वाह मोदी जी वाह! जिस बात के लिए हम सोचते हैं आप कर डालते हो। अक्सर मुझे कई फंक्शनों पर मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि बनकर जाना होता है और बहुत से फंक्शन हम स्वयं करते हैं तो अक्सर मेरे मन में पीड़ा उठती थी कि फूलों के गुलदस्ते और मोमेंटो पर खर्चे भी होते हैं (क्योंकि मैं जो काम कर रही हूं उसमें एक-एक रुपए की वैल्यू है जो बुजुर्गों के काम आए) और वह बाद में काम भी नहीं आते (मोमेंटो और सोविनियर से कमरे भरे पड़े हैं)। अगर शालें मिलती हैं तो उन्हें मैं बुजुर्गों और जरूरतमंदों में बांट देती हूं। एकल ने बहुत ही अच्छा काम शुरू किया है, वह नारियल और अंगवस्त्रम् देते हैं। नारियल घर आकर प्रसाद के रूप में इस्तेमाल हो जाता है। पिछले दिनों मुझे हरेवली गऊशाला से दुपट्टï मिला जो मैं बहुत पहनती हूं। मैं अक्सर हर जगह कहती हूं कि मेरे लिए बुके और मोमेंटो नहीं, फिर भी लोगों को लगता था कि इसके बिना सत्कार नहीं होता।
यहां तक कि हम भी अपने फंक्शन की तैयारी करते हैं तो यही महसूस किया जाता था परन्तु जब अब मोदी जी ने कहा कि उन्हें गुलदस्ते और फूल न दिए जाएं, अंगवस्त्रम् या किताब दी जाए तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा क्योंकि मोदी जी का सारा देश फैन है तो अब किसी को बुरा नहीं लगेगा। सच में मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा है क्योंकि जब गांवों में जाओ तो कार्यकर्ता इतनी फूलों की माला डाल देते हैं कि डर भी लगता है कि अगर फूलों में कीड़ा हुआ तो क्या होगा परन्तु उनकी भावना के आगे सब कुछ फीका पड़ जाता है। अब हम 30 को चौपाल का प्रोग्राम कर रहे हैं तो खादी से लेकर अंगवस्त्रम् ही देंगे, हमारे करनाल के जिला अध्यक्ष जगमोहन आनन्द ने कहा-दीदी, क्या ये खादीग्राम, दिल्ली से मिलेंगे? दूसरी सबसे अच्छी बात जो मोदी जी ने लालबत्ती बन्द की जिससे मिनिस्टर और उच्च अधिकारियों को यह अहसास हो कि वह खास नहीं, जनता के आम सेवक हैं। हमें इस बात की भी बहुत खुशी हुई परन्तु अभी भी कइयों के दिलोदिमाग में लालबत्ती बैठी है, उसे हटाने के लिए कुछ करना होगा परन्तु जो अब मोदी जी ने राष्ट्रपति चुना, वो तो कमाल ही कर दिया।
कोई सोच ही नहीं सकता था, कितने बड़े-बड़े नाम सामने आ रहे थे, कहां से एक आम आदमी और वह भी ऐसे समाज से। वाह मोदी जी आपने साबित कर दिया कि अब जात-पात कुछ नहीं। जो इन्सान मेहनत से आगे बढ़ता है वह कहां से कहां पहुंच सकता है, जो हमारे देश के लिए बहुत जरूरी है। जब उनका रिजल्ट अनाउंस हुआ तो टीवी में उनके परिवार के लोग दिख रहे थे, खुशियां मना रहे थे और स्पेशियली उनका बड़ा भाई जिन्हें लोग मालाएं पहना रहे थे और उनके मुंह में लड्डू भर रहे थे, उनसे बोला भी नहीं जा रहा था। उस समाज में खुशी देखकर मन को प्रसन्नता हो रही थी। इससे यह भी साफ हो गया कि कई लोग इस समाज पर तरस खाकर वोट बटोरते हैं। मोदी जी ने यह भी साफ कर दिया कि हम सब एक हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं। सबसे बड़ी बात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी हमारे ऑफिस में अश्विनी जी से मिलने 2014 में भैय्यू जी महाराज के साथ आए थे।
