महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की घड़ी अब करीब आ चुकी है। उम्मीदवारों ने आपको खूब रिझाया है, बड़े-बड़े वादे किए हैं। आपने सबको सुना है, देखा है, परखा है और अब आपकी बारी है। मतदान के पहले कुछ कसौटियों पर अपने उम्मीदवारों को परखिए, वे कितने योग्य हैं, उनकी क्षमता क्या है, अभी तक का उनका व्यवहार कैसा रहा है, अपने क्षेत्र को लेकर वे कितने चैतन्य हैं? और भी जो सवाल आपके मन में पैदा हो रहे हों उनके जवाब तलाशने के बाद ही यह तय कीजिए कि आप किसे वोट देंगे। यह बात याद रखिए कि आपका वोट ही आपकी सरकार तय करने वाला है। प्रदेश का भाग्य अगले पांच वर्षों के लिए आपके वोट से ही तय होना है इसलिए वोट देने जरूर जाइएगा।
मगर मैं जानता हूं कि आपके सामने ढेर सारी चुनौतियां भी हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जाति, धर्म और भाषा के नाम पर आपको बहुत बरगलाने की कोशिश की गई है। मैं लगातार इस तरह के विश्लेषण सुनता रहा हूं कि अमुक विधानसभा क्षेत्र में इतने इस जाति के लोग हैं, इतने इस धर्म के लोग हैं, कई जगह भाषा को लेकर भी विश्लेषण किए जाते रहे हैं। स्वाभाविक तौर पर इसका असर हो सकता है, किसी व्यक्ति को लग सकता है कि यह उम्मीदवार हमारी जाति का है तो हमें वोट इसे ही देना चाहिए लेकिन क्या यह सही विचार है? जाति हमारी परंपरागत मान्यताओं में शामिल हो सकती है लेकिन जब उन्नत और आधुनिक महाराष्ट्र की हम कल्पना करते हैं, जन-जन के लिए खुशहाल महाराष्ट्र की कल्पना करते हैं तो हमें जाति आधारित राजनीति से दूर होना पड़ेगा।
महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या करीब 9 करोड़ 63 लाख है। आपको जानकर खुशी होगी कि इनमें से 1 करोड़ 85 लाख युवा मतदाता हैं और मुझे भरोसा है कि आधुनिक पीढ़ी के ये युवा जाति और धर्म से ऊपर उठकर मतदान करेंगे। युवा मतदाताओं को लेकर एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर मैं चुनाव आयोग का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा ताकि इस चुनाव के बाद के चुनावों में युवा मतदाताओं को सहूलियत हो। मैं लोकतंत्र के प्रति जागरूक ऐसे कई युवाओं को जानता हूं जो दूसरे प्रदेशों में या दूसरे शहरों में काम कर रहे हैं लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में वोट देने के लिए खुद के हजारों रुपए खर्च करके वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे ताकि वोट डाल सकें लेकिन ये संख्या बढ़नी चाहिए। यदि इन युवाओं को यह सुविधा प्रदान कर दी जाए कि वे जहां हैं, वहीं से ऑनलाइन वोट डाल सकते हैं तो मुझे लगता है कि लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में यह बड़ा कदम होगा।
आज तकनीकी रूप से हम इतने सक्षम हैं कि ऐसी व्यवस्था कर सकें लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में यह नहीं हो पा रहा है। कहने को डाक मतपत्र की व्यवस्था है लेकिन इसकी प्रक्रिया के बारे में कितने लोगों को पता है? आमतौर पर सरकारी कर्मचारी और सेना तथा अर्धसैनिक बलों के लोग ही इसका ज्यादा उपयोग कर पाते हैं। घर से दूर रहकर चुनाव ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारी और सुरक्षा बलों के जवान तो वोट से वंचित ही रह जाते हैं, उनके वोट के बारे में आपने क्या सोचा है। हाल ही में अमेरिका में चुनाव हुए हैं। वहां लोग बड़े पैमाने पर डाक मतपत्र का उपयोग करते हैं। मुझे उम्मीद है कि वक्त के साथ भारत में भी व्यवस्था इतनी सुचारू हो जाएगी कि कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण से मतदान से वंचित न रहने पाए। अगर करोड़ों रुपए का बैंक ट्रांजेक्शन मोबाइल पर कर सकते हैं, शेयर के सौदे कर सकते हैं, हवाई, रेलवे और बस टिकट खरीद सकते हैं, प्लेन की बोर्डिंग कर सकते हैं तो ऑनलाइन मतदान क्यों नहीं हो सकता?
