लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

मेरा भारत महान क्यों है

भारत का हजारों वर्ष पुराना इतिहास हमें बताता है कि हमारी सबसे बड़ी ताकत विचार वैविध्य के बीच मानवीय सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा इस प्रकार रही है कि इसमें स्वयं मानव या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को परम ब्रह्म की प्राप्ति के साधनों के साथ भी वैविध्य रूप में जोड़ा गया।

भारत का हजारों वर्ष पुराना इतिहास हमें बताता है कि हमारी सबसे बड़ी ताकत विचार वैविध्य के बीच मानवीय सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा इस प्रकार रही है कि इसमें स्वयं मानव या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को परम ब्रह्म की प्राप्ति के साधनों के साथ भी वैविध्य रूप में जोड़ा गया। ईश्वर को किसी सुरक्षित स्थान में प्रतिष्ठापित करने के बजाय भारत के तत्व ज्ञानियों ने उसे ‘कण-कण में देखने’ का मनोरथ किसी स्वप्नदृष्टा के रूप में न करके भौतिक जगत में विद्यमान सृष्टि संचालक प्रक्रियात्मक परिणामों में अनुभव किया और उसकी विवेचना में ‘नश्वर जगत’ के गतिमान स्वरूप की संवहन क्रिया में परम ब्रह्म की क्रियाशीलता को तत्परता से विद्यमान पाया जिसमें मानव की सक्रियता स्वतः निहित थी। वास्तव में यह ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का वह उद्घोष था जिसने भारत की धरती से जन्म लेकर सकल संसार का भौतिकवाद से परिचय कराया और सिद्ध किया कि नश्वरवान जगत के भीतर रह कर ही ईश्वर की आराधना करने के विविध प्रकार एक साथ समानान्तर रूप से चल सकते हैं क्योंकि वैदिक काल में जहां यज्ञ विधी से सर्वशक्तिमान ईश्वर के बोध का पथ था तो कालान्तर में बौद्ध व जैन धर्मों का रास्ता आत्म शुद्धि से ईश्वर प्राप्ति का था। शैव, वैष्णव, साकार, निराकर, द्वेत, अद्वैत और न जाने कितनी परमपराएं विकसित होती रहीं और ग्राम देवता तक इनका विस्तार होता रहा परन्तु कभी भी सामाजिक कलह में इनकी कोई विशिष्ट भूमिका नहीं रही बेशक प्रतियोगिता का वातावरण जरूर बना रहा जो शुरू से ही शास्त्रार्थ की विधा में पनापा। 
सबसे पहला शास्त्रार्थ हमें ‘रावण -वेदवती’ के रूप में मिलता है। वेदवती स्वयं ब्रह्मा की पुत्री थीं जिनके साथ महाकलेश्वर के परम भक्त रावण का तर्कपूर्ण संवाद ब्रह्म ज्ञान पर ही हुआ था। यह सब लिखने का मन्तव्य यही है जिससे हम यह जान सकें कि भारत भूमि पर विभिन्न धर्मों के आगमन का कभी कोई विरोध क्यों नहीं हुआ यहां तक कि इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब के समय में ही केरल में 629 ई. में कोच्चि के निकट मस्जिद के तामीर होने पर भी। यह भारत की महान समावेशी और सर्वग्राही व सहनशील संस्कृति ही थी जिसमें सभी धर्मों के लोग स्वयं को सहज पाते थे और अपनी पूजा पद्धति का अनुपालन भी करते थे परन्तु इसके बाद का इतिहास बहुत रक्त रंजित है। विशेष रूप से आठवीं सदी का जब 711 में अरब से चल कर मोहम्मद बिन कासिम भारत के सिन्ध इलाके में आया और उसने वहां के हिन्दू राजा दाहिर को परास्त कर वहां की हिन्दू और बौद्ध जनता पर कहर ढहाना शुरू किया और उन्हें ‘काफिर’ नाम से सम्बोधित किया तथा धर्मान्तरण का उन्माद पैदा किया। 
