शांति युद्ध से नहीं आती। युुद्ध में न कोई जीतता है न कोई हारता है। हारती है तो सिर्फ मानवता। युद्ध से हंसते-खेलते शहर श्मशान में बदल जाते हैं। कोई जीत भी गया तो उस जीत में भी लाखों लोगों की आहें सिसकियां और निर्दोषों का खून छिपा होगा। युद्ध में हुए विध्वंस को सृजन में बदलने में वर्षों लग जाएंगे इसलिए युद्ध जल्द खत्म होने ही चाहिएं। एक तरफ इजराइल हमास युद्ध का लगातार विस्तार हाे रहा है। इजराइल और हिजबुल्लाह भी आपस में उलझ पड़े हैं तो दूसरी तरफ रूस और यूक्रेन में घमासान बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन यात्रा के बाद सभी की नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए क्या भारत कोई कदम उठाएगा। कूटनीतिक क्षेत्रों में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिए गए प्रस्ताव की काफी चर्चा है। जेलेंस्की ने भारत द्वारा रूस और यूक्रेन में संतुलन स्थापित करने के प्रयासों को एक तरफ करते हुए प्रस्ताव रखा है कि भारत अपने यहां शांति शिखर सम्मेलन की मेजबानी करे। प्रथम यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन जून में स्विट्जरलैंड में आयोजित किया गया था। जिसमें सऊदी अरब, कतर, तुर्किए समेत 90 देशों ने भाग लिया था। जेलेंस्की के प्रस्ताव का काफी कूटनीतिक महत्व है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन में शांति लाने में एक मित्र के रूप में अपनी भूमिका की पेशकश की थी।
जेलेंस्की ने यह भी कहा कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उसे शांति सम्मेलन करवाना चाहिए। इसके लिए कई देशों से बातचीत चल रही है। भारत को युद्ध रुकवाने में सहयोगी की भूमिका निभाने पर कोई आपत्ति नहीं होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि भारत शांंति वार्ता का सूत्रधार बन सकता है। यह भी सच है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन को स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है। ऐसी दो टूट बात कोई यूरोपियन तो बोल नहीं सकता। युद्ध रुकवाने के लिए तो कई लोग पहल कर चुके हैं लेकिन जब तक युद्ध लड़ रहे दोनों देश वार्ता के लिए तैयार नहीं होते तब तक कोई समाधान नहीं निकलने वाला। शांति युद्ध के बाद से यानि 1991 के बाद अब तक भारत की ऐसी कोशिश नहीं रही कि अब वो मध्यस्थता की बात करे। चाहे वो अफगानिस्तान हो, ईराक हो, सीरिया हो या कोई अन्य देश। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि मध्यस्थ के रूप में भारत किस तरह की भूमिका निभाएगा। जेलेंस्की के प्रस्ताव पर भारत सरकार गंभीरता से विचार कर रही है और इसकी वजह से होने वाले नफे नुकसान का अंदाजा लगाने के बाद ही भारत इस वार्ता को हरी झंडी दिखाएगा। जेलेंस्की ने यह भी कहा कि अगर भारत और वहां के लोग रूस के प्राति अपना रवैया बदल लें तो यह जंग रुक सकती है। भारत का रूस की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है।
अगर भारत रूस से तेल आयात करना बंद कर दे ताे पुतिन के लिए यह बड़ी चुनौती होगी। यद्यपि तेल खरीदने के मामले पर भारत ने यही कहा कि तेल की खरीद पूरी तरह से बाजार की हालत पर निर्भर है। सच तो यह भी है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे तो भारत में तेल के दाम इतने बढ़ जाएंगे जिससे अर्थव्यवस्था पर संकट बढ़ जाएगा। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत अपने यहां यूक्रेन शांति सम्मेलन का आयोजन कर पाएगा क्योंकि रूस भारत का परखा हुआ मित्र है। भारत और रूस में मजबूत रणनीतिक सैन्य आर्थिक और राजनयिक संबंध हैं। जब युद्धों में अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था तब रूस ने ही हमारा साथ दिया था। भारत में बुनियादी ढांचे के निर्माण में रूस की बड़ी भूमिका रही है। रक्षा सामग्री से लेकर अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा में भी उसने हमें हर तरह की मदद दी है। भारत अपने परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम में भी रूस का सहयोग लेता है। अक्तूबर 2000 में भारत-रूस सामरिक साझेदारी घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद से दोनों देशों के सहयोग में नया स्वरूप देखने को मिला है। भारत को सबसे पहले अपने हितों का ध्यान रखना है। भारत की भी कुछ अपनी सीमाएं हैं। भारत रूस को नाराज करने का खतरा मोल नहीं ले सकता। भारत को अमेरिका और पश्चिमी देशों से भी किसी भी संकट की स्थिति में साथ खड़े होने की उम्मीद भी नहीं है।
भारत रूस के साथ रहकर चीन से मंडराते खतरे को भी दरकिनार कर सकता है। भारत की भूमिका रूस और पश्चिमी देशों के बीच रस्सी पर चलने जैसी है। भारत दोनों पक्षों को एक प्लेटफार्म उपलब्ध तो करा सकता है। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जेलेंस्की और पुतिन को वार्ता की मेज पर लाने के लिए सफल हो जाते हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी कूटनीतिक सफलता होगी। युद्ध हो या आतंकवादी हमले मानवता हमेशा कराहती है। निर्दोष लोग और बच्चे मरते हैं। इसका दर्द काफी असहनीय होता है। युद्ध खत्म होना ही चाहिए। देखना होगा कि आने वाले दिनों में परिस्थितयां क्या मोड़ लेती हैं।