चालू वर्ष 2023 भारत की प्रशासनिक सेवाओं के इतिहास में मील का पत्थर माना जायेगा क्योंकि इस सेवा के घोषित परिणामों में 34 प्रतिशत स्थान महिलाओं को मिले हैं। कुल 933 स्थानों में से महिला उम्मीदवार 320 स्थानों पर सफल रही हैं। इसके साथ ही प्रथम चार स्थानों पर भी महिला प्रत्याशी कामयाब रही हैं। इसे देख कर कहा जा सकता है कि पिछले 74 सालों से जो देश भारत अपनी तरक्की की यात्रा कर रहा है उसमें महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय हो चुकी है परन्तु यह तस्वीर का केवल एक पहलू है क्योंकि यदि समग्रता में देखा जाये तो भारत की कुल कार्यरत आबादी में महिलाओं का प्रतिशत आज भी 17 के आस-पास ही माना जाता है परन्तु कार्यरत आबादी को भी विकास का केवल एक आंशिक पैमाना ही कहा जा सकता है क्योंकि किसी भी समाज के समग्र विकास का पक्का पैमाना उस समाज में महिलाओं की हैसियत ही होती है अर्थात समाज उनका सम्मान किस तरह और किस रूप में करता है। बेशक सभी पैमानों पर भारत लगातार 1947 के बाद से आगे बढ़ रहा है और महिलाएं भी हर क्षेत्र में आगे बढ़ती नजर आ रही हैं लेकिन महिलाओं के समग्र विकास से कम महत्व समाज के दबे-कुचले व पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोगों के विकास का नहीं होता।
प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के स्थानिक प्रशिक्षण केन्द्र (रेजीडेंशियल कोचिंग सेंटर) के 24 प्रशिक्षु भी इस बार प्रसासनिक सेवाओं में सफल रहे हैं। विश्वविद्यालय के इस केन्द्र में प्रति वर्ष दलितों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के 100 प्रशिक्षु लिये जाते हैं और इनमें से इस बार 24 प्रशिक्षु सफल रहे हैं। यह भी एक रिकार्ड माना जा रहा है। इसके साथ अखिल भारतीय स्तर पर कुल सफल प्रत्याशियों में से एक तिहाई राज्य बिहार मूल राज्य के विद्यार्थी रहे हैं। एक जमाना था जब प्रशासनिक सेवाओं पर केवल कथित कुलीन व संभ्रान्त वर्ग के लोगों का कब्जा ही माना जाता था। इसके बाद आजादी मिलने पर दक्षिण भारत के राज्यों के छात्रों का प्रदुर्भाव रहा और उत्तर भारत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र ही इस परीक्षा काे पास करने का सपना पाल सकते थे परन्तु 90 के दशक के बाद आईएएस परीक्षा में भाषा का माध्यम चुनने की जैसे-जैसे छूट मिलती गई वैसे-वैसे ही उत्तर भारत के छात्रों की हिम्मत भी बढ़ती गई और अंग्रेजी भाषा में कमजोर रहने की वजह से उनकी प्रतिभा नहीं दब सकी। यही वजह है कि अब उत्तर भारत के विद्यार्थी भी इस सेवा में अधिक संख्या में आने लगे हैं परन्तु 90 के दशक में ही आर्थिक उदारीकरण शुरू होने की वजह से कार्पोरेट क्षेत्र की नौकरियों में ऊंची तनख्वाहें मिलने की वजह से होनहार छात्रओं की रुची इस तरफ बहुत बढ़ी जिसकी वजह से प्रतिभा की ‘क्रीम’ माने जाने वाले विद्यार्थी उस तरफ मुड़ चले। अतः कुछ विश्लेषक मानते हैं कि फिलहाल आईएएस की तरफ प्रतिभा की दूसरी श्रेणी के छात्र ही आकर्षित हो पाते हैं क्योंकि क्रीम प्राइवेट विदेशी व कार्पोरेट कम्पनियों की लाखों रुपये के मासिक वेतन की तरफ चली जाती है। इस सबके बावजूद प्रशासनिक सेवाओं में आने वाली युवा पीढ़ी समाज सेवा व देश प्रेम की भावना से इस तरफ आती है। बेशक इसमें अच्छे वेतन व सेवाशर्तों का लोभ भी रहता है और साथ ही ऊंची शैली के प्रति आकर्षण भी रहता है मगर इस सबमें सबसे बड़ा भाव जिम्मेदारी का रहता है।
भारत के लोगों को तब आश्चर्य भी होता है जब किसी जिले का कलेक्टर कोई नव युवक होता है और वह पूरे जिले का प्रशासन कुशलतापूर्वक चलाता है। यह उपलब्धि कोई छोटी नहीं कही जा सकती। क्योंकि अन्नतः कार्यपालिका के जरिये ही हमारी लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली चलती है। यह प्रणाली तब और खूबसूरती बिखेरती है जब उत्तर भारत का अधिकारी दक्षिण भारत के किसी जिले का शासन चलाता है और दक्षिण भारत का कोई युवा या युवती उत्तर भारत के किसी जिले का पुलिस कप्तान बनता है। अतः प्रशासनिक सेवा राष्ट्रीय एकता को भी मजबूत करती है। दलित या अल्पसंख्यक वर्ग का इन सेवाओं में सफल होने वाला हर प्रत्याशी भारत की सर्वांगीण प्रगति को ही दर्शाता है और सन्देश देता है कि ऐसा केवल लोकतन्त्र में ही संभव है। अतः लोकतन्त्र को सजीव बनाये रखने में भी प्रशासनिक अधिकारी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और गांधी व अम्बेडकर के सपने के भारत को सजीव करते हैं। महिलाओं के अधिक संख्या में सफल होने को भी हम इसी श्रेणी में रख सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा