मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने निर्वासन से लौटने के पांच महीनों बाद चुनावों में प्रचंड जीत हासिल करते हुए सत्ता में जबर्दस्त वापसी की है। उनकी मालदीवियन डैमोक्रेटिक पार्टी ने 87 सदस्यीय सदन में दो तिहाई बहुमत हासिल किया है। मोहम्मद नशीद ने जीत के बाद सरकारी भ्रष्टाचार खत्म करने और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने का संकल्प लिया है। नशीद के चिर-प्रतिद्वंद्वी और निरंकुश पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को पांच साल के कार्यकाल के बाद सत्ता से बेदखल होने को मजबूर होना पड़ा जिसके बाद हुए चुनाव जनमत का पहला परीक्षण हैं।
यामीन मनी लांड्रिंग और गबन के आरोपों का सामना कर रहे हैं। नशीद की पार्टी के ही इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने सितम्बर के राष्ट्रपति चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी जिसके बाद नशीद निर्वासन से लौटे। यामीन ने नशीद को चुनाव लड़ने से रोक दिया था। नशीद को भारत समर्थक माना जाता है और उनकी सत्ता में वापसी भारत के लिए राहत भरी खबर है। मालदीव बहुत छोटा सा देश है। मौर्य वंश के सम्राट अशोक के समय में बौद्ध धर्म मालदीव पहुंचा और वहां के शासकों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण भी दिया। सन् 1887 में इंग्लैंड ने इसे अपना उपनिवेश बना लिया और 1965 में आजाद होते ही भारत और मालदीव ने राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए क्योंकि बाहरी शक्तियों से सुरक्षित रहने के लिए मालदीव से भारत की निकटता अत्यधिक आवश्यक थी।
मालदीव हिन्द महासागर में ऐसी जगह स्थित है जहां वह भारत के इर्द-गिर्द सुरक्षा कवच में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मालदीव एक द्वीप नहीं बल्कि 1192 द्वीपों की शृंखला है। उसकी आबादी भले ही पांच लाख से भी कम हो किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि वह ऐसे समुद्री मार्गों के मध्य स्थित है जहां से दुनिया का दो तिहाई तेल और मालवाहक जहाजों का आधा हिस्सा गुजरता है। मालदीव की लक्षद्वीप से दूरी महज 1200 किलोमीटर है। ऐसे में भारत के लिए यह देश सामरिक महत्व का भी है। भारत ने हमेशा ही मालदीव की रक्षा की है। 1998 में जब अब्दुल्ला लुथुफी के नेतृत्व में भाड़े के सैनिकों ने वैधानिक सरकार का तख्ता पलट करने का प्रयास किया था तब तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत सहित कई देशों से सैन्य हस्तक्षेप का अनुरोध किया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सेना को तुरन्त कार्रवाई का आदेश दिया था। भारतीय सेना ने मालदीव की राजधानी माले में पैराशूट से सैनिक उतारे तथा नौसैनिक युद्धपोत को तैनात कर सरकार को बचा लिया। भारत के इस सैन्य हस्तक्षेप को ऑप्रेशन कैक्टस का नाम दिया गया था, जो दोनों देशों के बीच मित्रता की मिसाल थी। बदलती परिस्थितियों में अब्दुल्ला यामीन ने सत्ता पर कब्जा किया आैर धीरे-धीरे मालदीव की भारत से मित्रता घटती गई और उन्होंने मालदीव को चीन की गोद में बैठा दिया। यामीन ने तानाशाह का स्वरूप धारण कर लिया और विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं और अदालतों के जजों को जेल में डाल दिया। राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार मोहम्मद नशीद को देश छोड़कर श्रीलंका में निर्वासित जीवन बिताना पड़ा।
यामीन ने मीडिया को भी कुचलने का प्रयास किया लेकिन मालदीव के नागरिकों को घुट-घुटकर जीवन जीना स्वीकार्य नहीं था। उन्होंने वोट की ताकत के जरिये यामीन को करारी हार दी। यामीन के कार्यकाल में भारतीयों को अपमानित किया जाता रहा। भारतीय कम्पनियों से अनुबंध रद्द किए गए और चीनी कम्पनियों को खुला प्रवेश दिया गया। हालात ऐसे हो गए थे कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भारत सरकार को मालदीव पर हमला करने की सलाह दे डाली थी। चीन ने मालदीव को अपने कर्ज के जाल में फंसा लिया था। चीन की हमेशा यह चाल रहती है कि वह पहले किसी देश में घुसपैठ करता है, फिर वहां अपने पांव जमाता है, फिर उसे कर्ज के जाल में फंसाता है और फिर उसकी जमीन हथिया लेता है। जैसा कि उसने श्रीलंका, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीकी देशों में किया है। मालदीव की जनता को चीन का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं था। मालदीव पर अब चीन का कर्ज तीन अरब डॉलर से अधिक का है जिससे उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है। भारत आैर चीन के बीच मालदीव में प्रभुत्व की जंग चलती रहती है।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में चीन ने इस द्वीप देश में वन बैल्ट, वन रोड प्रोजैक्ट के तहत करोड़ों रुपए निवेश किए थे। नशीद के पुनः सत्ता में आने पर चीन के कर्ज का मूल्यांकन होगा और यामीन सरकार के दौरान जिन लोगों की हत्याएं की गईं, उन्हें न्याय दिलाने का काम होगा। नशीद के सत्ता में आने से मालदीव फिर से सहिष्णु बनेगा और साथ ही भारत से मैत्री भी पहले की तरह प्रगाढ़ होगी। एमडीपी की सत्ता में वापसी से एक बात स्पष्ट हो गई है कि आज की दुनिया में लोग खुली हवा में सांस लेना चाहते हैं, उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी चाहिए। तानाशाही की आड़ में उन्हें भ्रष्टाचार स्वीकार्य नहीं है।