बाद में भैय्यू महाराज और अश्विनी जी बैठे और इन्होंने हमारी कम्पनी के वाइस प्रेजीडेंट जैन साहब के साथ चाय पी। उस समय न ही अश्विनी जी और न ही सारे ऑफिस को मालूम था कि यह मामूली सा दिखने वाले साधारण व्यक्ति बिहार के राज्यपाल बन जाएंगे और फिर राष्ट्रपति। वाह मोदी जी आपने सही लोकतंत्र को कायम किया है। अब तो ऐसे लगता है जैसे कोई भी आम व्यक्ति कभी भी कुछ भी बन सकता है। इससे हर साधारण दिखने वाला लायक व्यक्ति खास बन सकता है। हमारे जैन साहब गर्व महसूस कर रहे थे कि अक्सर अश्विनी जी के पास जो व्यक्ति मिलने आता है और अश्विनी जी उस व्यक्ति से जब चर्चा करते हैं तो साथ आए व्यक्तियों को मेरे पास भेज देते हैं कि इनका ख्याल रखो। चाय वगैरह पिलाओ। अब तो मुझे मालूम पड़ गया कि अश्विनी जी से तो विशेष व्यक्ति मुलाकात करता है और जो मेरे पास उनके साथ आया आकर बैठता है वो कम नहीं होता। अब तो और भी ख्याल रखूंगा।
साथ में राष्ट्रपति को चाय पिलाने पर गर्व महसूस कर रहे थे। राष्ट्रपति की जब रिजल्ट अनाउंस होने के बाद मैंने स्पीच सुनी तो बहुत खुशी हुई। बहुत ही सुलझी हुई और प्रभावित करने वाली और देश के हर आम व्यक्ति, किसान, दलित समाज से जुड़े व्यक्ति के संदर्भ में थी। मुझे लगता है उस समय हर आम व्यक्ति मेहनत से जो ऊपर पहुंचा है, वह गर्व महसूस कर रहा होगा और यह भी सोच रहा होगा कि किस्मत, मोदी जी और संघ जिस पर मेहरबान हो जाएं तो एक दिन में कहां से कहां पहुंच सकते हैं। सब कुछ ठीक है परन्तु व्यापारी, ज्वैलर्स, बिल्डर्स बहुत दु:खी हैं। मोदी जी उनका भी कुछ सोचो। यह तो बात निश्चित है कि अब कोई भी व्यक्ति यह कहने से परहेज नहीं करता कि उनका बचपन किस गरीबी में गुजरा क्योंकि आज एक चाय बेचने वाले का बेटा प्रधानमंत्री, एक दलित समाज से राष्ट्रपति और किसान का बेटा उपराष्ट्रपति बनने जा रहा है।
मुझे जब मेरी सासु मां और अश्विनी जी बताते हैं कि उनके घर की हालत भी ऐसी ही थी। बरसात में कमरे की छत टपकती थी। कैसे दादी जी (लालाजी की धर्मपत्नी) अखबार की रद्दी बेच-बेचकर घर चलाती थीं तो पहले मुझे हैरानगी होती थी। अब इन सब बातों को देखकर गर्व महसूस होता है और यही नहीं अक्सर रजत शर्मा, जिन्हें मैं भाई मानती हूं, भी यह कहते हैं कि कैसे उनका परिवार 8&8 वाले कमरे में रहते थे। अब वह कहां से कहां मेहनत करके पहुंचा है। मुझे आज भी याद है कि वह जीटीवी में काम करता था, यह और राजीव शुक्ला एक रिपोर्टर थे। अब कहां पहुंचे हैं। काश! मेरी मां जिन्दा होती, क्योंकि मेरे पिताजी की फैमिली रॉयल और एजुकेटिड थी और मां साधारण ब्राह्मणों की बेटी जिनको लोग तो पूजते थे परन्तु घर लोगों की कृपा से चलते थे, तो देखती कि अब उनकी फैमिली में लोग साहित्यकार व डाक्टर हैं। अब आज के हालात में यह सब गर्व महसूस करने वाली बात हो गई है।