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क्यों यूथ हो रहा डिप्रेशन का शिकार

आज सारी दुनिया में तनाव है, परन्तु यूथ के जीवन में डिप्रेशन की भावना ज्यादा बढ़ने लगी है। आज की पीढ़ी की बात करें तो दुनिया के नक्शे पर सबसे ज्यादा यूूथ वाला देश भारत ही है, लेकिन स्कूल, कालेज से लेकर करियर को ऊंचाइयों तक अगर हम उभरते हुए यूथ की बात करें तो एक बड़ा वर्ग डिप्रेशन का शिकार है।

आज सारी दुनिया में तनाव है, परन्तु यूथ के जीवन में डिप्रेशन की भावना ज्यादा बढ़ने लगी है। आज की पीढ़ी की बात करें तो दुनिया के नक्शे पर सबसे ज्यादा यूूथ वाला देश भारत ही है, लेकिन स्कूल, कालेज से लेकर करियर को ऊंचाइयों तक अगर हम उभरते हुए यूथ की बात करें तो एक बड़ा वर्ग डिप्रेशन का शिकार है। हम सब जानते हैं कि देश का युवा राष्ट्र की शक्ति होता है। अगर इसकी ऊर्जा का सदुपयोग हो तो राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज का युवा पथभ्रष्ट होता जा रहा है या Shortcut से आगे बढ़ना चाहता है। यही नहीं अगर कोई युवा मेहनत करके आगे बढ़ता है तो वह दूसरों की ईर्ष्या, जलन का शिकार हो जाता है। जो इंसान मेहनत करके आगे बढ़ता है और जिसमें टैलेंट भी होता है। कइयों में गॉड गिफ्ट होता है और कई मेहनत से पैदा करते हैं। हर मुश्किल रास्तों को पार कर मंजिल पा लेते तो फिर ऐसे युवाओं के लिए एक और संघर्ष शुरू हो जाता है। कुछ लोग उनके उच्च पद पर पहुंचने से ईर्ष्या  करते हैं, कुछ लोग उनकी नाम और शान पर ईर्ष्या करते हैं, कुछ तो बहादुर युवा होते हैं, जो इन रुकावटों को पार कर लेते हैं और कुछ न सहने की क्षमता के कारण डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।
ऐसे ही पिछले दिनों बालीवुड के एक उभरते सितारे सुशांत राजपूत ने आत्महत्या कर ली। वह डिप्रेशन में था और आत्महत्या से आठ महीने पहले तक बराबर डिप्रेशन से उभरने की कोशिश करते हुए दवाइयों के साथ-साथ कांउसलिंग भी ले रहा था। उसके दिलोदिमाग में क्या चल रहा था यह तो एक राज रह गया  परन्तु उसने अपने जिन्दा रहते अपनी मेहनत के दम पर जो चाहा वह प्राप्त किया। इंजीनियरिंग फाइनल का छात्र, बेहद असाधारण और हर काम करने का माहिर तथा सुन्दर व्यक्तित्व होने के नाते उसे अभिनय का शौक हुआ। कालेज जीवन में नाटकों से लेकर वह बालीवुड तक के सफर में कामयाब होता चला गया। छोटी-छोटी भूमिकाओं से उसने अपनी जगह बनाई और आखिरकार भारतीय क्रिकेटर के महान खिलाड़ी विकेटकीपर महेन्द्र सिंह धोनी की भूमिका में शानदार अभिनय निभाकर बालीवुड की सुपर-डुपर फिल्म ‘धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’ को यादगारी बना डाला।  अब अचानक क्या हुआ कि उसके जीवन में कई अभिनेत्रियों का आना-जाना हुआ। फ्रैंडशिप आजकल के यूथ के जीवन की एक शान हैै। उसकी मोबाइल पर किससे क्या बात हुई, क्या नहीं लेकिन उसने आत्महत्या जरूर कर ली। 
सुशांत राजपूत बिहार की मिट्टी से था और उसने अपनी एक खास जगह बना ली थी। पिछले दिनों खबर आई कि दिल्ली की नहीं देश की एक जानी-मानी टिकटाक स्टार सिया कक्कड ने आत्महत्या कर ली। उसकी उम्र महज 16 साल की थी। उसने भी सुशांत की तरह ही फांसी लगाकर  आत्महत्या की। चिंता आैर अन्दर ही अन्दर होने वाली घुटन आखिरकार युवा पीढ़ी को कहां लिए जा रही है। कहते हैं कि सिया के दस लाख से ज्यादा फालोओवर थे। इस बच्ची की आत्महत्या ने सुशांत राजपूत की आत्महत्या को एक बार फिर से लोगों के जहन पर बैठा दिया कि आखिरकार किसी को मरने देने के लिए यह कौन से हालात जिम्मेवार हैं।
