वृक्षों का करें वंदन

वृक्षों का करें वंदन

इस दुनिया में सबसे पुराने पुरखे पेड़ माने जाते हैं। धरती पर सबसे ज्यादा पुराने जीवन के साक्षी हैं तो वह पेड़ ही हैं। प्राणवायु ऑक्सीजन का अक्षय भंडार इन्हीं पेड़ों के कारण सम्भव हुआ है जिसके बिना इंसान का जीवित रहना असम्भव है। भारतीय संस्कृति और चिंतन दृष्टि में पेड़ों का सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भारतीय समाज पेड़-पौधे लगाने को पुण्य मानता है। वेद शास्त्रों में एक पेड़ लगाने को 100 गायों का दान देने के बराबर कहा गया है। वेद भारतीय विवेक की वह वाणी है जो जिन्दगी के अनुभवों से तरंगित है। वेद वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु सबको सम्बोधित करते हैं। भारतीय समाज पेड़ों की अराधना करता है और पेड़-पौधे उगाना एक तरह का सामाजिक, सांस्कृतिक कर्म माना गया है। वृक्ष हर जीव-जन्तु के लिए कल्याणकारी हैं। अगर पेड़ काटे जाते रहे तो मानव और पशु-पक्षियों का संसार से लुप्त होने का खतरा भी बढ़ जाएगा। वैसे तो देशभर में विकास के नाम पर पेड़-काटे जा रहे हैं। जिस तरह से इस वर्ष सूर्य देव ने अपना रौद्र रूप दिखाया है उसके चलते पेड़ों की कमी महसूस की जा रही है।

राजधानी दिल्ली में भी बेतरतीब विकास के नाम पर वर्षों से पेड़ काटे जाते रहे हैं और दिल्ली में कंकरीट का जंगल उग आया है। ऐसे में पर्यावरण का संकट काफी गम्भीर हो गया है। दिल्ली में स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल का बड़ा संकट है। दिल्ली के पर्यावरण के लिए दक्षिणी दिल्ली के रिज एरिया को संर​क्षित किया गया है लेकिन इस क्षेत्र में भी पेड़ काटे जाने का मसला सुप्रीम कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को कड़ी फटकार लगाई है और पूछा है कि आखिर किसके निर्देश पर पेड़ काटे गए। क्या दिल्ली के उपराज्यपाल के निर्देश पर पेड़ काटे गए हैं। अदालत ने कहा है कि बिना इजाजत 1100 बेशकीमती पेड़ काट दिए जाने से इको सिस्टम का जो विनाश हुआ है उसे अदालत हल्के में नहीं ले सकती। गत 16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः पेड़ काटने का संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी और डीडीए के वाइस चेयरमैन काे सभी जिम्मेदार अधिकारियों के नाम का खुलासा करने को भी कहा था। इसके बाद रिज क्षेत्र में सड़क निर्माण का काम बंद कर ​दिया गया है। अदालत ने यह भी कहा है कि डीडीए को काटे गए एक पेड़ के बदले 100 पेड़ लगाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है इस पर तो पर्यावर​णविदों की नजर रहेगी। दक्षिणी दिल्ली का रिज क्षेत्र जहां पर अरावली रेंज का एक हिस्सा भी आता है। इस इलाके में बड़ी मात्रा में वन क्षेत्र है। पिछले कई सालों से दिल्ली में इससे भी ज्यादा संख्या में पेड़ों की कुर्बानी दी गई है। दिल्ली के वन विभाग के मुताबिक विकास के नाम पर पिछले तीन सालों में 77 हजार या हर घंटे औसतन तीन पेड़, विकास परियोजनाओं के लिए काट दिए गए। यह भी पता चला है कि जो भी नए पौधे लगाए जाते हैं उनमें से एक तिहाई भी पेड़ों में तब्दील नहीं हो पाते हैं।
सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक 1998 में मैट्रो के फेज-1 के शुरू होने के बाद से दिल्ली मैट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने 44,186 पेड़ों को काट दिया था और 7,923 पेड़ों को प्रत्यारोपित किया है। इस अवधि के दौरान डीएमआरसी को 57,775 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी, हालांकि वह लेआउट में बदलाव और अन्य तरीकों को अपनाकर 12,580 पेड़ों को संरक्षित करने में कामयाब रही।

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2021 तक दिल्ली में 60,443 पेड़ काटे गए। जून 2022 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने पेड़ को एक जीवित प्राणी के समान ही माना था। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि संबंधित अधिकारी की अनुमति के बिना सिर्फ 15.7 सेमी परिधि तक के पेड़ों की शाखाओं को काटा जा सकेगा। साथ ही पेड़ों की कटाई या उसकी शाखाओं की छंटाई से पहले उसका अंतिम निरीक्षण भी अनिवार्य कर दिया था। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत पेड़ों की छंटाई की मंजूरी नहीं दी जाएगी। यह फैसला प्रोफेसर और डॉक्टर संजीव बगई की याचिका पर सुनाया गया था। इससे पहले 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने एक आदेश पारित करते हुए बिना जरूरत पेड़ों की कटाई और छंटाई की अनुमति देने पर रोक लगा थी। मई 2022 के भी अपने एक दूसरे फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पेड़ों के संरक्षण से संबंधित एक अवमानना मामले पर सुनवाई करते हुए पेड़ों को काटे जाने पर रोक लगा दी थी। सितंबर 2023 में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्देश देते हुए घर बनाने के दौरान पेड़ों की कटाई पर रोक को जारी रखने का निर्देश दिया था। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार किसी को भी पेड़ काटने की मंजूरी नहीं देगी। दिल्ली नगर पालिका परिषद की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक एनडीएमसी 20 सेमी की परिधि वाले पेड़ों की हल्की छंटाई कर सकता है।

दिल्ली में तो स्वच्छ सांस लेना भी दूभर हो गया है और बच्चों के फेफड़े भी एक्सरे में काले नजर आते हैं। पर्यावरण का स्वच्छता आैर शुद्ध हवा से सीधा संबंध है। ग्लोबल वार्मिंग मनुष्य को वा​िर्नंग दे रही है। अगर हम चाहते हैं कि दिल्ली हरी-भरी हो पेड़-पौधों की रक्षा-सुरक्षा हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। मानवता सहज जीवन ​बिता सके इसलिए वृक्षों का वंदन होना चाहिए। वृक्षों का वंदन ही धरती मां का अभिनंदन है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 + eight =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।