पूर्व वित्तमन्त्री यशवन्त सिन्हा और वर्तमान सांसद वरुण गांधी ने राष्ट्रीय समस्याओं के बारे में अपने-अपने बेबाक विचार व्यक्त करके अपनी पार्टी भाजपा के भीतर हलचल पैदा कर दी है मगर यह काॅफी के प्याले में उठे तूफान की तरह ही है क्योंकि इन दोनों नेताओं की हैसियत अपनी पार्टी के भीतर हाशिये पर पड़े हुए तमाशबीनों से ज्यादा नहीं है। इसके बावजूद उनके द्वारा व्यक्त विचारों के महत्व को कम करके आंकना राजनीतिक बुद्धिमत्ता किसी भी सूरत में नहीं होगी। श्री सिन्हा वाजपेयी सरकार के दौरान देश के वित्तमन्त्री रहे हैं और अर्थव्यवस्था के विभिन्न मानदंडों से भलीभांति परिचित समझे जाते हैं।
बेशक वह कोई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री नहीं हैं मगर उनके कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की स्थिति कमजोर नहीं कही जा सकती थी। श्री सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर वर्तमान वित्तमन्त्री श्री अरुण जेतली को अपने निशाने पर रखकर यह साबित कर दिया है कि वह वस्तुस्थिति का मूल्यांकन राजनीतिक नजरिये से ज्यादा कर रहे हैं और तकनीकी नजरिये से कम। उनका यह कहना कि नोटबन्दी के बाद से देश की आर्थिक विकास वृद्धि दर वास्तव में 5.7 प्रतिशत न रहकर 3.7 प्रतिशत रही है क्योंकि वर्ष 2015 में सरकार ने वृद्धि दर निकालने के फार्मूले में जो परिवर्तन किया उससे वृद्धि दर बढ़ाकर निकाली जाने लगी।
श्री सिन्हा के तर्क में वजन हो सकता है क्योंकि सरकार ने महंगाई की दर मापने व विकास वृद्धि दर को मापने के पैमानों में परिवर्तन किया है परन्तु मुझे उनसे निराशा इस वजह से हुई कि उन्होंने सरकार को वर्तमान आर्थिक शिथिलता से बाहर आने का कोई फार्मूला नहीं बताया और उनकी आलोचना के केन्द्र में श्री जेतली लगातार इसलिए बने रहे कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें 2014 का अमृतसर से लोकसभा चुनाव हार जाने के बावजूद वित्तमन्त्री ही नहीं बनाया बल्कि रक्षामन्त्री तक का अतिरिक्त भार दे दिया था। श्री सिन्हा ने दो पूर्व भाजपा नेताओं प्रमोद महाजन व जसवन्त सिंह का नाम भी गिनाया और लिखा कि लोकसभा चुनावों में हार जाने के बाद श्री वाजपेयी ने अपने इन दोनों प्रिय नेताओं को मन्त्रिमंडल में शामिल नहीं किया था।
श्री सिन्हा का यह कहना पूरी तरह जायज है कि वित्त जैसा भारी भरकम मन्त्रालय स्वयं में रात-दिन 24 घंटे की मेहनत मांगता है अतः श्री जेतली को सुपरमैन की भूमिका में रखकर श्री मोदी ने न्याय नहीं किया। यह श्री सिन्हा का व्यक्तिगत मत हो सकता है मगर जहां तक अर्थव्यवस्था का सवाल है उसमें श्री जेतली की भूमिका का िनष्पक्ष रूप से मूल्यांकन करना होगा और यह मूल्यांकन यह है कि उन पर पिछली सरकार की उस विरासत को ढोने का भार भी था जो 2014 में लगभग पस्त हो गई थी। इसके साथ ही जीएसटी जैसे शुल्क संशोधन को लागू करने की जिम्मेदारी भी उन पर स्वाभाविक रूप से आ पड़ी थी क्योंकि मनमोहन सरकार के वित्तमन्त्री श्री पी. चिदम्बरम ने जीएसटी की गाड़ी को जहां लाकर छोड़ा था उसे आगे ले जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। मुझे बहुत प्रसन्नता होती यदि श्री सिन्हा यह स्पष्ट करते कि मनमोहन सरकार के दौरान जीएसटी पर विचार के लिए बनी संसदीय समिति के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने इस संशोधन विधेयक को राष्ट्र विरोधी क्यों बताया था। इस मुद्दे पर यदि वह प्रकाश डालते तो देशवासियों को नई रोशनी मिलती मगर एक बात और उन्होंने महत्वपूर्ण कही है कि आयकर, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) का प्रयोग जिस प्रकार छापे डालने में बेरोक-टोक हो रहा है उससे टैक्स टैरेरिज्म का वातावरण पैदा होने में मदद मिल रही है।
विपक्ष में रहते हुए भाजपा स्वयं एेसे सरकारी कदमों का जबर्दस्त विरोध करती रही है। कुल मिलाकर श्री सिन्हा के विचारों का लोकतन्त्र में विरोध करने का कोई औचित्य नहीं है। इसी प्रकार श्री वरुण गांधी ने म्यांमार से पलायन कर रहे रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में एक हिन्दी अखबार में लेख लिखकर जो विचार प्रकट किये हैं, वे भी गंभीर हैं और संजीदा हैं तथा महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं। रोहिंग्या लोगों को केवल उनके धर्म की वजह से घुसपैठिये कहना किसी भी तरह उचित नहीं होगा। वरुण गांधी ने भारत की उस संस्कृति की तरफ ध्यान दिलाया है जिसमें शरणागत की रक्षा करने के लिए प्राणों तक की भी यहां के लोगों ने परवाह नहीं की। राजस्थान के राव हम्मीर के इसी गुण की वजह से उनका नाम ‘हम्मीर हठ’ के रूप में इतिहास दर्ज हो गया क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम सरदार को मुस्लिम शासकों के खौफ से बचाने में अपनी रणथम्भौर रियासत तक को दांव पर लगा दिया था मगर असली सवाल यह है कि रोहिंग्या नागरिक हर नजरिये से शरणार्थी ही हैं जो अपने देश की सरकार के जुल्मोसितम से पीछा छुड़ाने के लिए अस्थायी तौर पर भारत में उसी प्रकार शरण चाहते हैं जिस प्रकार श्रीलंका में तमिल नागरिकों पर वहां की सरकार द्वारा जब अत्याचार किये गये थे तो वे भारत में अवैध रूप से प्रवेश कर गये थे।
उस समय भी तमिल आतंक की समस्या थी मगर भारत ने मानवीय आधार पर ही उनकी समस्या को देखा था। बेशक रोहिंग्या मुसलमानों में कुछ लोगों के तार आतंकवादियों से जुड़े हो सकते हैं मगर इसके लिए पूरे समूह वर्ग को ही उसी खांचे में खड़ा करके नहीं देखा जा सकता है। हमें अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिन्ता भी मुस्तैदी के साथ करनी है और भारतीय उपमहाद्वीप में सुख-शान्ति का प्रसार भी करना है। मजहब के आधार पर हम मानवता की परीक्षा नहीं कर सकते। आश्चर्य इस बात पर भी है कि यह वही वरुण गांधी हैं जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के प्रचार में उग्र साम्प्रदायिक बयान बोलकर सभी को हैरान कर दिया था। अतः उनके हृदय परिवर्तन के तार भी कहीं न कहीं राजनीति की चाशनी मंे लिपटे हुए हैं लेकिन इसके बावजूद विचारों से बेरुखी नहीं दिखाई जा सकती।