किसी भी देश के सभ्य होने की पहचान का सबसे बड़ा पैमाना यह माना जाता है कि उसमें महिलाओं की स्थिति क्या है? अर्थात समाज में महिलाओं का कितना सम्मान किया जाता है और उनकी कितनी सुरक्षा समाज करता है। भारतीय संस्कृति में वैसे तो महिलाओं को पूजा जाता है और यहां तक कहा जाता है कि जहां नारी को पूजा जाता है देवता भी वहीं बसते हैं मगर दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि नारी को पुरुष के बराबर का दर्जा परिवारों में प्राप्त नहीं होता और वह मां होने के बावजूद द्वितीय वरीयता में ही गिनी जाती है। हालांकि इस मानसिकता में अब परिवर्तन आ रहा है मगर भारत के कमोबेश पितृ सत्तात्मक समाज में आज भी नारी को दूसरा दर्जा ही दिया जाता है। स्वतन्त्र भारत में नारी उत्थान के लिए समय-समय पर अभियान चलते रहे हैं परन्तु केवल महानगरों को छोड़कर शेष कस्बों व गांवों में आज भी नारी को दूसरे पायदान पर रखकर ही देखा जाता है। पूरे देश में महिलाओं के साथ बलात्कार होने की घटनाएं बजाय कम होने के बढ़ रही हैं और यह सिलसिला महानगरों तक जारी है। इसकी क्या वजह है? वजह साफ है कि नारी को उपभोग्या मानने की दृष्टि समाज से निकल ही नहीं रही है।
हम बलात्कार के खिलाफ जितने सख्त कानून बनाते जा रहे हैं उतनी ही संख्या में नारी के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इसका एकमात्र कारण यह है कि नारी के प्रति हमारा नजरिया नहीं बदल रहा है। नारी को पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में विज्ञापन की वस्तु बना दिया गया है। दूसरी तरफ अश्लील वीडियो व वेबसाइटों की भरमार है जिसकी वजह से नई पीढ़ी तक के युवाओं पर मानसिक रूप से विकार की उत्पित्त होती है। नारी के प्रति कलुष नजरिये का कोई एक पहलू नहीं है। स्त्रियों की शिक्षा दर में एक तरफ वृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ स्कूल- कालेजों में छात्रों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पिछले दिनों प. बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक मेडिकल कालेज में एक स्नातकोत्तर की छात्रा के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या करने के मामले ने राजनैतिक तूल पकड़ लिया है और इस पर जमकर राजनीति हो रही है।
प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेता सुश्री ममता बनर्जी की सरकार है अतः उनके खिलाफ प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के लोग जबर्दस्त आन्दोलन चला रहे हैं। शुरू में इस मामले को स्थानीय पुलिस ने आत्महत्या का मामला समझा परन्तु बाद में यह बलात्कार व हत्या के रूप में सामने आया। जाहिर है कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का विशिष्ट अधिकार होता है अतः प्राथमिक रूप से यह जिम्मेदारी ममता सरकार की ही थी कि वह इस संजीदा मामले की बारीकी से जांच कराती और अपराधियों को कानून के समक्ष पेश करती। इस बलात्कार की घटना के बाद जब भाजपा सड़कों पर आयी तो पुलिस ने सख्ती अख्तियार की और अपराधियों को दबोचने में सफलता प्राप्त की मगर मामले के राजनैतिक रंग ले लेने की वजह से कोलकाता की सड़कों पर धरने-प्रदर्शन का जोर बढ़ता रहा और यहां तक नौबत आ पहुंची कि इस घटना के खिलाफ स्वयं ममता दी भी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ सड़कों पर उतर गईं और अपराधियों को फांसी की सजा देने की मांग करने लगी। जबकि ममता दी स्वयं ही मुख्यमन्त्री होने के साथ गृह व स्वास्थ्य विभाग की भी प्रभारी हैं। इस घटना के विरोध में कोलकाता समेत भारत के प्रमुख शहरों में डाक्टरों ने विरोध-प्रदर्शन किये। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस बीच इस घटना की जांच कारने का आदेश सीबीआई को दे दिया। इसके बावजूद विपक्षी पार्टी भाजपा ने विरोध-प्रदर्शन करने बन्द नहीं किये। मगर यह सच है कि कोलकाता की घटना के समानान्तर ही भारत के विभिन्न प्रदेशों से कन्याओं व महिलाओं के साथ बलात्कार होने की घटनाएं प्रकाश में आयी। चाहे वह उत्तर प्रदेश हो या बिहार अथवा असम हो या महाराष्ट्र, इन सभी राज्यों के अलग-अलग शहरों में नारी पर अत्याचारों की विलापकारी घटनाएं हुईं। इन सभी राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। अतः स्पष्ट रूप से समस्या राजनैतिक नहीं है बल्कि सामाजिक है जिसकी तरफ राजनैतिक दलों को अपनी क्षुद्र राजनीति छोड़कर ध्यान देना होगा। यदि राजनैतिक दल यह देखकर बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन करते रहेंगे कि किस राज्य में उनके विरोधी की सरकार है तो हम किसी सर्वानुमत हल को नहीं तलाश सकते। ममता दी की सरकार के खिलाफ भाजपा ने कोलकाता बलात्कार घटना के खिलाफ एक दिन का बन्द भी रखा जिसमें हिंसक घटनाएं भी हुईं। इसके विरोध में ममता दी ने कहा कि यदि प. बंगाल को जलाने की कोशिश की गई तो इसका असर देश के दूसरे राज्यों पर भी पड़ सकता है। इस बयान को हम जिम्मेदार बयान नहीं मान सकते।
बेशक यह पूरी तरह सही है कि घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है जिसके बाद धरने व बन्द आदि के प्रदर्शन समाप्त हो जाने चाहिए थे। क्योंकि जब सीबीआई जांच के आदेश हो चुके हैं और राज्य सरकार के हाथ से मामला निकल चुका है तो फिर उसे निशाने पर लेना विशुद्ध राजनीति ही कहलायेगी। यही फार्मूला अन्य राज्यों की घटनाओं पर भी लागू होता है। अतः एेसी राजनीति से राजनैतिक दलों को बाज आना चाहिए और राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की इस चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए कि नारी के प्रति जो हमारी मानसिकता है उसमें हम समाज के स्तर पर सुधार करें।