आखिर हमें कारण ढूंढने होंगे कि ऐसे कौन से हालात पैदा हो जाते हैं कि इंसान इतना खतरनाक कदम उठा लेता है। कइयों को भुखमरी, बेरोजगारी या एक्जाम में फेल होने पर या कम नम्बर आने पर आत्महत्या करते सुना, परन्तु जो इतनी ऊंचाइयों पर एक्टर पहुंच गया वो क्यों डिप्रेशन में था, जबकि उसकी फिल्म हिट हो गई थी औ उसका भविष्य सुन्दर था, वो अच्छे घराने का इकलौता बेटा था, बहनों का दुलारा था। पढ़ा-लिखा इंजीनियर और सफलता से आगे बहुत मेहनत के बाद छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर चल रहा था। अब यह तो जांच-पड़ताल से पता चलेगा परन्तु मैं यूथ को कहना चाहूंगी ऐसा ख्याल उनके मन में कभी आए तो पहले उससे लड़ना या डिप्रेशन से बाहर आना सीखें और सोचें जिस मां-बाप ने उन्हें पढ़ा-लिखा कर इतना बड़ा किया उनके बारे में सोचें और यह भी सोचें कि  दुनिया का कुछ नहीं जाएगा, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। थोड़े ​दिन याद करेंगे, बातें करेंगे, सहानुभूति दिखाएंगे, फिर भूल जाएंगे।
यही नहीं पिछले सप्ताह मेरे पास एक बहुत अच्छे परिवार की महिला आई जो अपने आप में एक नाम है। उसने बताया कि उसके पति की मृत्यु के बाद उसके घर वालों ने जायदाद के लिए उसे बहुत सताया, बहुत ज्यादती की। उस महिला के लिए बहुत ही शॉक था, एक तो उसके पति की मृत्यु को 4 दिन भी नहीं हुए थे। दूसरा उसे अपने रिश्तेदार तंग कर रहे थे जिनकी उसने सारी उम्र सेवा की आैर सारी उम्र रिलेशन बहुत अच्छे थे। जिनसे वह उम्मीद रख रही थी कि वह इस समय उसके बच्चों के सर पर हाथ रखेंगे। यहां तक कि झूठ बोलकर उसके एकाउंट भी बंद करवा दिए। उस महिला के अनुसार उसके ऊपर सारे घर और कार्यालय की जिम्मेदारी थी। उससे लॉकडाउन में सबका दर्द को देखा नहीं जा रहा था, तन्खवाहें नहीं मिल रही थीं, तो उसके मन में भी एक मिनट के लिए आया कि क्यों न वह अपने आप को खत्म कर ले ताकि उन पर तंग करने वाले रिश्तेदारों को सबक मिल जाए। फिर उसने झट से अपने ख्याल को झटक दिया कि सारी दुनिया उसके साथ है, तो वह मजबूती से उठ खड़ी हुई। उनके लिए वह क्यों ऐसा सोचे, उनका क्या जाएगा और वो क्यों दुखी होंगे। अब तो उसे उनका मुकाबला करना है, देवी से दुर्गा बनना है और डटकर मुकाबला करना है। उसने और भी ज्यादा काम करना शुरू कर दिया और वह डिप्रेशन से बाहर आना शुरू हो गई क्योंकि उसके रिश्तेदारों को उसके पति, बच्चों से और उससे ईर्ष्या थी इसलिए वह उसे तंग करके इस मुकाम पर लाना चाहते थे कि वह सब कुछ तंग आकर उन्हें सौंप दे पर अब महिला ने डिप्रेशन से निकल कर अपने मजबूत इरादे कर लिए हैं।
सो मुझे बहुत अच्छा लगा ऐसे है, आज हर यूथ को अपने ​डिप्रेशन से बाहर आना है। जो उन्हें ​पीछे धकेलना चाहते हैं या उनसे जलते हैं, उन्हें साबित करना है कि और मेहनत करेंगे, आगे बढ़ेंगे और आत्महत्या का ख्याल भी नहीं लाना। ‘‘उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक मत रुको।’’ करीब डेढ़ सौ साल पहले लिखा स्वामी विवेकानंद का यह ब्रह्म वाक्य आज युवाओं  को आगे बढ़ने का हौसला देने के लिए जरूरी है। स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार वह व्यक्ति सफल है, जिसे खुद पर विश्वास हे, वह हमेशा युवाओं को सकारात्मक सोच के साथ प्रसन्न रहने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि आशावादी सोच हो तो समस्याएं सम्बल बन जाती हैं। भाग्य के भरोसे न बैठें, बल्कि पुरुषार्थ यानी मेहनत के दम पर खुद की ​किस्मत बनाएं। उन्होंेने युवाओं को कहा था कि वह स्वहित के साथ हर उस काम को करें, प्राथमिकता दें, जिसमें राष्ट्रहित हो, देशहित में ही स्वहित समाहित होना चाहिए।

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