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राहुल से घबराई योगी सरकार?

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कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी का अमेठी दौरा स्थगित करके उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक बार फिर अपनी कमजोरी का परिचय ही नहीं दिया है बल्कि लोकतन्त्र की स्थापित मान्यता के विरुद्ध सत्ता के गरूर का इजहार किया है, जो सरकार किसी विपक्षी सांसद को उसके अपने चुनाव क्षेत्र में जाने की इजाजत केवल इसलिए देने से इंकार कर दे कि वह सुरक्षा व्यवस्था का इन्तजाम करने में असमर्थ है तो समझना चाहिए कि अफसरशाही को वह नहीं चला रही बल्कि अफसरशाही उसे चला रही है और प्रशासन पर उसका कोई दबदबा नहीं है। सवाल यह भी प्रमुख है कि क्या योगी सरकार श्री राहुल गांधी की अपने राज्य में उपस्थिति से इस तरह आशंकित है कि उनके अपने चुनाव क्षेत्र का दौरा करने से उसकी स्थिति और कमजोर हो जायेगी। परोक्ष रूप से इसका राजनीतिक अर्थ यह भी है कि श्री राहुल गांधी का राजनीतिक कद लगातार बढ़ रहा है और वह विपक्ष के विश्वसनीय नेता के रूप में उभरने की क्षमता रखते हैं।

राज्य में योगी सरकार बनने के बाद इस राज्य के लोगों की अपेक्षाओं पर जिस तरह पानी फिरा है उसका इस राज्य के इतिहास में एक मात्र दूसरा उदाहरण बहुत ढूंढने से 1970 में गठित स्व. त्रिभुवन नारायाण सिंह की सरकार के रूप में मिलता है। वह विभिन्न दलों के समायोजन से बनी सरकार के मुखिया थे और राज्यसभा सांसद रहते हुए उन्हें विधानमंडल दल का नेता चुना गया था, तब वह संगठन कांग्रेस में थे, मगर उन्होंने राज्य विधानसभा में पिछले दरवाजे (विधान परिषद) से जाने के बजाय सीधे विधानसभा का चुनाव लङऩा बेहतर समझा था जिसमें उनकी पराजय हो गई थी, मगर यह उस दौर के नेताओं की राजनीतिक नैतिकता का प्रदर्शन था। संयोग यह भी था कि श्री सिंह गोरखपुर जनपद के ही मनीराम चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़े थे और उन्हें तब इंदिरा कांग्रेस के एक अनजाने कार्यकर्ता एस.के. द्विवेदी ने हरा दिया था। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से ही चार बार सांसद रह चुके हैं मगर उनमें विधानसभा चुनाव लडऩे की हिम्मत नहीं आ पाई। बेशक विधानपरिषद के सदस्य रूप में मुख्यमन्त्री बनना कोई असंवैधानिक नहीं है मगर भाजपा के लिए यह विचारणीय मुद्दा जरूर होना चाहिए था क्योंकि वह राज्यसभा सदस्य के रूप में देश के प्रधानमन्त्री पद पर आसीन रहने वाले डा. मनमोहन सिंह की सख्त आलोचक रही थी।

सीधे जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि का किसी राज्य या देश का मुखिया बनना लोकतन्त्र में जनता की सरकार की विश्वसनीय जवाबदेही का पैमाना होता है, हालांकि पिछले समाजवादी पार्टी के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव भी विधानपरिषद के ही सदस्य थे मगर वह वंशवाद की बेल पर चढ़कर मुख्यमन्त्री बने थे जिसकी भाजपा कटु आलोचक है, मगर योगी सरकार का अजीब हाल है कि वह राहुल गांधी पर वंशवाद का आरोप लगाने के बावजूद उनसे भय खा रही है जबकि मुख्यमन्त्री के प्रशासन का अन्दाज यह है कि वह पिछले पांच दिनों से सरकारी कामकाज छोड़कर अपने गोरखनाथ मठ के प्रमुख की भूमिका में हैं और उन्हें प्रशासन से कोई मतलब नहीं है, यदि योगी को मठाधीश बने रहना है तो उन्हें मुख्यमन्त्री पद से निवृत्त हो जाना चाहिए, क्योंकि वह संवैधानिक दायित्व को मुख्यमन्त्री रहते हुए एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ सकते हैं। इसका किसी धर्म से कोई मतलब नहीं है बल्कि संविधान से सीधा सरोकार है और प्रशासन के मुखिया होने के नाते वह किसी मठ के मठाधीश तभी रह सकते हैं जबकि व्यक्तिगत रूप में अपने निजी धर्म का पालन करें।

मुख्यमन्त्री के रूप में उनका धर्म केवल संविधान है, मगर उत्तर प्रदेश की सरकार लाल बुझक्कड़ की मानिन्द चल रही है और मठाधीश के रूप में गोरखपुर में सार्वजनिक यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध निजी धार्मिक सेनाओं के हवाले कर दिया जाता है और राज्य प्रशासन सारा तमाशा देखता रहता है। दरअसल यह तमाशा कानून के राज का हुआ है जिसकी व्यवस्था संविधान करता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में किसी भी चुने हुए मुखिया के भाग लेने से मनाही नहीं है मगर राजपाठ छोड़कर किसी कार्यकारी प्रमुख का इस प्रकार का व्यवहार कई प्रकार के सवाल उठाता है। जिस गोरखपुर के अस्पलात में आक्सीजन की कमी से मृत बच्चों के मां-बापों की चीख-पुकारें अभी तक थमीं न हों वहां का मुख्यमन्त्री यदि इस प्रकार की हरकतें करता है तो लोकतन्त्र शर्मसार हुए बिना नहीं रह सकता, जिस राज्य में हत्या और लूटमार और बलात्कार का सिलसिला अभी तक थमा न हो वहां की सरकार कह रही है कि वह विपक्ष के नेता को सलाह देती है कि वह अपना दौरा स्थगित करके किसी और दिन नियत कर लें।

सवाल राहुल गांधी का बिल्कुल नहीं है बल्कि लोकतन्त्र की उस मर्यादा का है जिसमें विपक्षी नेताओं को पूरे देश में किसी भी स्थान पर जाने में सम्बन्धित सरकारें पूरा सहयोग करती हैं बशर्ते वहां की स्थिति इस प्रकार की न हो कि किसी नेता के जाने से हालात और खराब होने का अन्देशा हो। मेरा आशय किसी भी पार्टी या नेता के पक्ष लेने का बिल्कुल नहीं है बल्कि लोकतन्त्र के उस मान को कायम रखने की तरफ ध्यान दिलाने का है जिसकी वजह से योगी जी मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बिराजे हैं। लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का शासन अदलता-बदलता रहता है, मगर जो नहीं बदलता वह केवल संविधान की मर्यादा और उसके बताये हुए नियम व कायदे होते हैं। इसके साथ ही लोकलज्जा लोकतन्त्र का आभूषण होती है। इसे उतार देने पर प्रशासन निर्लज्जता के दायरे में आ जाता है। अमेठी उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं है कि वहां पहुंचने पर योगी सरकार राहुल गांधी की सुरक्षा व्यवस्था न कर सके और ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी वहां पहुंच कर योगी सरकार के खिलाफ किसी क्रान्ति का आह्वान करने वाले हों, योगी 325 विधायकों के बहुमत वाली पार्टी के मुख्यमन्त्री हैं। राहुल तो केवल अपने चुनाव क्षेत्र का दौरा करने जा रहे थे जो किसी भी सांसद का मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि मूल जिम्मेदारी भी है।

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