वरुण गांधी ने रायबरेली को क्यों कहा ना

वरुण गांधी ने रायबरेली को क्यों कहा ना
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'आसमां के सबसे ऊंचे घर में रहता है तू,
और रब से तेरा चेहरा मिलता है हुबहु,
पर तू दुआएं किसी की कुबूल क्यों नहीं करता,
तू खुदा सा है मगर कभी खुदा हो नहीं सकता'
सूरज के सातवें घोड़े 'पंक्ति' पर सवार भाजपा के देदीप्यमान शीर्ष नेतृत्व को यूपी के सियासी गर्दों गुबार में बुझती आस्थाओं के नए मिथक ढूंढने पड़े। पार्टी हाईकमान ने डंके की चोट पर जिस वरुण गांधी का टिकट पीलीभीत से काट दिया था, राय बरेली से उन्हें मैदान में उतरने के लिए उनकी चिरौरी करनी पड़ी। भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि अपनी बीमारी के बाद घर में आराम फरमा रहे वरुण गांधी को पहला फोन भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा का आया। जिसमें इस युवा गांधी से कहा गया वे राय बरेली से भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस लें पर वरुण ने इस संदेशवाहक को टका सा जवाब देकर उन्हें निरूत्तर कर दिया। फिर वरुण के पास दो ओर बड़े नेताओं के फोन आये। पटकथा वही थी, संवाद भी वही पुराना था, पर फिर भी जब वरुण नहीं माने। सूत्रों की माने तो उन्हें समझाया गया कि 'मौजूदा परिस्थितियों से उन्हें हताश होने की जरूरत नहीं है, वे अपने भविष्य की डोर भाजपा के हाथों में सौंप कर निश्चिंत हो जाएं।'
वरुण ने विनयपूर्वक अनुनय को ठुकराते हुए कहा-चूंकि रायबरेली से उनकी बड़ी बहन प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने वाली हैं सो वे अपनी बहन के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ सकते क्योंकि प्रियंका से उनके बेहद आत्मीय रिश्ते हैं। भाजपा को इस बात का कहीं पहले इल्म हो गया था कि गांधी परिवार अमेठी और रायबरेली दोनों ही सीटों पर अपना दावा बरकरार रखने वाला है। अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से प्रियंका वाड्रा चुनावी मैदान में उतरने वाले हैं जिससे कि यूपी में एक चुनावी माहौल बनाया जा सके। अमेठी से पहले से ही स्मृति ईरानी का नाम तय था सो, रायबरेली के लिए उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश शुरू हो गई। रायबरेली में भाजपा नेतृत्व ने संभावित नामों को लेकर एक जमीनी सर्वेक्षण कराया ये 5 नाम थे वरुण गांधी, उमा भारती, विनय कटियार, ब्रजेश पाठक और मनोज पांडे। पर इन तमाम सर्वेक्षणों में वरुण गांधी का नाम ही राय बरेली में सर्वमान्यता की कसौटी पर सबसे प्रमुखता से उभर कर सामने आया। सो, भाजपा ने तय किया कि वरुण को मनाने में ही समझदारी है।
क्यों रद्द हो गया मस्क का भारत दौरा
टेस्ला प्रमुख एलन मस्क की दो दिवसीय भारत यात्रा का सत्ता पक्ष को बेकरारी से इंतजार था। अपनी इस प्रस्तावित भारत यात्रा में मस्क पहले दिन यानी रविवार को पीएम मोदी से मिलने वाले थे और इसके अगले दिन नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में एक बड़े इवेंट का आयोजन था। इस कार्यक्रम में मस्क को 'स्पेस सेक्टर' से जुड़ी कंपनियों से मिलना था और भारत के लिए 20-30 बिलियन डॉलर के निवेश का रोड मैप भी प्रस्तुत करना था। कहते हैं मस्क की इस भारत यात्रा को टलवाने में उनके बायोग्राफर वाल्टर इसाकसन की एक महती भूमिका रही। इसाकसन एक मशहूर पत्रकार और बायोग्राफर हैं जो 'सीएनएन' और 'टाइम' मैगजीन जैसे शीर्ष मीडिया संस्थानों में बड़े ओहदों पर कार्यरत रह चुके हैं। उनकी मस्क से गहरी छनती है और गाहे-बगाहे विभिन्न मुद्दों पर वे मस्क को अपनी सलाह से भी नवाज़ते रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि इसाकसन ने मस्क से कहा कि भारत में इस वक्त चुनाव का हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है। सो इस वक्त