श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवेक

श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवेक
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिन्दू पक्षों द्वारा दायर 18 याचिकाओं को सुनवाई के योग्य माना है। इसके साथ ही इस मामले में अब नई कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है। यह याचिकाएं ईदगाह मस्जिद को हटाकर जमीन का कब्जा देने और श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मंदिर के पुनर्निर्माण की मांग को लेकर दायर की गई थी। मुस्लिम पक्ष ने वक्फ एक्ट का हवाला देते हुए हिन्दू पक्ष की याचिकाओं को खारिज किए जाने की दलीलें पेश कीं लेकिन हाईकोर्ट ने उनको खारिज कर दिया। यहां तक श्रीकृष्ण जन्मभूमि का सवाल है मेरा यही कहना है कि सार्वजनिक विवेक देशकाल आैर परिस्थितियों की उपज होता है और विवेक कहता है ​िक धार्मिक विवादों को अदालतों के माध्यम से सुलझाने की बजाय आपसी समझ से सुलझाया जाना चाहिए जिससे देश में प्रेम और भाईचारा हर हालत में कायम रह सके। श्रीराम मंदिर का इतिहास गवाह है कि मंदिर निर्माण के लिए सरकारों ने बातचीत से मसला सुलझाने की कोशिश की लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देकर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। अगर विवेक से मामला सुलझा लिया जाता तो संघर्ष इतना लम्बा नहीं होता। इतिहास बोल-बोल कर कहता है ​िक मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर बने मंदिर को तीन बार तोड़ा आैर चार बार बनवाया जा चुका है। इस स्थान के मालिकाना हक को लेकर लम्बे समय से दोनों पक्षों में विवाद चल रहा है।
इतिहास में उल्लेख है कि सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ई. में बनवाया गया। हालांकि, महमूद गजनवी ने सन् 1017 ई. में आक्रमण कर यहां लूट मचा दी और मंदिर को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद एक अन्य हिंदू राजा ने फिर मंदिर का निर्माण कराया। वह मंदिर भी मुगलों द्वारा तोड़ दिया गया। ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। सन् 1669 में इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया। इसके बाद ईदगाह को तो कोई हिंदू राजा नहीं हटा सके, हालांकि उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा यहां मंदिर के गर्भ गृह का पुनरुद्धार और निर्माण कार्य शुरू कराया गया। जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। अब यहां मंदिर और ईदगाह दोनों हैं।
1968 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था गठित की गई जिसने मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर ​लिया। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने अपने कब्जे से कुछ जगह मंदिर के लिए छोड़ी और उसके बदले में पास की जगह उसे दे दी गई। हिन्दू पक्ष ने इस समझौते को रद्द करने के ​िलए याचिकाएं दायर की तब से ही मामला अदालतों में चल रहा है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि जिस जगह पर शाही ईदगाह का निर्माण किया गया उसी जगह पर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि और मंदिर का गर्भगृह है। अब जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग अपना सर्वे भी पूरा कर चुका है और इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रायल शुरू करना स्वीकार भी कर चुका है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि यह मामला काफी लम्बा चलेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ही एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी।
मेरी शुरू से ही राय रही है कि मुस्लिम समुदाय श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिद को स्वयं ही हिन्दुओं को सौंप दे जिससे भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का सितारा बुलंद होकर पूरी दुनिया को यह संदेश दे सके कि भारत अपनी आजादी की लड़ाई की उस विरासत को आज भी कसकर बांधे हुए है जिसने 1947 में अंग्रेजों से आजादी पाकर इस महाद्वीप के सभी देशों के सामने आजाद होने की मिसाल पेश की थी। यह काम देश के इन दोनों समुदायों के प्रबु​द्ध व विद्वान लोगों के बीच इस प्रकार होना चाहिए कि आम जनता के बीच भारत की हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश जाए। इसके लिए केवल राष्ट्र व मानवता के लिए प्रतिबद्धता की जरूरत है। इस मामले पर अदालतों में जो लड़ाई चल रही है वह साक्ष्यों के आधार पर ही होगी। साक्ष्य तो यही बोल रहे हैं कि गुम्बद मंदिर की दीवारों पर ही खड़े हैं। व्यर्थ में इस मुद्दे को अदालत में घसीटने से कोई ज्यादा लाभ नहीं हो सकता। अब जबकि श्रीराम मंदिर का भव्य निर्माण हो चुका है आैर वह देशभर के ​िहन्दुआें की आस्था का केन्द्र बन चुका है तो श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर भी सियासत नहीं होनी चाहिए। भारत कानून से चलने वाला देश है। अतः मथुरा और काशी मामले में भी ​िहन्दू पक्ष ने अपनी आवाज बुलंद की है तो वह भी अदालतों द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद ही की है। अतः दोनों समुदायों को विवेक से काम लेना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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