भाजपा के लिए क्यों अनुत्तरित है महाराष्ट्र का यक्ष प्रश्न

भाजपा के लिए क्यों अनुत्तरित है महाराष्ट्र का यक्ष प्रश्न

‘अपना दिन बुझाकर अभी-अभी तो लौटा हूॅं तेरे पहलू में
हसरत है कि ये रात जले धू-धू और एक नया सवेरा हो’

हालिया लोकसभा चुनाव में भगवा पार्टी को महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य से जो दंश मिला है भाजपा उससे उबरने की कोशिशों में जुट गई है। भगवा खेमे में एक नई आशा का सूत्रपात हो चुका है, जब से महाराष्ट्र के चुनाव की बागडोर भाजपा चाणक्य अमित शाह ने थाम ली है। राज्य में आने वाले इसी अक्टूबर को विधानसभा के चुनाव आहूत हैं, सो वक्त कम बचा है, शाह के नेतृत्व में मैराथन तरीके से नई चुनावी रणनीतियों को धार दी जा रही है। सियासी शह-मात की बिसात पर प्यादों को भी उनकी असली औकात बताने की तैयारी है। महाराष्ट्र की 288 सीटों वाली विधानसभा के लिए भाजपा चाणक्य के निर्देशन में सीट दर सीट जनमत सर्वेक्षण का काम चल रहा है, मुद्दों की फेहरिस्त तैयार की जा रही है, उन्हें लोकल, राज्यवर व नेशनल स्तर पर मार्क किया जा रहा है।

भाजपा से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि महाराष्ट्र में भी मध्य प्रदेश की तर्ज पर कल्याणकारी योजनाओं का मेगा स्वरूप बन कर तैयार है, जिसे विशेष कर युवा, महिला व कृषक वर्ग को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसी शुक्रवार को पेश राज्य के बजट में भाजपा के इन्हीं इरादों की बानगी दिख जाती है। इस बजट में 21 से 60 वर्ष की महिलाओं को 1500 रुपए मासिक भत्ता, गरीब परिवारों को साल में तीन मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर, किसानों के बिजली बिल माफी, खेती के लिए 5 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर बोनस व युवाओं को 10 हजार रुपए मासिक भत्ता देने जैसी क्रांतिकारी घोषणाएं शामिल हैं। यह और बात है कि इन कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने से राज्य के बजट पर 80 हजार करोड़ रुपयों का अतिरिक्त बोझ आएगा, भाजपा पूर्व में भी मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही कल्याणकारी योजनाओं के भरोसे अपनी डूबती उतराती चुनावी नैया पार लगा चुकी है, अब इसी फार्मूले को महाराष्ट्र में भी आजमाने की तैयारी है।

क्या महाराष्ट्र में अकेले चुनाव में जा सकती है भाजपा

भाजपा से जुड़े बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि महाराष्ट्र को लेकर अब तक पार्टी ने जितने जनमत सर्वेक्षण करवाए हैं उसके नतीजे भगवा पार्टी के लिए किंचित उत्साहजनक नहीं हैं। माहौल लोकसभा चुनाव काल से भी धुंधला नज़र आ रहा है। ऐसे में भाजपा अपनी सहयोगी पार्टियों की अतिरिक्त डिमांड झेलने को तैयार नहीं दिखती। मसलन, अगर बात करें एकनाथ ​शिंदे की शिवसेना की तो लोकसभा में 7 सीटें जीतने के बाद पार्टी के हौंसले बम-बम हैं, सो अतिरेक उत्साह के घोड़े पर सवार शिंदे भाजपा से अपनी पार्टी के लिए 50 से ज्यादा सीटों की डिमांड कर रहे हैं, जबकि भाजपा के अपने सर्वेक्षण शिंदे की पार्टी की संभानाओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। भाजपा रणनीतिकारों का साफ तौर पर मानना है कि शिंदे की पार्टी ने जो 7 लोकसभा सीटें इस बार जीती हैं वह सिर्फ भाजपा कैडर की वजह से ही संभव हो पाया है, क्योंकि शिंदे के उम्मीदवार ज्यादातर उन सीटों से चुनाव जीत गए जो भाजपा के वर्चस्व वाली सीटें हैं या यूं कहें कि शिंदे ने बड़ी चतुराई से भाजपा से गठबंधन धर्म के तहत वैसे सीटें हासिल कर ली जहां भाजपा का ‘स्ट्रांग होल्ड’ था।

अजित पवार की राकांपा को लेकर भाजपा का अपना सर्वे हैरान करने वाला है, सूत्र बताते हैं कि इन सर्वेक्षण नतीजों में अजित पवार की पार्टी हर सीट पर पिछड़ती नज़र आ रही है। सो भाजपा रणनीतिकारों ने एक बीच का रास्ता निकाला है और वे अजित से कह रहे हैं कि अपने उम्मीदवारों को वे भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा दें। सूत्रों की मानें तो भाजपा सर्वेक्षणों के नतीजे व जनता के मूड को भांपते महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला भी ले सकती है।

