तमिलनाडु में एक मजदूर की बेटी अनीता ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली। कितनी विडम्बना है कि जिस देश में हम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलन्द करते हुए एक जोरदार मुहिम चला रहे हैं उस देश में हम एक प्रतिभा सम्पन्न बेटी की जिन्दगी को नहीं बचा सके। अनीता ने देश की शीर्ष अदालत में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नीट) के खिलाफ लड़ाई लड़ी लेकिन फैसला उसके अनुरूप नहीं था। अनीता इसलिए परेशान थी कि उसने 12वीं कक्षा में 1200 में से 1176 अंक हासिल किए थे। गणित और विज्ञान में उसके 100 फीसदी अंक थे। वह डाक्टर बनना चाहती थी ताकि दूसरों को जीवनदान दे सके, मरीजों की सेवा कर सके लेकिन उसने पंखे से लटककर अपने जीवन का ही अन्त कर दिया।
पिछले वर्ष तक तमिलनाडु में 12वीं के अंकों के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला हुआ करता था लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा (नीट) में आए अंकों के आधार पर दाखिला लेने का आदेश दिया था। तमिलनाडु सरकार ने इस राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा से राज्य को बाहर रखने के लिए अधिसूचना जारी की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार द्वारा जारी अधिसूचना का समर्थन नहीं किया। तब राज्य सरकार की अधिसूचना खारिज हो गई। अनीता ने भी नीट परीक्षा दी थी लेकिन इस मेधावी छात्रा को 700 में से 86 अंक ही मिले। कारण यह था कि नीट की परीक्षा सीबीएसई के पाठ्यक्रम पर आधारित थी। परीक्षा का प्रारूप तमिलनाडु राज्य के पाठ्यक्रम के अनुरूप नहीं था। गरीबी के कारण वह किसी अच्छे संस्थान में कोचिंग भी नहीं ले सकी थी जैसा कि अन्य छात्र प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में दिल्ली या राजस्थान के कोटा के संस्थानों में भारी-भरकम फीस चुका कर कोचिंग लेते हैं। यह भी आरोप था कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पेपर आया।
अब सवाल यह है कि क्या नीट परीक्षा तमिलनाडु के छात्रों के साथ अन्याय है? क्या तमिलनाडु के मेधावी छात्रों को इससे छूट मिलनी चाहिए थी? क्या परीक्षा उनके पाठ्यक्रम के अनुरूप होनी चाहिए थी? सवाल नियमों और कायदे-कानून का भी है। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा ली गई नीट परीक्षा को लेकर काफी बवाल मचा रहा। इससे पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परीक्षा के प्रश्न संख्या 172 का उत्तर गलत होने के आधार पर बोर्ड को नए सिरे से अंक प्रदान करने का निर्देश दिया था। इस निर्देश से नीट परीक्षा में परिणाम में बड़ा उलटफेर हो जाता। बोर्ड ने प्रश्न संख्या 172 का विकल्प ही गलत दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ग्रेस मार्क देने के आदेश पर भी कानूनी लड़ाई लड़ी गई क्योंकि छात्र एक-एक अंक की लड़ाई लड़ते हैं। गलत उत्तर पर माइनस मार्किंग है। जैसे-तैसे परिणाम घोषित किया गया तो कई राज्यों में कॉउंसलिंग में गड़बड़ी पाई गई। इससे साफ है कि नीट परीक्षा दोषपूर्ण थी।
नीट परीक्षा ‘एक राष्ट्र एक परीक्षा’ के कान्सैप्ट पर आधारित है। यह एक अच्छा कदम हो सकता है लेकिन देशभर में पाठ्यक्रम भी समान होना चाहिए। अनीता ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी सवाल उठाया था कि नीट परीक्षा ग्रामीण इलाकों के छात्रों के साथ न्याय नहीं करती। अब तमिलनाडु में अनीता की आत्महत्या को लेकर सियासत शुरू हो गई है। अनीता को दलित छात्रा बताकर तूफान खड़ा किया जा रहा है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के आत्महत्या करने के बाद भी जमकर सियासत हुई थी। वह दलित था, नहीं था इस पर जोरदार बहस हुई थी। कुछ लोग मोदी सरकार की आलोचना करने में लग गए हैं कि यह सरकार दलितों, वंचितों तक शिक्षा पहुंचाने के खिलाफ है। छात्र सड़कों पर आकर प्रदर्शन करने लगे हैं। काश! हमने रोहित वेमुला को एक छात्र के रूप में देखा होता। काश! यह पता लगाने की कोशिश होती कि आखिर ऐसे कौन से कारण हैं कि छात्र आत्महत्याएं कर रहे हैं। रोहित और अनीता ही नहीं, कई अन्य छात्र भी आत्महत्याएं कर चुके हैं।
आखिर मेंटल ट्रॉमा क्या होता है। कारणों की तलाश होती और परिणामों को ध्यान में रखकर परीक्षा पद्धति में बदलाव किए जाते तो मजदूर की बेटी अपनी जान नहीं गंवाती। आखिर बच्चे डिप्रेशन में क्यों जा रहे हैं। क्या इसके लिए सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां जिम्मेदार हैं या परीक्षा पद्धति ही दोषपूर्ण है। यह अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों की लगातार कॉउंसलिंग करें। जिन्दगी में एक अवसर खत्म हो जाने से जीवन खत्म नहीं होता। जीवन में सम्भावनाएं और अवसर मिलते रहते हैं। आत्महत्या तो जीवन से पलायन है। जानता हूं मुख्यमंत्री पलानीसामी की अनीता के परिवार वालों को दी गई 7 लाख की सहायता भी जीवनभर उनके आंसू नहीं रोक पाएगी। निर्धन मेधावी छात्रों को नि:शुल्क कोचिंग के लिए भी संस्थानों को आगे आना होगा।