लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

कतरे गए चीनी निवेश के पंख

वर्ष 1991 में जब पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार थी और वित्त मंत्री थे मनमोहन सिंह। देश की अर्थव्यवस्था लगभग खराब होती जा रही थी। अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पी.वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियों की शुरूआत की।

वर्ष 1991 में जब पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार थी और वित्त मंत्री थे मनमोहन सिंह। देश की अर्थव्यवस्था लगभग खराब होती जा रही थी। अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पी.वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियों की शुरूआत की। नरसिम्हा राव को आर्थिक उदारीकरण की नीतियों का जनक माना जाता है। यही तो समय था, जब देश में विदेशी कम्पनियों को कुछ शर्तों के साथ भारत में पैसे लगाने की छूट दी गई। तब से लेकर आज तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है। 2015 वो साल था, जब भारत ने चीन और अमेरिका को भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में पीछे छोड़ दिया। भाजपा सत्ता में थी और एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रास्ते और ज्यादा खोले गए। भाजपा जब विपक्ष में थी तो उसने एफडीआई का जबर्दस्त विरोध किया था।
आमतौर पर देश में एफडीआई के लिए आटोमेटिक रूट का ही इस्तेमाल होता है। विदेशी कम्पनियां किसी भी भारतीय कम्पनी या सैक्टर में पैसा लगा सकती हैं। सरकार ने कुछ क्षेत्र ऐसे रखे हुए हैं जिनमें निवेश के ​लिए सरकार की मंजूरी लेनी पड़ती है। भाजपा सरकार ने कुछ क्षेत्रों में सौ फीसदी निवेश की छूट दी थी। कुछ क्षेत्रों में निवेश की सीमा तय की गई है। सरकार ने अब एफडीआई ​िनयमों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। यह नियम इसलिए बदल गए ताकि चीन और अन्य पड़ोसी देश कोई शैतानी न कर सकें। अब भारत के साथ सीमा सांझा करने वाले देश को भारत में निवेश करने के लिए सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है।
यह नियम प्रत्यक्ष या परोक्ष दोनों तरह के निवेश पर लागू होगा। पहले इस तरह की पाबंदी केवल पाकिस्तान और बंगलादेश पर ही थी। कोरोना वायरस की महामारी के कारण अधिकतर भारतीय कम्पनियों के शेयरों में गिरावट आई है। ऐसी स्थिति में भारतीय कम्पनियों का सस्ते में अधिग्रहण हो जाए और इन कम्पनियों का नियंत्रण विदेशी हाथ में चले जाने का खतरा पैदा गया है। भारत इस मामले में चीन से खतरा महसूस करने लगा था। चीन काफी धूर्त है। ड्रेगन की विस्तारवादी नीतियां हमेशा भारत के विरुद्ध रही हैं। सारी दुनिया जानती है कि चीन पहले देशों को ऋण देता,​ फिर उन्हें अपने कर्ज के जाल में फंसा लेता है आैर बाद में उन देशों की सम्पत्ति हड़प लेता है। चीन ने पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मलेशिया और फिलीपींस में ऐसा ही किया। कुछ देशों काे तो समझ आ गई लेकिन कुछ अभी भी चीन के जाल में फंसे हुए हैं। चीन ने अनेक देशों में भारी-भरकम निवेश कर रखा है। हाल ही में चीन के सैंट्रल बैंक, पीपुल्स बैंक आफ चाइना ने भारत की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनैंस कम्पनी हाउसिंग डिवैलपमैंट फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड (एचडीएफसी) में 1.01 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। एक अनुमान के अनुसार चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप में करीब चार अरब डालर निवेश किए हैं। चीन के निवेश की रफ्तार इतनी तेज है कि भारत के 30 यूनिकार्न में से 18 को चीन से वित्त पोषण मिला हुआ है।
चीन ने चुपके से एचडीएफसी के करोड़ों के शेयर अपने नाम कर लिए।  अब चीनी बैंक की एचडीएफसी में ​हिस्सेदारी एक फीसदी से ज्यादा हो गई है। एचडीएफसी देश का बड़ा प्राइवेट बैंक है। कोरोना वायरस की वजह से जब दुनियाभर की मार्किट क्रेश हुई तो खामियाजा एचडीएफसी को भी भुगतना पड़ा। चीन की नजर भारत की फार्मा कम्पनी पर भी है।
चीन महामारी के चलते दुनिया भर में फैली अफरा-तफरी और शेयर बाजारों में ​िगरावट को अपने लिए एक बढ़िया मौके के तौर पर देखता है और धड़ाधड़ निवेश कर रहा है। दिसम्बर 2019 से अप्रैल 2020 के दौरान भारत को चीन से 2.34 अरब डालर यानी 14,846 करोड़ रुपए के एफडीआई मिले हैं। चीन बहुत कुछ सीधे करता है और उससे कहीं अधिक आवरण में करता है। यह भी सम्भव है कि उसने मारीशस, सिंगापुर या अन्य देशों की कम्पनियों का वित्त पोषण कर भारत में निवेश कर रखा हो। केन्द्र सरकार ने चीन की चाल को विफल बनाने के लिए भारतीय कम्पनियों में वर्तमान या भावी निवेश (प्रत्यक्ष या परोक्ष) के स्वा​मित्व के ऐसे हस्तांतरण के लिए पहले से ही सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य बना दिया है, जिसमें लाभ हासिल करने वाला स्वामित्व पड़ोसी देशोें का हो।
कई और देशों ने भी एफडीआई के नियमों में बदलाव किया है। 2019 में यूरोपीय संघ ने सुरक्षा का हवाला देते हुए एफडीआई की जांच-पड़ताल किए जाने के नियम बनाए हैं। अमेरिका ने चीन से होने वाले निवेश की जांच सख्त कर दी है। चीन अमेरिका में भी बड़े पैमाने पर सम्पत्तियों का अधिग्रहण कर रहा था। आस्ट्रेलिया ने भी कोरोना वायरस संकट के बीच राजनीतिक सम्पत्तियों के सस्ते भाव बिक जाने के खतरे को भांपते हुए विदेशी निवेशकों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहण के ​नियमों काे सख्त किया है। किसी भी देश का विकास उस देश की कम्पनियों पर निर्भर करता है क्योंकि वह ही देशवासियों को रोजगार ​प्रदान करती हैं। कम्पनियों को कारोबार बढ़ाने के ​लिए निवेश की जरूरत होती है। इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है लेकिन इसका नुक्सान यह है कि विदेशी कम्पनियों का देश के बाजार पर अधिक नियंत्रण हो सकता है। विदेशी निवेशकों को भारतीय श्रम से कोई लेना-देना नहीं होता। वह केवल अपने हित देखती हैं। इसलिए जरूरी है कि विदेशी निवेश पर पैनी नजर रखी जाए और जो भी हो कायदे और कानूनों के तहत जांच-पड़ताल के बाद ही हो। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।