राहुल को अपनों से दगा

एक ओर जहां राहुल गांधी कांग्रेस का चेहरा-मोहरा बदलने की कवायदों में जुटे हैं वहीं उनके कई प्रादेशिक सिपहसालार ऐसे भी हैं जिनकी पार्टी के प्रति निष्ठा सवालों के घेरे में हैं। शायद इसीलिए अब यह संकेत मिलने लगे हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस अपने कई प्रदेश अध्यक्षों को बदल सकती है। इस जनवरी माह में ही कांग्रेस शीर्ष को उनके ओडिशा के प्रदेश अध्यक्ष सरत पटनायक को लेकर कई शिकायतें मिली थीं कि वे कांग्रेस विरोधी दलों के हाथों में खेल रहे हैं। वैसे भी सरत पटनायक के बारे में चर्चा पूरे ओडिशा में आम थी कि उन्हें कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में वीके पांडियन की एक महती भूमिका थी।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी अपने प्रदेश अध्यक्ष को लेकर खासी नाराज़गी थी, खास कर उसके टिकट बंटवारे के तरीकों को लेकर। पर इतने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान के कानों में जूं नहीं रेंगी, जिसका खामियाजा उसे ओडिशा विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। एक और प्रदेश अध्यक्ष हैं बिहार के अखिलेश प्रसाद सिंह, जिन्हें घोषित तौर पर लालू का ‘नॉमिनी’ कहा जाता है। इस लोकसभा चुनाव में कहते हैं दो प्रमुख कांग्रेस उम्मीदवारों का पर्चा रद्द होते-होते रह गया, जब आखिरी वक्त पर इन दोनों उम्मीदवारों को पता चला कि उनके फॉर्म ‘बी’ पर अध्यक्ष के गलत जगह दस्तखत हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि आनन-फानन में फिर अगली सुबह हेलीकॉप्टर द्वारा सही ‘बी’ फॉर्म अध्यक्ष के सही जगह दस्तखत के साथ इन्हें भेजा गया, तब जाकर इनका नॉमिनेशन संभव हो पाया। आज ये दोनों कांग्रेस के टिकट पर विजयी सांसद हैं, एक हैं कटिहार से जीत दर्ज कराने वाले तारिक अनवर और दूसरे हैं किशनगंज से कांग्रेस की विजयी पताका लहराने वाले डॉ. जावेद।

हरियाणा में कांग्रेस के हौंसले बुलंद

हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव भी महाराष्ट्र इलेक्शन के साथ अक्टूबर माह में कराए जा सकते हैं। सनद रहे कि हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को समाप्त हो रहा है। लोकसभा चुनाव के चुनावी नतीजों से हरियाणा में कांग्रेस के हौंसले बम-बम हैं। कांग्रेस द्वारा कराए गए हालिया चुनावी सर्वेक्षणों के नतीजे इस बात की चुगली खाते हैं कि ‘अगर आज की तारीख में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हो गए तो कांग्रेस पार्टी यहां अकेले अपने दम पर 55 से 60 सीटें जीत सकती है।’ कांग्रेस अपने सर्वे में इतनी बड़ी जीत का दावा महज़ इसीलिए कर रही है कि उसके सर्वे में खुलासा हुआ है कि राज्य के जाट, दलित व मुस्लिम वोट उसके पक्ष में गोलबंद हुए हैं।
वहीं राज्य में ‘भाजपा हटाओ’ वोटरों की भी एक बड़ी तादाद है जो जाति-संप्रदाय से बाहर निकल कर भाजपा को हराने वाले प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। हरियाणा में कांग्रेस बहुत पहले से कई गुटों में बंटी नज़र आती है। हाल के दिनों तक इसे ‘एसआरके’ यानी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला व किरण चौधरी के गुटों में बंटी कांग्रेस के तौर पर जाना जाता था। पर बीते दिनों किरण चौधरी ने अपनी बेटी श्रुति के साथ कांग्रेस का हाथ छोड़ भगवा दामन थाम लिया है।

कांग्रेस का अपना आकलन है कि किरण के जाने से उसे भिवानी-महेंद्रगढ़ की कुछ सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है, खास कर तोशाम सीट पर इसका असर देखने को मिल सकता है। कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी पर लगाम लगाने के लिए इस बार सोनिया व राहुल दोनों व्यक्तिगत तौर पर सक्रिय हैं, समझा जाता है कि सोनिया ने सैलजा को तलब कर उन्हें समझाया है। वहीं राहुल व प्रियंका इस दफे हरियाणा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ‘फ्री-हेंड’ देने की पहल कर चुके हैं।

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