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अपने ही देश के भीतर…

असम-मिजोरम झड़प के बाद मिजोरम को शेष भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 306 को असम सीमा के पास बंद कर दिया गया था।

असम-मिजोरम झड़प के बाद मिजोरम को शेष भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 306 को असम सीमा के पास बंद कर दिया गया था। इस नाकेबंदी के चलते मिजोरम पूरे देश से कट गया था। वहां न कोई चीज पहुंच रही थी और न ही कोई चीज बाहर आ रही थी। मिजोरम के लोगों को खाने-पीने और रोजमर्रा की दूसरी चीजों की किल्लत हो रही थी। राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रकों की लम्बी कतार लग गई थी। अंततः दस दिन के बाद असम के दो मंत्रियों के प्रयासों से जरूरी सामान लेकर खड़े ट्रकों ने मिजोरम की सीमा में प्रवेश कर लिया है। असम के मंत्रियों ने स्थानीय लोगों को वाहनों की आवाजाही न रोकने के लिए मना लिया है। 
जुलाई माह में दोनों राज्यों के बीच हुई गोलीबारी और खूनी संघर्षों में 6 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद ही असम की ओर से सीमा पर अघोषित बंदी जारी थी। दोनों राज्यों में कई दौर की बातचीत के बाद भी स्तिथि सामान्य नहीं हो सकी थी। कछार जिले के गार्जियन यानी संरक्षक मंत्री अशोक सिंघल और वनमंत्री परिमल शुक्ला ने ट्रांसपोर्ट को सामान्य बनाया। हालांकि कुछ वाहनों ने मंत्रियों के पहुंचने से पहले ही जाने की कोशिश की थी लेकिन स्थानीय लोगों के समूह ने ट्रकों पर पथराव शुरू कर ​दिया था, जिससे स्थिति तनावपूर्ण बन गई थी। स्थानीय लोगों का कहना था की ‘‘हम असम पुलिस के जवानों की मौत को इतनी आसानी से भूल नहीं सकते, हमने बहुत झेल ​लिया  है औरअब हम स्थाई समाधान चाहते हैं। हम केवल न्याय मांग रहे हैं।’’
अघोषित नाकेबंदी दस दिन रही लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही है। असम-मिजोरम सीमा पर सीआरपीएफ के जवानों को तैनात किया गया था। दोनों तरफ खाइयां खोदी जा रही थीं। यह दृश्य देखकर तो ऐसे लगता था कि जैसे दो देशों में युद्ध के हालात बन गए हैं। इस तरह की नाकेबंदी 2020 में भी कर दी गई थी, उस समय भी दोनों राज्यों में सीमा विवाद हुआ था। अब की बार जो हालात बने वह गृह युद्ध जैसे थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस पर हमला करे और पुलिसकर्मियों की हत्या कर दे। एक राज्य दूसरे राज्य में जाने से अपने लोगों को मना करे। असम ने अपने लोगों को मिजोरम नहीं जाने का परामर्शपत्र जारी किया था। दो मुख्यमंत्री खुलेआम एक-दूसरे पर इल्जाम लगाते रहे। दो राज्यों की पुलिस एक-दूसरे के अधिकारियों को हाज़िर होे का हुक्म दे। ​मिजोरम पुलिस ने तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा पर हत्या के प्रयास, आपराधिक षड्यंत्र और अन्य जुर्मों का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया था। उधर असम की पुलिस दिल्ली में मिजोरम के सांसद को गिरफ्तार करने उनके आवास पर पहुंच गई और उनको न पाकर उनके आवास पर नोटिस चिपका कर चली गई। 
जो कुछ भी हुआ वह शर्मसार कर देने वाला है। आमतौर पर इस तरह के विवाद छिड़ने पर मुख्यमंत्री एक-दूसरे से फोन पर या मिलकर बात कर लेते हैं। आखिर वे कोई शत्रु देश तो है नहीं। इस मामले में दोनों तरफ से लगातार बयान दिए जा रहे हैं जैसे एक राज्य दूसरे का शत्रु है। सीमा विवाद नया नहीं है। हिंसा पहले भी होती रही है, लोगों का खून पहले भी बहा है। लेकिन यह पहली बार है कि राज्य सरकारें हिंसा के बाद एक-दूसरे के खिलाफ अपनी जनता को उत्तेजित करती दिखाई दी। क्या इससे पहले कभी सोचा गया था कि आखिर भारत कहां जा रहा है? भारत जैसे बहुभाषी, बहु सांस्कृतिक देश में अगर राजनीति का मुख्य बिन्दु भाषाई, धार्मिक, जातीय या सांस्कृतिक पहचान बन जाए तो उसका परिणाम ऐसी घटनाओं के रूप में सामने आता ही है। समाज के टुकड़े-टुकड़े, एक-दूसरे को लेकर संदेह, एक-दूसरे से भय और इस तरह की एक-दूसरे पर हिंसा की तैयारी, एक-दूसरे को ‘घुस कर मारूंगा’ जब एक मुहावरा बन जाए तो वह अपना असर दिखाता ही है। जुबानी जंग आचरण में तबदील हो जाती है। अभी जो कुछ असम और मिजोरम में हुआ, उसे इसी संदर्भ में समझने की जरूरत है। सीमा विवाद के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन जो अभी हुआ वह चिंताजनक है। किसी भी राज्य में दूसरे राज्यों के खिलाफ घृणा का प्रसार करना, उनको मुंहतोड़ जवाब देने की धमकियां देना भयावह है। ऐसी नौबत आनी ही नहीं चाहिए कि विवाद आग की लपटों में बदल जाए। किसी भी राज्य को अधिकार नहीं है कि वह दूसरे राज्यों में जाने वाली रेलवे लाइन को उखाड़ दें। 
गृहमंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद विवाद अब शांत होता दिखाई दे रहा है। मिजोरम और असम के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए स्पेस टैक्नोलोजी का उपयोग किया जाएगा। डिपार्टमैंट ऑफ स्पेस और नार्थ इस्टर्न काउंसिल का संयुक्त इतिशिएटिव नार्थ ईस्टर्न स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर बार्डर एरिया की सैटेलाइट मैपिंग करेगा। इससे इंटर स्टेट बाउंड्री को वैज्ञानिक रूप से सीमांकित करने में मदद ​मिलेगी। अब दोनों राज्यों की सरकारें भी एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज मामलों को लेकर नरम रुख अपना रही हैं। बेहतर यही होगा की जनभावनाओं को भड़काने की बजाय स्थिति को सामान्य बनाने के लिए गम्भीरता से प्रयास किए जाएं। घृणा का माहौल पैदा करने से जनसमूहों के आक्रोश में कभी भी उबाल आ सकता है। एक देश के भीतर ऐसा हिंसा को ​िकसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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