सीमा पर या आतंकवादी हमलों में जब कोई जवान शहीद होता है तो हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं और शहीदों के लिए श्रद्धा और सम्मान की भावना जीवन भर के लिए हमारे हृदय में रहती है। शहीदों के सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के समय गांव के गांव उमड़ पड़ते हैं ताकि उनके परिवारजनों को इस बात का अहसास हो कि दुख की घड़ी में हम सब उनके साथ खड़े हैं। शहीदों की चरण रज किसी भी धर्मस्थल की भभूति के समान है जिसे हम अपने माथे पर लगाते हैं। शहीदों के परिवारजनों की अपनों को खाेने की पीड़ा तो उम्रभर कम नहीं होती लेकिन उन्हें और समूचे राष्ट्र को उनकी शहादत पर हमेशा गर्व रहता है। अपने देश के लिए जान कुर्बान करना गर्व की बात है लेकिन बेहतर जिन्दगी की चाह में विदेश जाने वाले भारतीय युवाओं की युद्ध में मौत बहुत सारे सवाल खड़े करती है। रूस-यूक्रेन जंग में लड़ते हुए एक और भारतीय मोहम्मद अफसान की मौत दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही बल्कि यह चिंता भी पैदा करने वाली है। इससे पहले गुजरात के सूरत के रहने वाले 23 वर्षीय युवक हामिल मंगूकिया की रूसी सेना के लिए लड़ते हुए मौत हो गई। इजराइल-हमास युद्ध में भी मिसाइल हमले में एक भारतीय की मौत हो चुकी है।
सवाल यह है कि भारतीय युवाओं को दूसरे देश के लिए क्यों लड़ना पड़ रहा है और अपनी कीमती जानें क्यों गंवानी पड़ रही हैं। मां-बाप अपने बच्चों की जिन्दगी संवारने के लिए लाखों रुपए खर्च कर बच्चों को नौकरी के लिए विदेश भेजते हैं लेकिन उन्हें वहां धोखाधड़ी से जंग लड़नी पड़ रही है। पहले तो यह रिपोर्ट आई थी कि रूस-यूक्रेन जंग में करीब एक दर्जन से अधिक भारतीय युवाओं को फ्रंट लाइन पर लड़ने के लिए लाया गया है लेकिन पिछले हफ्ते यूक्रेन की जंग में फंसे पंजाब और हरियाणा के युवाओं की वीडियो खौफनाक कहानी बयान कर रही है। यह भारतीय युवा टूरिस्ट वीजा पर रूस गए थे लेकिन उनके साथ धोखाधड़ी की गई। वीडियो में युवाओं ने बताया कि रूसी पुलिस ने उन्हें 10 साल जेल भेजने की धमकी देकर उन्हें 'हैल्पर' के रूप में यूक्रेन की जंग में भेज दिया। उन्हें यह बताया गया कि उन्हें केवल सहायक का काम करना है लेकिन इन्हें हथियारों और गोला बारूद की ट्रेनिंग में शामिल कर लिया गया। रूसी सेना ने उनके मोबाइल फोन भी छीन लिए और उन्हें भूखा भी रखा जा रहा है। विदेश भेजने के नाम पर ट्रैवल एजैंसियों और एजैंटों की धोखाधड़ी भारत में कोई नई बात नहीं है। वैसे भी भारतीयों में विदेशों में जाकर धन कमाने का क्रेज काफी ज्यादा है। जंग में फंसे भारतीयों की कहानी भी एजैंटों की धोखाधड़ी का ही परिणाम है।
एजैंटों ने इन्हें प्रलोभन दिया था कि शुरूआती तीन महीनों के लिए उन्हें 50 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलेगा जो धीरे-धीरे बढ़कर डेढ़ लाख तक हो जाएगा। एक साल तक काम करने के बाद वे रूसी पासपोर्ट और नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह एक आकर्षक प्रस्ताव था और दुर्भाग्य से वे इनके झांसे में आ गए और मास्को चले गए। वहां इन्हें किसी कम्पनी या उद्योग की बजाय प्राइवेट आर्मी वैगनर में हैल्पर के तौर पर भर्ती कर लिया गया और बाद में प्राइवेट आर्मी वैगनर ने इन्हेंं जंग में धकेल दिया। रूसी सेना में शामिल कश्मीरी युवक आजाद यूसुफ भी है और उसकी मां के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। भारत सरकार और विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे को बड़ी गम्भीरता के साथ रूसी सरकार के समक्ष उठाया। पहले यह खबर आई थी कि रूसी सेना ने भारतीयों को रिलीव कर दिया है लेकिन एक के बाद एक कहानियां सामने आ रही हैं। इन युवाओं के परिजन केन्द्र सरकार और मास्को स्थित भारतीय दूतावास से गुहार लगा रहे हैं कि उनके बच्चों को सुरक्षित वापिस लाया जाए।
भारतीय ट्रैवल एजैंटों की धोखाधड़ी का शिकार होते रहे हैं। डंकी रूट से विदेश जाने की चाह में सैंकड़ों लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं। माल्टा नौका कांड तो पाठकों के जहन में होगा ही। 26 दिसम्बर, 1996 को भूमध्य सागर में माल्टा के पास नाव पलटने से 290 लोगों की मौत हो गई थी। मारे गए 170 युवाओं में अधिकतर पंजाब के युवा थे। यह युवा मानव तस्करों की धोखाधड़ी और जालसाजी का शिकार हुए थे जिन्होंने उन्हें यह आश्वासन दिया था कि उन्हें यूरोप के देशों में तस्करी कर ले जाया जाएगा और वहां उन्हें नौकरी भी दिलवाई जाएगी। आज तक मारे गए परिवारों को न्याय नहीं मिला। भारत में समस्या बेेरोजगारी की भी है। अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा का भी यहां अभाव है। न नौकरियां, न अच्छा वेतन तो फिर युववों का पलायन कैसे रुके। विदेश जाने का जुनून इसिलए पैदा हुआ क्योंकि हम युवाओं को उनकी शिक्षा के मुताबिक भी नौकरियां नहीं दे सके। युवा विदेश जाने का सपना पाल बैठे और नौबत यह आ गई कि अब वे भाड़े के सैनिक बनने को मजबूर हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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