लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दुनिया की फार्मेसी भारत

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केन्द्र की स्थापना करने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके लिए डब्ल्यूएचओ (​विश्व स्वास्थ्य संगठन) का आभार व्यक्त करते हुए इसके महानिदेशक तेद्रोस अधानोम गेब्रेसस को ​विश्वास दिलाया

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केन्द्र की स्थापना करने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके लिए डब्ल्यूएचओ (​विश्व स्वास्थ्य संगठन) का आभार व्यक्त करते हुए इसके महानिदेशक तेद्रोस अधानोम गेब्रेसस को ​विश्वास दिलाया कि जिस तरह भारत दुनिया की फार्मेसी के तौर पर उभरा है, वैसे ही डब्ल्यूएचओ का संस्थान वैश्विक स्वास्थ्य का केन्द्र बनेगा। आयुष मंत्रालय ने गुजरात के जामनगर स्थित आयुर्वेद अध्ययन अनुसंधान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा दिया है वहीं ​विश्व-​विद्यालय अनुदान आयोग ने जयपुर के आयुर्वेद संस्थान को डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी संस्थान का दर्जा दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोनाकाल के दौरान आयुर्वेद के उत्पादों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ गई है। कोरोना से मुकाबले के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं आई है। अब तक भारत के घर-घर में हल्दी, अदरक, काढ़ा जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उपाय बहुत काम आये। दुनिया के प्रतिष्ठित मैडिकल जर्नल भी आयुर्वेद को नई उम्मीद से देख रहे हैं। भारत के पास आयुर्वेद की समृद्ध विरासत है। आयुर्वेद नाम का अर्थ है जीवन से संबंधित ज्ञान। आयुर्वेद ज्ञान की वह शाखा है जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम  पुस्तक ऋग्वेद है। ऋग्वेद संहिता में भी आयुर्वेद के अति महत्व के सिद्धान्त भरे पड़े हैं। आयुर्वेद का रचना काल ईसा पूर्व 50 हजार वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आसपास माना जाता है। आयुर्वेद के आचार्यों में अश्विनी कुमार धन्वंतरि, नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक और अगस्त्य शामिल हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दशक में ज्यादातर देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 70 फीसदी आबादी को आधुनिक मैडिकल सेवा या डाक्टर की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। ग्रामीण आबादी  स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पारंपरिक तरीके और पुरानी पद्धति से ईलाज करने वालों पर निर्भर थी लेकिन बाद के दशक में आधुनिक दवाओं का तेजी से विकास और प्रसार हुआ जिसे एलोपैथी के नाम से जाना गया। बाद के दशक में आधुनिक दवाओं का तेजी से विकास हुआ और पारंपरिक और वैकल्पिक दवाओं का इस्तेमाल करने वाली आबादी में कमी आई। भारत की शहरी आबादी ने तो आयुर्वेद को भुला ही दि​या था। इसके बावजूद भारत में आयुर्वेद का अस्तित्व बना रहा। चीन ने लगातार पुरानी पद्धति और वैकल्पिक दवाओं को तरजीह दी। भारत और चीन में स्वास्थ्य सेवाओं में यद्यपि पारंपरिक दवाओं से ज्यादा आधुनिक जैविक दवाओं को तरजीह दी जाती है फिर भी प्राचीन पद्धति को सरकार से मान्यता भी प्राप्त है और वैकल्पिक दवाओं के विकास में सरकारी समर्थन मिलता है। भारत में 2014 में आयुष मंत्रालय केन्द्रीय मंत्रालय  की तरह स्थापित हुआ और इसकी जिम्मेदारी है नीति बनाने और वैकल्पिक दवाओं के विकास और प्रसार के लिए काम करना।
भारत की पहली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 1973 में बनी, जिसमें कहा गया था कि सभी मैडिकल कालेज क्षे​त्र से जुड़े सभी लोगों के काम को सही तरीके से नियोजित किया जाए लेकिन व्यावहारिक रूप से आयुर्वेद और एलोपैथी दो अलग-अलग धाराओं में विभाजित रही। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने विदेशी सलाह के अनुसार अपने स्वयं के पौधे उगाने शुरू किए जिनसे औषधि बनाई जा सके। ठीक ऐसा ही चीन ने 1966 की सामाजिक क्रांति के बाद किया। चीन  लगातार कोशिश करता रहा है कि वैकल्पिक और पारंपरिक प्रणाली उसकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से घुल-मिल जाए। चीन ने अपनी विशाल आबादी तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए बड़ी कुशल रणनीति बनाई। यह रणनीति बेयरफुट डाक्टर के नाम से मशहूर हुई। अपने किसानों और ग्रामीण लोगों को जरूरत के लायक बुनियादी मैडिकल सेवाओं की ट्रेनिंग दी और यह नीति बहुत सफल रही।
भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का दो दशक पहले काफी बुरा हाल था। डाक्टरों की कमी, दवाओं का अभाव भी काफी था। सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत आज भी है। आज भी देश डाक्टरों की कमी से जूझ रहा है। 2005 में सरकार ने आयुष को मुख्यधारा में लाने की पहल की। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्थानीय और पारंपरिक दवाओं को महत्व देना शुरू किया गया। यद्यपि कई सरकारी अस्पतालों में आधुनिक दवाओं के साथ-साथ आयुर्वेद से उपचार की सुविधायें मौजूद हैं लेकिन आधुनिक और पुरानी पद्धति की दवायें अलग-अलग खांचों में बंटी हुई हैं। अब तो आयुर्वेद के चिकित्सक भी एलोपैथी दवाओं का इस्तेमाल करने लगे हैं। दरअसल जल्द और विश्वसनीय उपचार के लिए लोग एलोपैथी को अपना रहे हैं। एलोपैथी डाक्टरों की देश में बड़ी पहचान है जबकि आयुर्वेद चिकित्सकों को उन जैसा सम्मान प्राप्त नहीं होता। चीन ने 2011 में पूरे देश के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा का लक्ष्य कामयाबी से हासिल कर लिया था। ये मानव इतिहास की सबसे व्यापक बीमा योजना है। केन्द्र की मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत योजना शुरू की है। आयुर्वेद ने पूरी दुनिया में अपनी सार्थकता सिद्ध कर दी है। अब जरूरत है कि आयुर्वेद और पारंपरिक पद्धतियों को आधुनिक चिकित्सा के साथ लाया जाए। इससे देश की बड़ी आबादी को कवर किया जा सकता है। ​विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पारंपरिक दवाओं का केन्द्र स्थापित होने से अनुसंधान में भी तेजी आएगी। भारत दुनिया का मैडिकल हब बनेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 + 17 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।