भारत की इतिहास पुस्तिकाओं में आठवीं सदी का इतिहास गायब रहता है। इसके बाद सीधे तुर्क व मंगोल आक्रमणों से शुरू होकर हम मुगलकाल में प्रवेश कर जाते हैं मगर तब तक भारत का समाज आक्रमण के जरिये भारत में प्रवेश करने वाले मुगलों के शासन के स्थायित्व के दौर में आ जाता है और उत्तर से लेकर दक्षिण तक छोटी-बड़ी रियासतों में फैले हिन्दू राजाओं का अस्तित्व मुगल सल्तनत के अधीन आने लगता है और उनके साथ आया इस्लाम धर्म समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी होने लगता है जिसे रियाया पर गालिब करने का काम मुख्य रूप से बादशाहों के दरबार में रहने वाले मुल्ला-मौलवी और काजी ही करते हैं जिनका उद्देश्य भारत में अरबी इस्लामी मानकों की स्थापना रहता है परन्तु भारत की विशाल हर्दयी उदात्त संस्कृति को वे एक सीमा तक ही प्रभावित कर पाते हैं और इस देश की विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों की सामाजिक समरसता को तोड़ नहीं पाते क्योंकि भाषाई एकता और वहां की ‘देशज’ रवायतें सभी हिन्दू-मुसलमानों को एकता की डोर में बांधे रखने का काम करती हैं। इनमें पंजाब और बंगाल का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है। वैसे यह नियम केवल दिल्ली के आसपास के इलाके को छोड़ कर (उत्तर प्रदेश व बिहार) शेष सभी भाषाई राज्यों पर लागू होता है। इसीलिए हम पाते हैं कि मजहब के नाम पर पाकिस्तान निर्माण कराने में सबसे बड़ी भूमिका यूपी व बिहार के मुसलमानों की ही रही क्योंकि इन इलाकों में मुगल बादशाहों के दरबारों में बैठे मुल्ला-मौलवियों का सबसे ज्यादा प्रभाव था। इन्हीं राज्यों की मुस्लिम जनता का सबसे ज्यादा अरबीकरण भी हुआ जो उनकी वेषभूषा आदि तक में प्रकट हुआ। यहां तक हुआ कि जब पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह की सल्तनत मजबूती से काबिज हो गई तो 1936 के करीब यूपी व बिहार से ही इस्लामी उलेमा व मुल्ला पंजाब में ‘जेहाद’ तक करने गये मगर महाराजा के आगे उनकी एक नहीं चली जबकि महाराजा की फौज से लेकर हुकूमत के कामों में एक से बढ़ कर एक मुसलमान सिपहसालार और उमराव थे।
यह सब लिखने का भी यही कारण है कि हम भारत की उस सामाजिक बनावट को भावुक न होकर वैज्ञानिक दृष्टि से देख सकें और वर्तमान में अजान से लेकर हिजाब और लाऊड स्पीकर से लेकर हनुमान चालीसा गाने का जो विवाद चल रहा है और राजस्थान सरीखे राज्य में साम्प्रदायिक संघर्ष की घटनाएं हो रही हैं, उन सबका जायजा ले सकें। राजस्थान तो ऐसा  राज्य है जिसके मुख्यमन्त्री सत्तर के दशक में एक मुसलमान बरकतुल्लाह खां भी रहे हैं। राजस्थानी आन-बान और शान को बरकरार रखने में उनका कोई मुकाबला नहीं था। फिर इसके जोधपुर शहर में भगवा झंडे और चांद तारे के झंडे का विवाद क्यों पैदा हो गया? महाराष्ट्र में मस्जिदों पर लाऊड स्पीकरों का मुकाबला हनुमान चालीसा से हो रहा है। मध्य प्रदेश में गौमांस के सन्देह में दो आदिवासियों की हत्या की जा रही है। आखिर हम जा किधर रहे हैं? कहने को हम मंगल ग्रह नाप रहे हैं, चांद पर बस्तियां बसाने की कल्पना कर रहे हैं। अन्तरिक्ष में नये-नये प्रयोग कर रहे हैं मगर अपनी ही जमीन पर वैज्ञानिक स्थापनाओं की धज्जियां उड़ा रहे हैं। मस्जिद पर लाऊड स्पीकर लगाने से क्या अजान में मांगे जानी दुआएं ज्यादा असर दिखा देंगी। क्या हनुमान चालीसा जोर-जोर से पढ़ने से हम ज्यादा बलवान हो जायेंगे। 
हमें भारत का विकास करना है और यह तभी होगा जब सब हिन्दू और मुसलमान अपने-अपने धार्मिक विश्वासों को अपने-अपने घर पर रख कर वैज्ञानिक सोच के साथ अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लायेंगे। इस मामले में मुसलमानों को खास तौर पर सोचना होगा कि वे 14सौ साल पुराने लिखे कानूनों को गले से लगा कर न तो अपना विकास कर सकते हैं और न ही अपने समाज का। मुसलमानों की युवा पीढ़ी को आगे आकर 21वीं सदी में उसी तरह कमान संभालनी चाहिए जिस तरह सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान अपने देश में इस्लाम में नई रोशनी लाने का काम कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।