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बस्ती में मातम क्यों है?

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सभ्य समाज में कुछ घटनाएं विचलित करती हैं, विशेष तौर पर मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाएं। आखिर परीक्षा देने आए छात्रों का समूह इतना सिंह कैसे हो उठा कि उसने गुरु तेग बहादुर मैट्रो स्टेशन के सामने वाली बस्ती में रहने वाले ई-रिक्शा चालक रविन्द्र को पीट-पीटकर मार डाला। बस्ती में मातम है और लोग सकते में हैं। रविन्द्र का कसूर इतना था कि उसने दो छात्रों को शौचालय में जाकर पेशाब करने को कहा था। दोपहर के वक्त रविन्द्र अपने साथियों के साथ मैट्रो स्टेशन के बाहर खाना खा रहा था कि पास ही दो लड़के बीयर पी रहे थे। उनमें से एक लड़के ने पास ही पेशाब करना शुरू कर दिया। जब उन्होंने एक लड़के को ऐसा करने से रोका तो दोनों ने गाली-गलौच शुरू की और जाते-जाते एक लड़के ने धमकी दी और कहा- अभी मेरा पेपर है, शाम को आकर बताऊंगा। रात साढ़े 8 बजे जब रविन्द्र सवारी ले जा रहा था तो 20-25 लड़कों के झुंड ने उन पर हमला कर दिया। लड़कों ने गमछे में ईंट बांधकर उसे मारा। जिस किसी ने भी बीच-बचाव की कोशिश की लड़के उसे भी मारने लगे जिससे रविन्द्र की मौत हो गई। बस्ती में डर का माहौल है। यह दृश्य है राजधानी दिल्ली की एक बस्ती का। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजधानी की सड़कों पर खुलेआम इस तरह की वारदात हो जाए। इस घटना के चश्मदीद तो अपने फोटो भी खिंचवाना नहीं चाहते ताकि कहीं हमलावर उन्हें पहचान कर उन पर हमला न कर दें। रविन्द्र की मौत सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि यह उस समाज पर तमाचा है जो असहिष्णु हो चुका है। समाज संवेदनहीन हो चुका है और व्यवस्था निष्ठुर हो चुकी है। किसी व्यस्त सड़क पर कोई हादसा हो जाए, हादसे का शिकार इंसान भले ही मदद को चिल्लाता रहे और लोग अपनी रफ्तार से उसकी ओर नजर भर देखकर आगे बढ़ जाते हैं। तमाशबीन मोबाइल से वीडियो उतारने लगते हैं। अभी कल की ही खबर थी कि एक दुर्घटना में एक लड़की बुरी तरह से घायल हो गई। दुर्घटना इतनी जबरदस्त थी कि लड़की का शरीर दो हिस्सों में बंट चुका था। फिर भी वह अपनी मां से बात कर रही थी, उसके अंतिम शब्द थे, ”मम्मी आई लव यू-मम्मी आई लव यू।” कोई उसका वीडियो बना रहा था, कोई उसे देख रहा था, लेकिन कोई इंसान उसके पास तक नहीं फटका।

कुछ समय पहले एक घटना में दो बच्चियों ने टीन पर चाक से लिखकर अपने सौतेले पिता का पाप उकेरा था। उन्होंने लिखा था कि ”मम्मी, प्यारी मम्मी हमारी इज्जत की रक्षा करना, तुम हमको नरक में छोड़ क्यों चली गईं। तुझे मालूम नहीं हमारे साथ क्या हो रहा है।” एक राह चलते आदमी ने पुलिस को खबर दी तो उन बच्चियों के पिता को पुलिस ने जेल भेजा। आखिर कौन से कारण हैं जिसने पढऩे वाले छात्रों को हत्यारा बना डाला। आखिर कौन से कारण हैं कि लोग आत्मीयता और मानवीय रिश्तों की परिभाषा भूल गए हैं। कभी समय पर उपचार नहीं मिलने के कारण मरीज दम तोड़ देते और डाक्टर नजर बचाए भाग लेते हैं। समाज का संवेदनहीन होना किसी भी देश और उसकी व्यवस्था के लिए सही नहीं है। सभ्य और सुसंस्कृत समाज में तो और भी नहीं। समाज के लोगों से ही व्यवस्था बनती है। जब समाज ही निष्ठुर होगा तो व्यवस्था स्वयं निष्ठुर हो जाएगी। समाज की संवेदनहीनता को लेकर काफी समय से कई तरह की बातें हो चुकी हैं लेकिन दिक्कत यह है कि ये बातें सार्थक बहस की शक्ल ही नहीं ले पा रही हैं। कोई नैतिकता और संस्कारों की बात नहीं करता। लोग बेसिर-पैर की बातें करते आरोप-प्रत्यारोप लगाने लग जाते हैं। बहस हो तो फिर खुले दिल से हो। समाज में जरूरत इस बात की है कि लोग एक-दूसरे की भावनाओं को समझने का प्रयास करें, कुतर्कों की जगह तथ्यों का सहारा लिया जाए तो कोई कारण नहीं कि समाज बदलेगा नहीं। समस्या यह भी है कि व्यक्ति आत्मकेन्द्रित हो चुका है। धर्म का आधार होता है दया, करुणा और अनुकम्पा, इसके लिए मानव में मानवीयता का गुण होना आवश्यक है। आज हमने अपनी नैतिकता और संवेदनशीलता को सिर्फ अपने तक सीमित कर लिया ऌहै। आज जितनी भी आपराधिक घटनाएं होती हैं उसका मूल कारण संवेदनशीलता का अभाव है। यह बहुत जरूरी है कि बचपन से ही नैतिकता, मानवीयता और संवेनशीलता के संस्कार प्रस्फुटित किए जाएं। अगर बच्चों में यह संस्कार प्रस्फुटित किए होते तो परीक्षा देने आए छात्र ई-रिक्शा चालक की निर्मम हत्या नहीं करते। देर-सवेर तो वह पकड़े ही जाएंगे, तब उनका भविष्य क्या होगा? समाज व परिवारों को चाहिए कि बच्चों को अच्छे संस्कार दें अन्यथा बस्तियों में मातम पसरता रहेगा और समाज क्रन्दन सुनता ही रहेगा।

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