वैसे आजादी के बाद अत्यंत कम समय में भारतीय निर्वाचन व्यवस्था ने जो ऊंचाइयां हासिल की हैं वह किसी करिश्मे से कम नहीं है। 1951 में भारत में जब पहला चुनाव हुआ था तब भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के सामने स्थिति विकट थी, बहुत से लोग निरक्षर थे। बहुत सी महिलाएं अपने नाम से जानी ही नहीं जाती थीं लेकिन सेन और उनकी टीम की मेहनत रंग लाई। सरकार भी पूरी तरह साथ थी। पहले ही चुनाव में 21 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले सभी नागरिकों को मताधिकार दिया गया। इसमें स्त्री, पुरुष, जाति या धर्म के नाम पर कोई भेद नहीं किया गया। इसकी महत्ता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिस संयुक्त राज्य अमेरिका को हम आज सबसे ज्यादा विकसित मानते हैं वहां अफ्रीकी मूल के अमेरिकी लोगों को मताधिकार पाने के लिए स्वतंत्रता के बाद करीब 100 वर्षों तक और अमेरिका के कुछ राज्यों में महिलाओं को करीब 150 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा था। स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देश में भी महिलाओं को मताधिकार पाने के लिए सौ वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा था।
हमारे निर्वाचन आयोग ने चुनाव की शुचिता को भी सुनिश्चित किया। पहले चुनाव में निरक्षर मतदाताओं की संख्या काफी थी इसलिए चुनाव चिन्ह का उपयोग शुरू हुआ ताकि न पढ़-लिख पाने वाले लोग भी चिन्ह पहचान कर वोट दे सकें। कोई दोबारा वोट डालने की जालसाजी न करे इसलिए एक ऐसी स्याही ईजाद की गई जो कई दिनों तक मिटे ही नहीं। आपको जानकर खुशी होगी कि इस अमिट स्याही का फॉर्मूला आज भी सार्वजनिक नहीं है। भारत में निर्वाचन प्रक्रिया को परवान चढ़ाने में निश्चय ही सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी महत्वपूर्ण रही है। राजनीतिक दलों के बीच विचारधारा की लड़ाई होती थी लेकिन उनके नेताओं के बीच कभी मनभेद नहीं होता था।
आज दुर्भाग्य से विचारधारा का कोई महत्व नहीं रह गया है और राजनीतिक दल ऐसे चुनाव लड़ते हैं जैसे एक-दूसरे को बर्बाद कर देना चाहते हों। मगर सौभाग्य की बात है कि भारतीय मतदाता वैचारिक रूप से लगातार समृद्ध होता गया है। आप मतदाताओं को इस बात की पूरी समझ होती है कि किस उम्मीदवार का चुना जाना हमारे लिए, समाज के लिए और राज्य के लिए बेहतर होगा। महाराष्ट्र के मतदाताओं के सामने एक बार फिर परीक्षा की घड़ी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि अगले 48 घंटों में आप संपूर्ण विश्लेषण करेंगे और वोट उसे ही देंगे जो आपकी कसौटियों पर खड़ा उतरेगा। एक बार फिर आग्रह करूंगा कि वोट देने जरूर जाइएगा, आपके वोट से ही आपकी सरकार बनेगी।