विश्व कप पराजय : अपना-अपना मंथन

विश्व कप पराजय : अपना-अपना मंथन
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यह क्रिकेट वर्ल्ड कप जो पूर्ण रूप से भारत की पकड़ में था और लगभग जेब में था, जिस तरह से छू कर और झलक दिखा कर हमारे हाथ से निकल गया उसने हमारा दिल इस प्रकार से छलनी कर दिया कि पीड़ा असहनीय है। बेशक, ऑस्ट्रेलिया हम से अच्छा खेला मगर जहां शुभमन, ईशान, श्रेयस, रोहित, विराट आदि को चौकों-छक्कों की भरमार करनी थी और 350 का स्कोर खड़ा करना था वहीं हमने ऑस्ट्रेलिया को अपने ऊपर हावी कर लिया और मात्र 240 रन बनाए तो दुनिया जान गई कि भारत के हाथ से कप फिसल गया है। जिस प्रकार से 143 करोड़ भारतवासियों को विश्वास था कि भारत 2023 का विश्व कप जीतेगा उस पर पानी फिर गया, बल्कि बिजली गिर गई। यह ठीक है, खेल में एक जीतता है और एक हारता है, मगर जिस प्रकार से भारत ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के सामने घुटने टेक दिए उस तकलीफ़ को संभलने में समय लगेगा। कारण यह है कि भारत ने ग्यारह में से दस मैच जीते थे और सभी यह मान कर चल रहे थे कि अंतिम मैच में भी टीम अपनी करिश्माई जीत का जश्न मनाएगी।
टीम के धुआंधार प्रदर्शन से सभी को पक्का विश्वास था कि अब की बार क्रिकेट कप हमारी झोली में पड़ेगा, मगर विधाता को कुछ और ही मंज़ूर था। यह सही है कि असली निर्णय तो खेल के मैदान पर खिलाड़ी ही करते हैं मगर जब इस प्रकार का मुकाबला होता है तो खेल की हार-जीत में, खेल के मैदान के बाहर से भी बहुत सी चीजें फ़ैसला करती हैं। हालांकि मीडिया वाले मैदान पर जा कर स्वयं नहीं खेलते मगर विशेष रूप से लगातार ऐसी रिपोर्टें और विडियो प्रदर्शित करते हैं ​िक उसका प्रभाव खिलाड़ियों पर भी पड़ता है।
पिच पर फाइनल मैच से पूर्व इस प्रकार का शोर-शराबा देखना है कि भारत की कितनी बड़ी जीत होती है तो फिर क्रिकेट भगवान विराट कोहली की बल्लेबाज़ी से 2023 में तीसरी बार अपने 13वें संस्करण में क्रिकेट वर्ल्ड कप फतेह करने जा रहा है, आदि कुछ खिलाड़ी भी ऐसा ही करते हैं, जैसे सुनील गावस्कर ने ऐलान कर दिया कि भारत के लिए मात्र जीतने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसे ऑस्ट्रेलिया को बड़े मार्जिन से हराना चाहिए। अल्लाह के बंदे, यह तो सोचो कि फाइनल मुकाबले में कोई टीम दूसरी से कम नहीं होती। पहले खेलने और जीतने दो, फिर ऐसा बोलो।
पीएम मोदी की मौजूदगी को लेकर टिप्पणियां की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर कहा जा रहा​ कि मोदी जी के जाने से खिलाड़ियों के हाथ-पांव फूल गए कि स्टेडियम में एक ऐसी हस्ती मौजूद है जो मात्र भारत का ही नहीं बल्कि इस समय विश्व का सबसे कद्दावर राजनेता और प्रधानमंत्री है। इसी सोच में कि अपने प्रधानमंत्री के सामने कोई ग़लती न करें, आउट होते चले गए।
वैसे जब पकिस्तान में पाकिस्तान का ऑस्ट्रेलिया से सेमीफ़ाइनल था और उसके प्रधानमंत्री वह मैच देख रहे थे तो अंतिम ओवर में माईक हंसी ने गुल के ऊपर 27 रन ठोंक दिए और पाकिस्तान हार गया। जब वैसे भी जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माइक्रोन फाइनल अपने देश के विरुद्ध अर्जेंटीना का मैच देखने बैठे तो फ्रांस जीतते-जीतते हार गया। वतन परस्ती बहुत अच्छी बात है और भारतीय मीडिया इस में दक्ष भी है मगर इसको कैसे लेकर चलना है, कम ही मीडिया वाले इसे समझते हैं।
बिल्कुल यही दुर्दशा पाकिस्तानी मीडिया की है। यह नहीं बोलना चाहिए हम तो जीत गए, जीते बैठे हैं। मीडिया को कहना चाहिए कि भारतीय टीम पूर्ण प्रतियोगिता में विजयी रही है, फाइनल में मुक़ाबला टक्कर का है, हम आशा करते हैं कि हमारी टीम बढ़िया खेलेगी। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठेगा आदि। बड़बोलापन वास्तव में कुदरत को भी पसंद नहीं। कुछ वर्ष पूर्व जब ब्रिटेन में पाकिस्तान के साथ फाइनल था तो तब भी बहस शुरू हो गईं थी। इधर से वीरेंद्र सहवाग उधर से सईद अनवर ने फालतू की बहस शुरू कर दी। ऐसी बातों से बचना चाहिए। इन बातों का खेल के मैदान से कोई लेना-देना नहीं है मगर कुदरती तौर से कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनके के कारण भी ऐसे मुकाबलों में हार-जीत होती है।

– फिरोज बख्त अहमद

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