उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर पिछले कुछ दिनों से एक बार फिर अप्रिय कारणों से चर्चा में है। पूर्वोत्तर के इस राज्य में 3 मई, 2023 को हिंसा का दौर शुरू हुआ था लेकिन आज 18 महीनों के बाद भी अशांति है। इस हफ्ते की शुरूआत में मणिपुर में सीआरपीएफ के साथ मुठभेड़ में दस उग्रवादी मारे गए। यह मुठभेड़ तब हुई जब वर्दी पहने और अत्याधुनिक हथियारों से लैस उग्रवादियों ने जिरीबाम जिले के जाकुरधोर में बोरोबेक्रा पुलिस स्टेशन और उससे सटे सीआरपीएफ कैंप पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी थी। इसके बाद से यहां के हालात फिर बेकाबू हो गए हैं। मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कड़ा रुख अपनाया है।
मणिपुर सरकार ने एक अक्तूबर को राज्य के अधिकांश हिस्सों में अफस्पा लागू कर दिया था। हालांकि, उस समय 19 थाना क्षेत्रों को इससे बाहर रखा गया था, जिनमें ये छह थाना क्षेत्र भी शामिल थे। इसके बाद गृह मंत्रालय ने नई अधिसूचना में इन छह थाना क्षेत्रों को भी शामिल किया है। जिन 19 थाना क्षेत्रों को अफस्पा से बाहर रखा गया था उनमें इंफाल, लंफाल, सिटी, सिंजामेई, सेकमई, लमसांग, पटसोई, वांगोई, पोरोमपट, हेइंगंग, लमलाई, इरिलबुंग, लेइमाखोंग, थौबल, बिष्णुपुर, नामबोल, मोइरांग, ककचिंग और जिरीबाम शामिल थे।
असल में मणिपुर में हिंसा और विद्रोह थम नहीं पा रहा है। गुस्सा और आक्रोश इस पराकाष्ठा तक पहुंच चुके हैं कि पहली बार मंत्रियों और विधायकों के आवास बड़े स्तर पर निशाने पर हैं। रविवार को एक भाजपा विधायक का घर फूंक दिया गया। भाजपा-कांग्रेस के दफ्तरों में तोड़फोड़ की जा रही है। तीन मंत्रियों सहित 9 विधायकों के घरों पर हमले किए जा चुके हैं।
ताजा घटनाक्रम जलने लगा तो गृहमंत्री अमित शाह ने शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के संग बैठकें कीं। कुछ विद्रोही विधायकों से फोन पर बातचीत भी की गई। अंतत: सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह को मणिपुर भेजा गया है। सेना और असम राइफल्स के हजारों जवान तैनात हैं और हालात से जूझ रहे हैं। मणिपुर में ‘अफस्पा’ लागू है, हालांकि मणिपुर अखंडता की समन्वय समिति इसे हटाने का बार-बार आग्रह कर रही है। हालात ऐसे हैं कि महिलाओं और बच्चों की भी हत्याएं की गई हैं, क्योंकि उनके शव मिले हैं। उसके बाद ही ताजा तनाव फैला है और हिंसा बढ़ी है। इंफाल घाटी में कर्फ्यू लगा है। इंटरनेट और मोबाइल डाटा सेवाएं फिलहाल निलंबित हैं। मुद्दा मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय तनाव का है।
राज्य में मई 2023 में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों बेघर हो चुके हैं। हिंसा इंफाल घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और आसपास के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी दो समुदाय के बीच शुरू हुई थी। जििरबाम जिला शुरू में इस संघर्ष से प्रभावित नहीं था लेकिन जून 2024 में एक किसान का शव मिलने के बाद इस जिले में भी हिंसक झड़पें शुरू हुईं।
दोनों समुदाय ‘जनजातीय दर्जा’ हासिल करने को संघर्ष कर रहे हैं। क्या केंद्र सरकार यह समस्या भी सुलझा नहीं सकती? ये हालात मणिपुर में उग्रवाद की नई लहर पैदा कर सकते हैं। मोदी सरकार आतंकवाद या उग्रवाद अथवा नक्सलवाद को कुचलने के दावे करती रही है लेकिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का आवास भी घेरा जाए या हमले की नौबत आ जाए और सुरक्षा बढ़ानी पड़े तो क्या उन्हें सामान्य हालात कहेंगे?
मैतेई समुदाय का आरोप है कि उग्रवादियों ने अपहरण कर उसके लोगों की हत्या की है, जिनके शव मिलने के बाद हालात उग्र हुए थे। बहरहाल मणिपुर में विधायकों के घरों पर हमला करने वाले लोगों को गिरफ्तार किया गया है, दूसरी ओर कुकी समुदाय जिद पर अड़ा है कि जब तक मुठभेड़ में मारे गए उसके युवकों की पोस्टमॉर्टम रपट नहीं मिलेगी तब तक उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा।
कुल मिला कर मणिपुर में हालात अराजक हैं, हिंसा और हत्याओं का दौर है, क्या लोकतंत्र में ऐसा ही होता है? एनएससीएन-आईएम ने चेताया है कि अगर केंद्र उसकी मांगें मानने के लिए तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के लिए सहमत नहीं हुआ तो वह फिर से संघर्ष शुरू करेगा। उसकी मांगों में नगाओं के लिए एक अलग ध्वज और संविधान पर गतिरोध बना हुआ है।
कुछ समय पहले जब मणिपुर के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों के बीच संवाद-संपर्क का सिलसिला प्रारंभ किया गया था तब यह आशा जगी थी कि राज्य में शांति बहाली का मार्ग प्रशस्त होगा लेकिन अचानक एक के बाद एक ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे हालात बेकाबू होते दिखने लगे। मणिपुर के हालात किस कदर बिगड़ रहे हैं, इसका पता इससे चलता है कि वहां के कुछ इलाकों में अफस्पा को फिर से प्रभावी किया गया है। इसके साथ ही वहां अर्धसैनिक बलों की पचास अतिरिक्त कंपनियों को भी भेजा जा रहा है। अशांति और उपद्रव को देखते हुए जिस तरह स्कूल-कालेज बंद करने और इंटरनेट सेवा बाधित करने की नौबत आ रही है उससे यही प्रकट होता है कि इस राज्य को पटरी पर लाने में समय लग सकता है।
यह सामान्य बात नहीं कि मणिपुर बीते डेढ़ वर्ष से अराजकता और अशांति से जूझ रहा है। यदि वहां अशांति जारी रही तो अलगाववादी शक्तियों के साथ नशीले पदार्थों के कारोबार में लगे तत्वों का दुस्साहस तो बढ़ेगा ही, सामाजिक वैमनस्य को दूर करने में भी मुश्किलें आएंगी। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी खराब होगी।