आज की ग्लोबल दुनिया में भारत का महत्व इसलिए सबसे ज्यादा है कि यहां विकास को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो कार्यक्रम बनाए गए, वे पूर्व में कभी नजर नहीं आए। हर तरफ मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया की धूम है, तो यह सिद्ध करता है कि सब कुछ विकास से जुड़ा है जिस पर फोकस होकर सरकार अपना काम कर रही है लेकिन इसके विपरीत अगर हम जम्मू-कश्मीर जैसे सीमांत राज्य का उल्लेख करें तो आज भी यही लगता है कि यह राज्य अपनी पुरानी रूढि़वादी परंपराओं से उभर नहीं पा रहा है। सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियां क्या कुछ नहीं करती और क्या कुछ नहीं होता इस मामले में कांग्रेस, भाजपा या नेशनल कांफ्रेंस या अन्य पार्टियां सबकी सब बेनकाब हैं। सच यह है कि कश्मीर में आतंकवाद अपनी जड़ें फैलाता रहा है और इसका विषैला असर हम सब भुगत रहे हैं। दो पार्टियों के मिल-जुलकर सरकार बनाने से लेकर गिरने तक और सरकार न बनने के अलावा राज्यपाल शासन के बावजूद अगर आतंकवाद जिंदा रहता है तो किसको दोष दें?
जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनावों का ऐलान क्या हुआ कि अलगाववादी विचारधारा वाली हुर्रियत को सबसे ज्यादा तकलीफ हुई और उसने इन चुनावों के बायकाट का ऐलान कर दिया। अभी दो दिन पहले फारुख अब्दुल्ला साहब ने भी पंचायत चुनावों के बायकाट की घोषणा कर डाली। इतना ही नहीं फारुक साहब की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने तो िवधानसभा और लोकसभा चुनावों के बहिष्कार की भी धमकी दे डाली। पीडीपी सुप्रीमो महबूबा भी उनके नक्शेकदमों पर चल रही हैं तभी तो उन्होंने भी इन चुनावों के बॉयकाट का ऐलान किया।
धारा 370 के तहत 35ए को लेकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में बहुत कुछ हुआ लेकिन अलगाववादियों को इस मामले में सबसे ज्यादा तकलीफ है। जम्मू-कश्मीर जैसे एक राज्य के नागरिकों को विशिष्ट दर्जे का अधिकार या वहां प्राेपर्टी जैसे खास अधिकार उन्हें मिलते हों, जबकि देश का अन्य नागरिक वहां जाकर इन अधिकारों का भागी नहीं हो सकता, यह व्यवस्था बड़ी अजीबोगरीब है। अब अगर यह कानून है तो कोई क्या करे परंतु इससे संवैधानिक व्यवस्था से जोड़कर शेष भारत के लोगों को वहां प्राेपर्टी खरीदने और बसने में दिक्कत क्यों है, यह बात हमारी समझ से बाहर है।
35ए का जिक्र इसलिए किया क्योंकि हुर्रियत और फारुख अब्दुल्ला ने पंचायती चुनावों से इसे जोड़ा और चुनाव बायकाट का ऐलान कर डाला। हमारा यह मानना है कि जम्मू-कश्मीर में जब तक शासन था, चाहे उसमें फारुख अब्दुल्ला कांग्रेस की बैसाखियों से चले या मुफ्ती महबूबा साईद ने भाजपा की बैसाखियों से अपनी सरकार चलाई लेकिन यह तो सच है कि आतंकवादियों ने जब चाहे अपना घिनौना खेल लोगों की हत्याओं और कश्मीरियों पर जुर्म करके खेला। जब तक जम्मू-कश्मीर में सरकारें रहीं वहां विकास के कामकाज नजर कम ही आए।
आतंकवादियों की रिहाई और पत्थरबाजों की माफी के अलावा कोई बड़ा काम कश्मीर घाटी में पिछले तीन साल में दिखाई नहीं दिया था।
अगर पंचायत चुनाव होते हैं तो छोटे स्तर पर एक आम आदमी को जब उसमें प्रतिनिधित्व मिलता है तो सचमुच विकास के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की पहल पैदा होती है। फिर यह आगे चलकर विधायक से जुड़ती है और अपने-अपने क्षेत्र में होने वाला विकास लोगों की भावनाओं के अनुरूप चलता है परंतु अलगाववादी विचारधारा वाले लोग और आतंकवाद समर्थक यही चाहते हैं कि सब कुछ हमारी मनमर्जी से चले। वे बंदूक के दम पर अपने चहेतों को बड़े-बड़े चुनावों में आगे लाने का काम करते हैं। दुर्भाग्य से दस-दस, पंद्रह-पंद्रह पर्सेंट के मतदान पर जहां राज्य में सरकारों का गठन होता रहा हो तो पंचायत चुनावों में ज्यादा प्रतिशत वोटिंग अलगाववादियों को कैसे पसंद हो सकती है?
दु:ख इस बात का है कि भारत माता की जय के बड़े-बड़े उद्घोष करने वाले फारुख अब्दुल्ला भी अलगाववादियों के साथ सुर में सुर मिलाने लगे हैं। इसीलिए हम उन्हें याद दिलाना चाहते हैं कि सच्चा विकास ही स्वतंत्र भारत में हमारी भारत माता का दूसरा नाम है। दिल्ली में भारत माता की जय और कश्मीर जाकर अलगाववादियों की भाषा बोलना फारुख साहब यह तो अच्छी बात नहीं। विकास जमीनी स्तर पर देश की एक आवाज है, इसी के दम पर आम दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं।
मेक इन इंडिया या डिजिटल इंडिया की पहचान अंतर्राष्ट्रीय बुलंदी तक अगर पहुंची है तो वह जमीनी विकास ही है। ऐसे में फारुख अब्दुल्ला को भी ये बातें समझानी पड़े तो बड़ा अजीब लगता है, क्योंकि एक सोये हुए इंसान को तो नींद से उठाया जा सकता है परंतु जो सोने का ढोंग भर रहा हो, उस इंसान को हम कैसे जगाएं?
लोकतंत्र की मजबूती तभी हो सकती है अगर आम आदमी को प्रतिनिधित्व मिले। अगर अपनी मनमर्जी और बंदूक के दम पर चलना है तो फिर बैलेट का कोई महत्व नहीं रह जाता। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अगर इसे जीवित रखना है तो इसके जमीनी स्तर पंचायत चुनावों को भी महत्व देना होगा। राज्यों में विधानसभा या लोकसभा चुनाव परिणामों के साथ-साथ आज की तारीख में लोकल बॉडी परिणामों का भी महत्व है। अलगाववादी जम्मू-कश्मीर में भी लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करना सीखें, तभी बात बनेगी।