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वाह अमेरिका, आह अमेरिका!

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश की आव्रजन नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने की घोषणा की है। इस बदलाव के चलते अब अमेरिका विदेशियों को मौजूदा व्यवस्था से इतर योग्यता के आधार पर तरजीह देगा। मौजूदा व्यवस्था में पारिवारिक सम्बन्धों को तरजीह दी जाती है। इससे हजारों की संख्या में ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे भारतीय पेशेवरों की पीड़ा खत्म हो सकती है। मौजूदा व्यवस्था के तहत करीब 66 फीसद ग्रीन कार्ड उन लोगों को दिया जाता है जिनके पारिवारिक सम्बन्ध हों और केवल 12 फीसद ही योग्यता पर आधारित हैं। नई आव्रजन नीति का प्रारूप डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जेरेड कुश्नर ने तैयार किया है जो मुख्य रूप से सीमा सुरक्षा को मजबूत करने आैर ग्रीन कार्ड तथा वैध स्थाई निवास प्रणाली को दुरुस्त करने पर केन्द्रित है। इस नीति से अमेरिका जाने और ग्रीन कार्ड पाने का सपना देखने वाले भारतीय युवक-युवतियों की राह आसान हो सकती है। अब वह मैरिट के आधार पर अमेरिका जा सकते हैं। अभी तक होता यह था कि वहां रहने वाले अपने परिवार के सदस्यों को बुला लेते थे जिससे कई ऐसे लोगों को भी अमेरिका मेें जगह मिल जाती थी जो वहां के लिए खतरा बन सकते थे।

अब ट्रंप की सरकार हायर डिग्री, मैरिट और प्रोफैशनल क्वालीफिकेशन को आधार बनाएगी। भारत मेें प्रतिभाओं की तो कोई कमी नहीं है। अधिकांश प्रतिभाशाली लोग अमेरिका जाने के इच्छुक होंगे क्योंकि उन्हें भारत में तो अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा। अमेरिका हर साल 8 करोड़ 11 लाख लोगों को ग्रीन कार्ड जारी करता है, इनके जरिये विदेशी नागरिकों को जीवनभर अमेरिका में रहकर काम करने की अनुमति मिल जाती है। इससे अगले 5 साल में अगर वे चाहें तो उन्हें अमेरिकी नागरिकता ​मिलने का रास्ता भी खुल जाता है। ट्रंप चाहते हैं कि जो विदेशी अमेरिका आएं वे अमेरिका के निर्माण में, उसे महान देश बनाने और बनाए रखने में अपना योगदान दें लेकिन यह इंतजाम गुण और कौशल पर आधारित होना चाहिए। विदेशी नागरिकों को ग्रीन कार्ड की बजाय बिल्ड अमेरिका वीजा जारी होगा जो प्वाइंट सिस्टम पर आधारित होगा। युवा कामगारों को ज्यादा अंक मिलेंगे। अगर वे बेशकीमती कौशल के मालिक हैं तो आपको ज्यादा अंक ​मिलेंगे।

ऐसे में अगर आप यहां के लोगों को रोजगार मुहैया कराते हैं या रोजगार सृजन की कोई योजना लेकर आते हैं तो आपको अधिक अंक मिलेंगे। अब तक ऐसी व्यवस्था न होने से कई कुशल कामगार अमेरिका छोड़कर अपने देश चले जाते थे जबकि वे अमेरिका में अपनी कम्पनी खोलना चाहते थे। अब उन्हें कम्पनी खोलने का अवसर मिलेगा। ट्रंप सत्ता में आने के बाद संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं। उनका ध्येय अमेरिका में बेरोजगारी दूर करना और अमेरिकी लोगों के हितों की रक्षा करना है। ट्रंप की नई आव्रजन नीति का विरोध भी होना शुरू हो चुका है। भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद कमला हैरिस ने नई नीति के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की है। कमला हैरिस राष्ट्रपति पद के लिए डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से दावेदार भी हैं।

उन्होंने नई नीति की कमियां गिनाते हुए अपनी साउथ एशियन पहचान को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा है कि वह खुद एक इमिग्रेंट परिवार की सन्तान हैं। इस देश ने ‘हम सब समान हैं’ के सिद्धांत को अपनाया है। इसी से यहां विविधता कायम है जबकि नई नीति में किसी एक क्षेत्र से आने वाले व्यक्ति के अंक दूसरे क्षेत्र से आने वाले व्यक्ति से भिन्न माने जाएंगे। इससे असमानता बढ़ेगी। अगर कोई व्यक्ति अकेला अमेरिका जाता है और उसकी पत्नी या परिवार यहां रहता है तो उसे परिवार की चिन्ता सताती रहेगी। ऐसे में वह कितनी ऊर्जा से काम कर पाएगा इस पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्वालीफिकेशन टैस्ट और प्रतिभा की परख करने के लिए कड़ी शर्तें भी वीजा मिलने में बड़ी बाधा पैदा कर सकती हैं। अगर कोई काफी समय से वहां काम कर रहा है लेकिन उनके परिवार को वीजा नहीं दिया जाता तो भी उसके लिए मुश्किलें खड़ी होंगी। हाल ही में सिलीकोन वैली की एक आईटी कम्पनी ने एक उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय पेशेवर को एच-I वीजा देने से इन्कार करने पर अमेरिका सरकार के खिलाफ मुकद्दमा दायर किया है।

कम्पनी ने इस फैसले को मनमाना और अधिकारों का स्पष्ट दुरुपयोग करार दिया है। ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका का वीजा मिलना पहले से कहीं अधिक मुश्किल हो गया है। एच-I बी वीजा को लेकर भारतीय पेशेवर बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं हालांकि ट्रंप ने बाद में काफी छूट दी है। चिन्ता की बात तो यह है कि भारतीय प्रतिभाओं का लगातार पलायन अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में हो रहा है क्योंकि हमारे देश में प्रतिभाओं को समायोजित करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। वहां बेरोजगारी का संकट सबसे बड़ा है। अमेरिका अपने लोगों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना चाहता है। फिलहाल ट्रंप की नई नीति को अमेरिकी संसद में मंजूरी मिलना मुश्किल लग रहा है क्योंकि डैमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद इस मामले पर बंटे हुए हैं। भारतीयों के लिए अमेरिका की नीतियां ‘वाह’ भी हैं और ‘आह’ भी हैं।

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