8 मार्च यानी कल महिला दिवस है। हर क्षेत्र से प्रोग्राम के निमंत्रण आ रहे हैं। कहीं मुख्य वक्ता के रूप में, कहीं मुख्य अतिथि के रूप में। हर साल यही बोलते हैं, लिखते हैं कि हर दिन महिला का सिर्फ 8 मार्च नहीं दूसरा महिलाओं का सशक्तिकरण हो चुका है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। महिलाएं किसी से कम नहीं। अगर हम कुछ बुरा होते देखते हैं तो यही बात होती है पुरुषों को, समाज को अपनी सोच और मानसिकता बदलनी होगी, बेटों को अच्छे संस्कार देने होंगे आदि…।
सही मायने में देखा जाए तो वाकई महिलाओं ने बहुत तरक्की की है। हर क्षेत्र में आगे हैं परन्तु जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं और हर क्षेत्र में बुराई-अच्छाई, अच्छे-बुरे लोग साथ-साथ चलते हैं, वैसे ही महिलाओं के साथ भी ऐसा ही है। यहां पर कह दूं कि आए दिन बुराई बढ़ रही है, अत्याचार भी बढ़ रहे हैं तो भी गलत नहीं होगा।
पिछले दिनों फिल्म अभिनेत्री दीया मिर्जा की शादी पर महिला पंडित को मंत्र पढ़ते शादी कराते देखा तो बहुत ही गर्व महसूस हुआ। फिर महिलाओं की सेना में भागीदारी, पायलट बनती हैं, लड़ाकू विमान उड़ाते देखा तो भी ऐसा लग रहा था कि आए दिन बेटियां उड़ान भर रही हैं, आगे बढ़ रही हैं। ऐसे ही जब मोदी सरकार ने तीन तलाक समाप्त किया तो बहुत सी मुस्लिम बहनों के पत्र आए कि अब उनका जीवन सुखी हो जाएगा। हमारी वरिष्ठ नागरिक की महिलाओं ने तो कमाल कर रखा है परन्तु दूसरी तरफ जब आयशा का वीडियो वायरल हुआ तो समझ लगी कि अब तलाक नहीं तो दहेज की बलि चढ़ गईं। आयशा युवा नवविवाहिता जो अपने माता-पिता को तंग होते देख नहीं पा रही थी, साथ में जैसे संस्कारी लड़कियां अपने पति के प्रति बहुत वफादार होती हैं और उसे दिल से चाहती हैं, वैसे ही आयशा भी अपने पति को प्यार करती थी और उससे प्यार की उम्मीद करती थी। वह भावुक लड़की सब हालातों को झेलते हुए बलि चढ़ गई और दुनिया को एक संदेश भी दे गई कि अभी भी महिला कितनी लाचार है। दहेज की बलि चढ़ती है। दूसरी तरफ आदर्श नगर की सिमरन की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी जाती है। बहादुर सिमरन ने मुकाबला किया परन्तु जान गंवा बैठी। काश! वहां लोग उसकी मदद के लिए आए होते। इसके बाद हाथरस में एक बेटी से छेड़छाड़ कर रहे युवकों को जब उसके पिता ने रोका तो उसकी हत्या कर दी गई। ऐसी घटनाएं देश के हिस्सों में जब बढ़ रही हैं , वह सचमुच चिंता का एक बड़ा कारण है। आखिरकार समाज को यह क्या हो रहा है। इसमें पाप ही पाप पनप रहे हैं। किसी भी देश की तरक्की और उसकी समृद्धि की पहचान उसके अमन-चैन से की जानी चाहिए।
सरकार भी चाहती है, पुलिस और समाज भी चाहता है कि महिलाओं पर अत्याचार रुकने चाहिए परन्तु फिर हम रोक नहीं पा रहे हैं, आखिर क्यों? क्या करने की जरूरत है, क्या होना चाहिए, कैसे हमारे देश में बच्चियां, महिलाएं सुरक्षित रह सकती हैं। यह विचार करने की और कुछ कानून- कायदे बनाने की जरूरत है, जिसका महिलाएं दुरुपयोग भी न कर सकें और बचाव भी हो सके।
पिछले दिनों मेरे आवास पर राष्ट्र महिला सेविका समिति की बुद्धिजीवी महिलाओं से सौहार्दपूर्ण भेंट के दौरान भी हम सबने इस विषय पर खुलकर चर्चा की। कभी-कभी उन महिला की कार्यक्षमता, देशभक्ति, समर्पण, सेवाभाव देख मेरा मन करता है कि देश भर में महिलाओं की सुरक्षा का जिम्मा पुलिस के सहयोग के साथ इन महिलाओं को सौंप देना चाहिए, क्योंकि यह महिलाएं सहनशील, बुुद्धिजीवी हैं, जूडो कराटे क्या-क्या नहीं जानतीं। आपस में ही एक परिवार की तरह चलती हैं तो सारे देश की महिलाओं, बच्चियों को भी सम्भाल लेंगी, क्योंकि देश के कोने-कोने में, गांव में यह छाई हुई हैं आैर चुपचाप काम कर रही हैं। मेरा मानना है कि पुरुषों से भी आगे सोच रखती हैं महिलाएं।
सो महिलाओं को ही मिलकर इसके हल ढूंढने होंगे कि कैसे देश की महिला सुरक्षित हो और जिस दिन यह हल निकल आएगा वो दिन असल में महिला दिवस होगा…, नहीं ताे हर दिन हमारा तो है ही।
मैंने पंजाब केसरी के माध्यम से और वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के प्लेटफार्म से बहुत सी महिलाओं, बच्चियों को हाथ दिया, आगे बढ़ाया, जिसमें से बहुत सी नामी-गरामी महिलाएं भी हैं, बेटियां भी हैं। अधिकतर बहुत धनवादी हैं, कुछ एक तो भूल भी जाती हैं परन्तु दूसरी महिलाओं और बच्चियों को आगे बढ़ते देख बहुत खुशी होती हैं और दिल अन्दर से कह उठता है, यह हुई न एक सशक्त महिला की कहानी जो आगे बढ़ना और बढ़ाना जानती है। तो मैं आज यही कहूंगी कि सभी देश की महिलाएं इकट्ठी होकर इसका हल ढूंढे कि कैसे दुर्घटनाओं को, पापों को रोका जाए। कैसे सही मायने में महिला दिवस मनाया जाए, कैसे किसी अपराध को मिलकर रोका जाए, ताकि कोई भी अपराध करने का साहस न कर सके।