उनका मोदी से मिलना ठीक नहीं होगा। कहते हैं मस्क ने आनन-फानन में इसके बाद अपनी भारत यात्रा कैंसिल कर दी। इसके बाद पीएमओ हरकत में आया। जब इनका मस्क से सीधा संपर्क नहीं हो पाया तो फिर पीएमओ ने मस्क के गुजराती दोस्त नीरव टोलिया से संपर्क साधा जो 'नेक्सट डोर' ऐप्प के संस्थापक और पूर्व सीईओ हैं। कहते हैं इसके बाद नीरव ने मस्क से बात की और उनसे आग्रह किया कि आप फोन पर ही सही कम से कम एक बार पीएम से बात तो कर लें। इस पहल के बाद ही मस्क का 'एक्स हेंडल' पर उनका पोस्ट सामने आया जिसमें उन्होंने इस वक्त भारत न आने की अपनी वजह बताई।
महाराष्ट्र की चिंता में भाजपा
भाजपा इन दिनों महाराष्ट्र को लेकर गंभीर चिंता में है। पार्टी की चिंता महाराष्ट्र के भाजपा उम्मीदवारों को लेकर नहीं है अपितु भाजपा के गठबंधन साथियों खास कर एकनाथ शिंदे और अजित पवार के उम्मीदवारों को लेकर है। सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा के जमीनी सर्वेक्षण बताते हैं कि वहां मैदान में भाजपा उम्मीदवारों की स्थिति ठीक-ठाक है, लेकिन जहां गठबंधन धर्म के चलते अजित पवार या शिंदे की पार्टी के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है उनमें से ज्यादातर उम्मीदवार महाविकास अघाड़ी के प्रत्याशियों से पीछे चल रहे हैं। कई सर्वेक्षणों में तो यह भी दावा हुआ है कि इस दफे महाराष्ट्र में अजित पवार की पार्टी का खाता खुलना भी मुश्किल होगा।
बहुचर्चित बारामती संसदीय सीट जहां से अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार मैदान में हैं, उन्हें शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सूले से कड़ी चुनौती मिल रही है और बारामती में एडवांटेज सुप्रिया बताया जा रहा है। इसके बाद ही भाजपा नेतृत्व ने अजित पवार और एकनाथ शिंदे दोनों नेताओं से कहा कि वे अपने कुछ प्रत्याशियों को कमल के निशान पर चुनाव लड़वा दें। पर ये दोनों ही नेता भाजपा के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा नेतृत्व ने इन दोनों नेताओं को साफ-साफ बता दिया है कि जहां-जहां भाजपा के अपने उम्मीदवार नहीं हैं वहां भाजपा का कैडर गठबंधन साथियों के प्रत्याशियों के समर्थन में खुल कर सामने नहीं आ पा रहा है।
'रेड जोन' की सीटों को लेकर भाजपा की चिंता
'400 पार' का नारा भाजपा के गले की हड्डी बन गया है। संघ परिवार और भाजपा की असली चिंता यूपी को लेकर है। भाजपा ने अपनी जीत की संभावनाओं को रेखांकित करते हुए पूरे यूपी को तीन जोन में बांटा है। पहला जोन 'यलो' यानी पीला है, इस जोन के अंतर्गत वैसी सीटें रखी गई हैं जहां भाजपा सहजता से जीत दर्ज करा रही है। दूसरा जोन 'ग्रीन' यानी हरा है जहां भाजपा को प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर मिल रही है। तीसरा जोन हैं 'रेड' यानी लाल। जहां भाजपा फिलहाल मुकाबले में किंचित पिछड़ती दिख रही है। 'रेड जोन' की कुछ प्रमुख सीटें हैं- मैनपुरी, मुरादाबाद, कन्नौज, बदायुं, मुज्जफरनगर, संभल, पीलीभीत, रामपुर, श्रावस्ती, बस्ती, अंबेडकर नगर, जौनपुर, आजमगढ़, लालगंज, गाजीपुर, घोसी, मछलीशहर, कौशांबी और बाराबंकी।
…और अंत में
2024 लोकसभा चुनाव के पहले व दूसरे चरण की कम वोटिंग को लेकर भले ही भाजपा की संभावनाओं को कम करके आंका जा रहा हो लेकिन सच तो यह भी है कि 'इंडिया एलायंस' भी इसका बहुत बड़ा लाभार्थी नहीं दिख रहा अपेक्षाकृत मुस्लिम बहुल इलाकों में भी इस दफे वोटिंग का प्रतिशत कम रहा। यूपी की विरोधी पार्टियों का आरोप है कि हज़ारों की संख्या में मुस्लिम मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब हो गए हैं, खास कर कैराना, मुजफ्फरगनर, रामपुर और मुरादाबाद जैसी संसदीय सीटों पर यह शिकायत बेहद आम रही।

– त्रिदीब रमण 

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