भारत और जापान के बीच मैत्री का एक लम्बा इतिहास रहा है जो आध्यात्मिक सोच में समानता तथा मजबूत सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत रिश्तों पर आधारित है। दोनों देशों ने पुराने सम्बन्धों की सकारात्मक विरासत को जारी रखा है जो लोकतंत्र, व्यक्तिगत आजादी तथा कानून के शासन में विश्वास के साझे मूल्यों से सुदृढ़ हुआ है। दोनों देशों ने इन मूल्यों को मजबूत किया है तथा सिद्धांत और व्यवहार दोनों के आधार पर एक साझेदारी का निर्माण किया है। जापान के साथ भारत का सबसे पुराना प्रलेखित सीधा सम्पर्क नाटा में तुड़ाई जी मन्दिर था, जहां 752 ईस्वी सन् में भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिसेना द्वारा गगनचुम्बी भगवान बुद्ध की प्रतिमा का अभिषेक किया गया।
जापान से जुड़े अन्य भारतीयों में स्वामी विवेकानन्द, नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर, उद्योगपति जेआरडी टाटा, स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और न्यायाधीश राधा विनोद पाल महत्वपूर्ण रहे। भारत-जापान संघ का गठन तो 1903 में ही हो गया था। व्यवसाय एवं वाणिज्यिक हितों के लिए जापान में भारतीयों के पहुंचने की शुरूआत 1870 के दशक में याकोहामा एवं कोबे के दो प्रमुख खुले बंदरगाहों पर शुरू हुई थी। हाल ही के वर्षों में भारी संख्या में पेशेवरों के पहुंचने की वजह से भारतीय समुदाय की संरचना में बदलाव आया है। इनमें आईटी प्रोफैशनल तथा इंजीनियर शामिल हैं जो भारत और जापान की फर्मों के लिए काम कर रहे हैं। प्रबन्धन, वित्त, शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान में पेशेवर काम कर रहे हैं जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अलावा भारतीय एवं जापानी संगठनों द्वारा नियुक्त किया गया है। टोक्यो में निशिकसाई क्षेत्र लघु भारत के रूप में उभर रहा है।
भारतीयों की संख्या को देखते हुए ही टोक्यो और याकोहामा में भारतीय स्कूल खोले गए। भारतीय समुदाय जापानी नागरिकों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से रह रहा है। भारतीय समुदाय विदेश में रहता है तो वह वहां के संविधान और संस्कृति को आत्मसात कर वहां की प्रगति में अपना योगदान दे रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, मारीशस, फिजी और अन्य कई देशों में अप्रवासी भारतीयों ने वहां की सियासत में भी शीर्ष पद हासिल किए हुए हैं। इसी कड़ी में अब जापान का नाम भी शामिल हो गया है। भारतीय मूल के पुराणिक योगेन्द्र ने टोक्यो में एरोगावा वार्ड असैम्बली चुनाव में जीत हासिल की है। 41 वर्षीय योगेन्द्र का निकनेम योगी है। वह पहले भारतीय हैं जिन्होंने जापान में चुनाव जीता है।
योगी 1997 में जापान पहुंचे थे। भारत में यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इंजीनियर के तौर पर जापान में काम शुरू किया। इस दौरान उन्होंने बैंक और दूसरी कम्पनियों में काम किया। 2005 से वह एरोगावा के नागरिक बन गए। वैसे तो जापान में 34 हजार के करीब भारतीय रहते हैं। एरोगावा वार्ड में ज्यादा संख्या में भारतीय रहते हैं। टोक्यो के 23 वार्डों में रहने वाले 4300 लोगों में 10 फीसदी भारतीय हैं। 2011 में जापान में आए भूकम्प के बाद योगी ने तय किया कि वह जापान की नागरिकता लेंगे। भूकम्प के दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद की और वह उनसे काफी घुल-मिल गए। उन्हें जापानी बेहद विनम्र लगे और योगी स्वयं काफी विनम्र हैं।
जापान के चुनावों में भारतीय मूल के जापानी की जीत से यह संकेत मिलता है कि जापान के समाज निर्माण में भारतीयों ने किस तरह अपना योगदान दिया है। योगी जापान और भारत के बीच एक सेतु का काम कर सकते हैं। 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ 12 बार मुलाकात कर चुके हैं। शिंजो आबे भी तीन बार भारत का दौरा कर चुके हैं। जापान भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजैक्ट पर काम कर रहा है। मैट्रो प्रोजैक्ट तो जापान की ही देन है। जापान और भारत एशिया की क्रमशः दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। दोनों के बीच का व्यापार 15 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया और 2010 तक यह 50 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
जापान चेन्नई, अहमदाबाद और वाराणसी को स्मार्ट सिटी प्रोजैक्ट के तहत भी मदद कर रहा है। चीन-भारत डोकलाम विवाद में भी जापान ऐसा देश था जिसने भारत का खुले मंच से समर्थन किया था। भारत और जापान में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग और सामरिक समझौते भी हुए हैं। दोनों देशों के लोगों ने आपस में आम सांस्कृतिक परम्परा साझा की। इसमें बौद्ध धर्म की विरासत, जनतांत्रिक मूल्यों और खुले समाज का विचार शामिल है। इसी के चलते जापान में भारतीय मूल के योगी की जीत हुई है। हमें जापान से सहिष्णुता समेत कई बातों को सीखने की जरूरत है।