लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

सेना में महिला शक्ति लेकिन…

सेना में महिलाओं की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, उससे आने वाले दिनों में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे।

सेना में महिलाओं की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, उससे आने वाले दिनों में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। आज यद्यपि गांव से लेकर महानगरों तक महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही हैं फिर भी कहीं न कहीं उनसे भेदभाव दिख ही जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शार्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली सभी महिला अफसर स्थायी कमीशन की हकदार होंगी। हालांकि युद्ध में सीधे लड़ने का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और सेना पर छोड़ दिया है और इसे नीतिगत मामला बताया है, मगर थलसेना में महिला अधिकारियों की कमांड पोस्टिंग पर रोक को  बराबरी के अधिकार के खिलाफ बताया है।
स्थायी कमीशन का मतलब है कि महिलाएं रिटायरमैंट की उम्र तक सेना में काम कर सकती हैं या फिर अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ सकती हैं। शार्ट सर्विस कमीशन में महिला अधिकारी सिर्फ 14 वर्ष के लिए सेवा दे पाती थी और वे पैंशन पाने की  पात्र नहीं होती थी।सुप्रीम कोर्ट में यह लड़ाई 9 साल तक चली। सरकार ने स्थायी कमीशन नहीं देने को लेकर कई दलीलें दीं, वहीं सरकार की दलीलों के विरोध में महिला सैनिकों की बहादुरी के किस्से भी सुनाए गए। इन महिला सैनिकों में मेजर मिताली मधुमिता, स्क्वॉड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल, फ्लाइट अफसर गुंजन सक्सेना और दिव्या अजीत कुमार के अलावा समुद्र के रास्ते दुनिया नापने वाली 6 महिलाएं शामिल हैं।
 इन सभी ने हवाई हमलों से लेकर युद्ध के मैदान तक दुश्मन के छक्के छुड़ाने से लेकर घायलों को बचाने का काम किया। महिलाएं विमान उड़ा सकती हैं तो सेना का नेतृत्व क्यों नहीं कर सकतीं? यह सवाल उठना स्वाभाविक है। यह मिंटी अग्रवाल ही थी, जिन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन को उस समय गाइड किया था जब उन्होंने पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराया था। इससे पहले मिताली मधुमिता ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर चरमपंथियों के हमले के दौरान बहादुरी दिखाई थी। दोनों को ही सेना पदक से सम्मानित ​किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को इस बात के लिए फटकार भी लगाई कि वह महिलाओं को स्थायी कमीशन देने से इंकार करने के लिए स्टीरियो टाइप पूर्वाग्रहों से ग्रस्त कारण बता रही है। महिला  सेना अधिकारियों ने देश का गौरव बढ़ाया है। 
शीर्ष अदालत ने कैप्टन तान्या शेरगिल का उदाहरण दिया जिसने गणतंत्र दिवस परेड में सिग्नल कोर के जत्थे का नेतृत्व किया था। केन्द्र सरकार ने यह दलील भी दी थी कि सेना में ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले पुरुषों की बड़ी संख्या है, जो अभी तक यूनिट्स की कमांड में महिला अधिकारियों को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। इसके अलावा महिलाओं की शारीरिक संरचना और  पारिवारिक दायित्व जैसी बहुत सारी बातें कही गईं जो उनके कमांडिंग अफसर बनने में बाधक हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानसिकता में बदलाव जरूरी है, यदि इच्छा शक्ति हो तो बहुत कुछ किया जा सकता है।
इतिहास की बात करें तो बहुत से देशों ने महिलाओं को सेना में शामिल किया है, लेकिन सिर्फ सोवियत संघ ने उन्हें युद्ध करने भेजा है। हालांकि विघटन के बाद रूस में औरतों को युद्ध लड़ने की इजाजत नहीं है। दुनिया भर में 1980 के दशक तक महिलाएं प्रशासनिक और सहायक की भूमिका में रही हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में महिलाओं को युद्ध में जाने की इजाजत नहीं थी परन्तु युद्ध की जरूरतें ऐसी थीं कि महिलाओं की टीमें शामिल हुई और करीब 150 महिलाओं की युद्ध में जान भी गई। 2016 में ब्रिटेन ने महिलाओं को युद्ध में लड़ने की इजाजत दी। अफगानिस्तान के युद्ध में केवल अमेरिका और  ब्रिटेन की महिलाओं के लिए दरवाजे नहीं खोले गए बल्कि गठबंधन देशों कनाडा, जर्मनी, स्वीडन और आस्ट्रेलिया ने भी पहली बार महिलाओं को युद्ध में भेजा। इस्राइल और उत्तर कोरिया में भी महिलाओं को युद्ध में शामिल होने की इजाजत है। वहां के समाज, सत्ता और जीवनशैली भारत के समाज से काफी भिन्न है।
भारतीय समाज में महिलाओं को कमजोर माना जाता है तो दूसरी तरफ हम महिला की दुर्गा शक्ति रूप में पूजा करते हैं। यह ​विरोधाभास नहीं तो और क्या है? हम लैंगिक रूप से महिलाओं से भेदभाव नहीं कर सकते, इस दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि सेना में अनुशासन कायम रहे। जवान का धर्म युद्ध होता है और वह युद्ध के समय निष्ठ होता है। सेना के विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन तो किया जाएगा लेकिन महिलाओं को कमांड असाइनमेंट देना सही नहीं होगा। महिलाएं बहु और मां भी होती हैं, परिवार और बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां होती हैं, इसलिए यह महिलाओं के ​लिए बड़ी चुनौती है।
 गर्भावस्था में महिलाएं लम्बे समय तक काम से दूर रहती हैं। वह घरेलू दायित्वों की वजह से सैन्य सेवाओं की चुनौतियों और खतरों का सामना नहीं कर पाएंगी। इसलिए सेना को प्रयोगशाला नहीं बनाया जाना चाहिए। अभी तक 14 लाख सशस्त्र बलों में 65 हजार अधिकारियों के कैडर में थलसेना में 1500, वायुसेना में 1600 और  नौसेना में 500 ही महिलाएं हैं। महिलाओं की जवानों के तौर पर भर्ती की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दीर्घकालीन समय में क्या प्रभाव पड़ता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three + 15 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।