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भर्ती पर बवाल क्यों

रेलवे रिक्रूटमेंट ग्रुप डी के रिजल्ट और भर्ती में गड़बड़ी की बात को लेकर लगातार तीन दिन हुए आंदोलन उपद्रव में बदल गया। ट्रेनों को आग लगाई गई, रेलवे की सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया।

रेलवे रिक्रूटमेंट ग्रुप डी के रिजल्ट और भर्ती में गड़बड़ी की बात को लेकर लगातार तीन दिन हुए आंदोलन उपद्रव में बदल गया। ट्रेनों को आग लगाई गई, रेलवे की सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया। आरआरबी और एनटीपीसी के रिजल्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए अभ्यर्थी छात्रों ने जमकर हंगामा मचाया। छात्र दोबारा रिजल्ट निकालने की मांग पर अड़े हुए हैं। पटना, फतुहा, आरा, बक्सर, सीतामढ़ी, नवादा, नालंदा, मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज समेत कुछ शहरों में छात्रों ने जमकर उत्पात मचाया। ट्रेन को आग लगाए जाने की घटना पर पुलिस को छात्रों पर लाठीचार्ज करना पड़ा और अश्रुगैस के गोले छोड़ने पड़े।
पुलिस ने कोचिंग संस्थानों के होस्टलों में घुसकर छात्रों की पिटाई की। उनके कमरों के दरवाजे जबरन तोड़े गए। वायरल हो रहे वीडियोज से साफ है कि एक तरफ छात्र हिंसक थे तो दूसरी तरफ पुलिस भी निरंकुश हुई है। जगह-जगह ​हिंसक प्रदर्शनों के बीच रेल मंत्रालय ने आगे की परीक्षाओं को टाल दिया है, इसके साथ ही एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है जो रेल मंत्रालय को रिपोर्ट  करेगी। समिति सभी उम्मीदवारों और हितधारकों से सुझाव लेगी और अपनी सुझाव रिपोर्ट में देगी। रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा भरोसा देने के बावजूद छात्र अभी मानने को तैयार नहीं हैं। पुलिस ने इस संबंध में पटना के खान सर समेत कुछ संस्थानों के खिलाफ  एफआईआर दर्ज कर ली है। यह एफआईआर गिरफ्तार​ किए गए छात्रों के बयान के आधार पर दर्ज की गई है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि छात्रों में गुस्से की वजह क्या है? रेलवे ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के समय एनटीपीसी के माध्यम से 35,308 पोस्टों के लिए और ग्रुप डी के लिए लगभग एक लाख तीन हजार पोस्टों के लिए  आवेदन मंगाया। फरवरी-मार्च में छात्रों ने फार्म भरा। अप्रैल-मई में नई सरकार बन गई। जुलाई तक परीक्षा लेने की सम्भावित तारीख दी गई थी लेकिन साल 2019 में परीक्षा ली  नहीं गई। वर्ष 2021 में परीक्षा हुई और वर्ष 2022 में सीबीटी-1 एनटीपीसी का ​रिजल्ट  जारी किया गया।
उस समय अधिसूचना में यह बात लिखी गई थी कि रेलवे बोर्ड सीबीटी-1 में 20 गुना रिजल्ट  देगा लेकिन इन्होंने एक छात्र को पांच जगह गिना। इससे यह तो हुआ कि  छात्र को 20 गुना रिजल्ट दिया गया, वास्तविकता में रेलवे बोर्ड ने मात्र 10-11 गुना रिजल्ट ही दिया । आरआरबी एनटीपीसी परीक्षा में कुछ पदों के लिए आवेदन की न्यूनतम योग्यता 12वीं पास है, जबकि कुछ के लिए ग्रेजुएशन है। ये पद पे ग्रेड के हिसाब से अलग-अलग लेवल में बांटे गए। इस परीक्षा के जरिये केवल दो से लेकर 6 तक की नियुक्तियां होती हैं। लेवल-2 की एक पोस्ट जूनियर क्लर्क की है। इसके लिए न्यूनतम योग्यता 12वीं पास है। स्टेशन मास्टर की पोस्ट लेवल 6 की है,​ जिसके लिए न्यूनतम योग्यता ग्रेजुएशन है। परीक्षा 12वीं पास और ग्रेजुएशन वालों की एक साथ आयोजित की गई, इसलिए परिणाम में ग्रेजुएशन वालों का दबदबा ज्यादा रहा। ज्यादा अंक वाले उम्मीदवार सभी एलॉट की स्क्रीनिंग लिस्ट में चयनित हो गए। इसमें बड़ी संख्या में एक ही उम्मीदवार का एक से अधिक एलॉट में चयन हो रहा है। छात्रों का लगा कि इससे उनको नौकरी मिलने की सम्भावनाएं खत्म ही हो गई हैं। छात्रों के गुस्से का बड़ा कारण यह भी है कि रेलवे की भर्ती चार साल बाद निकली थी और उसमें भी आवेदन और परीक्षा के बीच दो वर्ष बीत गए। ऐसी स्थिति में छात्रों का धैर्य खत्म हो गया। रेलवे अपनी सफाई दे रहा है। रेलवे का कहना है कि कम पद पर बहुत अधिक आवेदन आने से उनकी दिक्कत बढ़ गई थी। इसीलिए परीक्षा को दो चरणों में कराने का फैसला किया गया। रेलवे भर्ती बोर्ड ने सीधे तौर पर छात्रों को चेतावनी दी कि उपद्रव करने वाले छात्रों को रेलवे में नौकरी नहीं मिलेगी। इस चेतावनी ने भी छात्रों के गुस्से को भड़का दिया।
इस उपद्रव के बीच कही न कहीं कोचिंग संस्थानों के उकसाने की बात सामने आ रही है। छात्रों का आंदोलन नेतृत्व विहीन था और वे केवल फेसबुक और ट्विटर पर अभियान चला रहे थे। सवाल यह भी है कि राज्य में विभिन्न शहरों में बड़े रेलवे स्टेशनों पर छात्र इतनी बड़ी संख्या में इकट्ठे कैसे हो गए? इसमें कोचिंग संस्थानों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। सवाल और भी हैं ​कि जब छात्रों ने डिजिटल आंदोलन चलाया था तब रेलवे मंत्रालय खामोश क्यों रहा। रेलवे मंत्रालय और पुलिस छात्रों के आक्राेश को भांपने में नाकाम रही। रेलवे भर्ती बोर्ड सही समय पर परीक्षा रद्द करने का फैसला ले लेता और छात्रों की ​शिकायतो  पर ध्यान देता तो उपद्रव होता ही नहीं। रेल मंत्री पहले ही छात्रों से संवाद कर सकते थे। आजकल सोशल मीडिया काफी प्रभावशाली है, एक सूचना पर छात्र एकजुट हो सकते हैं। 
कानूनी दृष्टि से अपने ही देश की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाना अपराध है, कानून अपना काम करेगा। काफी समय से ऐसा देखा जा रहा है कि भर्ती परीक्षओं के पेपर लीक हो जाते हैं, बार-बार  परीक्षाएं होती हैं। परिणामों में अनियमितताएं होती हैं। पूरे पेपर लीक और नकल सिंडिकेट काम कर रहा है। ऐसे में बेरोजगार छात्र जाएं तो जाएं कहां। भर्ती में अनियमितताओं के विरुद्ध​ ​हिंसक प्रदर्शन केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में ही क्यों हो रहे हैं जबकि परीक्षा तो राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। दरअसल बिहार और उत्तर प्रदेश में रेलवे की नौकरी का क्रेज ज्यादा है। यह भी वास्तविकता है कि पिछले चार दशकों में सर्विस सैक्टर भी बेरोजगारी के निवारण का मुख्य विकल्प नहीं बन पाया। कोरोना काल में बेराजगारी की दर काफी बढ़ चुकी है। रोजगार के स्रोत सूख चुके हैं। इस ओर ध्यान देना जरूरी है। अन्यथा आंदोलन और  भी उग्र हो सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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