उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव 2023 को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा था। भारतीय जनता पार्टी हो या विपक्षी दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस हो या छोटे-छोटे दल सभी के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए इन चुनावों का अपना ही महत्व था। यह पहला ऐसा चुनाव रहा जो अकेले योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने लड़ा। 2017 के विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में हुए चुनावों में भाजपा लगातार मजबूत होती गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि भी लगातार चमकदार होती गई। योगी आदित्यनाथ की छवि के चमकदार होने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के दिग्गज नेता कर्नाटक चुनावों में व्यस्त रहे। इसलिए योगी आदित्यनाथ को निकाय चुनावों का सारा दायित्व खुद अपने कंधों पर उठाना पड़ा। उन्होंने निकाय चुनावों को बहुत गम्भीरता से लिया और उन्होंने धुआंधार चुनावी रैलियां कर भाजपा की जीत को सुनिश्चित बनाया।
नगर निगमों और नगर पालिका चुनावों में भाजपा ने पूरी तरह से अपना डंका बजा दिया है। चुनाव परिणामों से साफ है कि शहरी क्षेत्रों में भाजपा का जनाधार इतना मजबूत है कि उसे कोई दूसरी पार्टी मात नहीं दे सकती। सपा ने 17 नगर निगमों में 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसे कोई फायदा नहीं हुआ। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बात करें तो लखनऊ में उनका प्रचार मैट्रो तक ही सीमित रहा आैर अन्य शहरी क्षेत्रों में उनका प्रचार महज रस्म अदायगी ही रहा। नगर परिषदों के चुनाव में भी भाजपा ने बाजी मार ली है। हालांकि सपा, बसपा और कांग्रेस ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। नगर निकाय चुनाव प्रायः स्थानीय मुद्दों पानी, बिजली, सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं को लेकर लड़े जाते रहे हैं लेकिन अब इन चुनावों में स्थानीय मुद्दे गायब हो चुके हैं। नगर निगमों और नगर परिषदों के चुनाव में परिवहन, ट्रैफिक जाम, बाजारों में अतिक्रमण आदि के मुद्दे कहीं नजर नहीं आए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सारा चुनाव प्रचार इस बात पर रहा-
‘‘न कोई कर्फ्यू न कोई दंगा
यूपी में सब चंगा।’’
मुख्यमंत्री ने जनता को सम्बोधित करते हुए यह स्लोगन बार-बार दोहराया कि रंगदारी न फिरौती, अब यूपी नहीं है किसी की बपोती।
निकाय चुनावों में योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्व के साथ सख्त प्रशासक की छवि के साथ भाजपा का नेतृत्व करने में जुड़े रहे। सबका साथ सबका विकास का नारा उछालते हुए उनका सबसे ज्यादा जोर अपराधियों पर एक्शन पर ही रहा। माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे वाला बयान सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। उमेश पाल हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बुल्डोजर एक्शन से लेकर शूटर्स का एनकाउंटर हो या माफिया अतीक अहमद और उसके भाई का पुलिस कस्टडी में हत्याकांड, भाजपा ने इन घटनाक्रमों को हर जगह प्रचारित किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी शासन में गैंगस्टरों और बड़े माफियाओं पर शिकंजा कसा गया है और राज्य के अपराधी अब ठंडे होकर बैठ गए हैं। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर योगी सरकार की उपलब्धियों ने उनकी छवि को और मजबूत किया है। विकास उस जगह होता है जहां शांति हो। उद्योगपति उसी राज्य में निवेश करते हैं जहां उन्हें कोई खतरा न हो। यही कारण रहा कि अब उत्तर प्रदेश देशभर के निवेशकों का आकर्षक स्थल बन गया है। जहां तक नगर पंचायत चुनावों का सवाल है भाजपा उसमें आगे रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों के चुनावी समीकरण शहरी क्षेत्रों से काफी अलग होते हैं। मगर पंचायत चुनावों में कहीं-कहीं सपा और बसपा उम्मीदवारों ने उल्टफेर भी किया है। कई क्षेत्रों में भाजपा, सपा और बसपा में दिलचस्प टक्कर भी देखने को मिल रही है। सपा को एकजुट मुस्लिम वोटरों से बहुत उम्मीद थी लेकिन उसका सपना भी खंडित हुआ है। बसपा अपने वोट बैंक के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही है। भाजपा ने इस बार 300 से ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी इन चुनावों में उतारे थे। पार्टी ने पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने के लिए काफी मेहनत की। मुस्लिमों का कितना साथ भाजपा को मिला इसका अनुमान तो पूरे चुनावी परिणामों का विश्लेषण करने के बाद ही पता चलेगा। स्थानीय चुनावों का कोई संकेत है तो यह कि उत्तर प्रदेश में 2024 के आम चुनावों में भाजपा के मुकाबले में कोई अन्य पार्टी नहीं होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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