जी. रामचन्द्रन के साथ मतभेद उभरे जिसके परिणाम स्वरूप द्रमुक में विद्रोह हुआ और 1972 के सितम्बर महीने में श्री रामचन्द्रन ने अन्ना दुरै के नाम पर ही ‘अन्ना द्रमुक’ की स्थापना कर दी । इसके बाद पूरे राज्य की राजनीति इन दो दलों द्रमुक व अन्ना द्रमुक में ही सीमित होनी शुरू हो गई।
 1988 में अपनी मृत्यु तक श्री रामचन्द्रन 1977 के बाद से कई बार मुख्यमन्त्री रहे। उनकी विरासत की हकदार उनकी प्रेयसी कही जाने वाली बाद में जयललिता बनी और राजनीति पर छा गईं। 1991 से 2016 तक वह छह बार मुख्यमन्त्री रहीं और उनके इस कार्यकाल के दौरान वी.के. शशिकला उनकी अन्तरंग सहेली बन कर उभरी। जयललिता की मृत्यु हो जाने पर उन्हें जयललिता का उत्तराधिकारी अन्ना द्रमुक पार्टी ने लगभग स्वीकारा मगर वह आय से अधिक सम्पत्ति संग्रहित करने के मामले में फंस गईं और 2017 में जेल चली गईं, जहां से वह पिछले महीने के अंत में ही रिहा होकर आयी हैं। उनके जेल जाते ही अन्ना द्रमुक पार्टी से उनके निष्कासन की घोषणा कर कर दी गई और राजनीति में सक्रिय उनके भतीजे टीटीके दिनाकरण को भी उनके साथ पार्टी से निकाल दिया गया। उनके जेल में रहते ही दिनाकरण ने नई पार्टी अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम का गठन किया और चेन्नई शहर के उस ‘आर के नगर’ चुनाव क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा वहां से  स्व. जयललिता विधानसभा में पहुंचा करती थीं। यहां उनका विरोध द्रमुक व अन्ना द्रमुक दोनों ने किया मगर दिनाकरण बहुत शानदार तरीके से जीते। इस विजय से यह तो साबित हो ही गया था कि जयललिता की विरासत पर शशिकला का कब्जा हो सकता है जिन्हें तमिलनाडु के लोग ‘अम्मा’ कह कर जयललिता के समय से ही पुकारने लगे थे। 
जाहिर है अम्मा अपनी पार्टी की तरफ से ही प्रत्याशियों को मैदान में उतारती जिसका सबसे बड़ा नुक्सान उनकी पुरानी पार्टी अन्ना द्रमुक को ही होता। उनके राजनीति से किनारा कर लेने से चुनावी लाभ भी इसी पार्टी को हो सकता है मगर इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती क्योंकि विपक्षी पार्टी द्रमुक ने पहले से ही अन्ना द्रमुक के नेतृत्व को भ्रष्टाचार के संरक्षक के रूप में निरूपित करना शुरू कर दिया है। हालांकि इस राज्य में फिल्म अभिनेता कमल हासन की भी अपनी पार्टी है और वह भी अच्छी खासी संख्या में प्रत्याशियों को मैदान में उतार रही है जिसकी वजह से चुनावी मुकाबला कहीं-कहीं त्रिकोणीय भी हो सकता है मगर शशिकला के मैदान छोड़ने से यह बहुकोणीय होने से बच गया है। अन्ना द्रमुक से भाजपा का गठबन्धन है जबकि द्रमुक के साथ कांग्रेस का गठबन्धन होने जा रहा है जिससे मुकाबला अंततः द्रमुक व अन्ना द्रमुक के बीच ही रहेगा। देखना केवल यह होगा कि ‘अम्मा’ के मैदान छोड़ने से किस पार्टी को अधिक लाभ होगा।  वैसे तमिलनाडु की राजनीति बहुत उलझी हुई नहीं मानी जाती। यहां के लोग जिस पार्टी को भी सत्ता में लाते हैं उसे पूर्ण बहुमत दिल खोल कर देते हैं।

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