जाति सर्वेक्षण पर अपने-अपने सवाल

जाति सर्वेक्षण पर अपने-अपने सवाल
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राहुल गांधी की जाति क्या है? यह सवाल इसलिए पूछा जाना चाहिए, क्योंकि विपक्ष के नेता देशभर में जाति जनगणना चाहते हैं। दूसरे दिन लोकसभा में बोलते हुए गांधी ने कहा कि आरक्षण कोटा तय करने के लिए जाति जनगणना कराई जानी चाहिए। बसपा के संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम द्वारा सर्वप्रथम प्रचलित किए गए नारे 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' को उधार लेते हुए, राहुल हाल के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इसी बात पर जोर दे रहे हैं। (यह अलग बात है कि कांशीराम और मायावती दोनों ने जल्द ही इस नारे को त्याग दिया क्योंकि उन्हें अहसास हो गया था कि यह नारा विभाजनकारी है और अन्य सभी जातियों को अलग-थलग कर रहा है।)
यह समझना कठिन नहीं है कि राहुल जाति जनगणना की मांग क्यों कर रहे हैं। वह दलितों और ओबीसी का समर्थन वापस पाने के लिए ऐसा करते हैं, जो हाल के वर्षों में कांग्रेस पार्टी को छोड़ चुके हैं। इस प्रक्रिया में वह भाजपा के हिंदुत्व क्षेत्र को विभाजित करना चाहते हैं। लोकप्रियता हासिल करने और भाजपा को कमजोर करने के लिए हिंदुओं को बांटना ही जाति जनगणना की उनकी मांग के पीछे की वजह है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में बोलते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि 'जाति जनगणना की मांग करने वालों को यह नहीं पता कि उनकी अपनी जाति क्या है।' हालांकि उन्होंने राहुल का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका निशाना स्पष्ट था।
दरअसल, अपनी जाति को महत्वपूर्ण बनाने का दोष राहुल पर आ सकता है तथा इस मामले पर जातपात को लेकर सवाल उठाने वालों को कोई रोक नहीं सकता। उस दौरान संकट में घिरे प्रधानमंत्री वीपी सिंह द्वारा राष्ट्र में मंडल आरक्षण को लागू किया गया। वहीं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। साथ ही अपनी कुर्सी बचाने के लिए वीपी सिंह ने बोतल में बंद इस रिपोर्ट को सार्वजिनिक कर दिया लेकिन इस सब के बावजूद भी वह अपनी कुर्सी बचाने में नाकामयाब रहे, जिसके चलते सामाजिक एकजुटता और एकता को गहरा आघात पहुंचा और इस रिपोर्ट के बाद समाज में जाति की भूमिका कम होने के बजाय बढ़ गई और धीरे-धीरे यह आगे चलकर सामाजिक पहचान का निर्धारक बन गई।
यही कारण है कि राजनेता जाति का कार्ड खेलकर सस्ती लोकप्रियता भुनाने में जुटे हैं। जाति के आधार पर समाज का विखंडन अब एक वास्तविकता बन गई है। हालात ये बन गए हैं कि समय के साथ देश में पार्टियां और राजनीतिक समूह भी जातियां और जातीय समूह के समांतर बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके भी राहुल गांधी बेतुके सवाल उठाकर सार्वजनिक चर्चा को नीचा दिखाने पर तुले हुए हैं, जो केवल जातिगत विभाजन को बढ़ा सकते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह व्यापक सामाजिक शांति और सद्भाव के उद्देश्य को नुकसान पहुंचाता है। समाज को जाति के आधार पर बांटकर हम निरंतर पिछड़ रहे हैं लेकिन बावजूद इसके राजनीतिक दल समाज को जातियों में बांटकर दलदल में धकेल रहे हैं।
हालांकि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को पार करने के लिए कुछ राज्य सरकारों ने अपरंपरागत तरीकों का सहारा लिया है। क्योंकि वर्तमान में महाराष्ट्र में एक अल्पज्ञानी नेता प्रभुत्वशाली मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करके सत्ताधारी दल के लिए कांटा बन गया है। बहरहाल मराठा आरक्षण के सवाल को संभालना बहुत पेचीदा हो गया है। दूसरी तरफ आरक्षण को लेकर राहुल गांधी की से दिए जा रहे बयानों से हालात भी खराब हो सकते हैं। क्योंकि मतदाताओं को लुभाने के अपने प्रयास में उनका जातियों को लेकर दिया जाने वाला हवाला व्यापक राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचा सकता है। वैसे भी आरक्षण की मौजूदा मांगें अलग-अलग राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी समस्या हैं और उन्हें जाति का राग अलापने के बजाए, लोकप्रियता हासिल करने के लिए कोई अन्य तरीका खोजना चाहिए।

– वीरेंद्र कपूर

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