नीट-नेट उलझन में फंसे युवा
नीट परीक्षा देने वाले 24 लाख छात्र और उनके परिवार तो दुविधा में फंसे हुए हैं लेकिन अचानक यूजीसी की नेट परीक्षा रद्द किए जाने से परीक्षा देने वाले 9 लाख छात्र भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पेपर लीक हो जाने के मुद्दे को लेकर आक्रोशित युवा देशभर में प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि इस समय देश के युवा नेट और नीट में ही उलझ कर रह गए। लाखों छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था एनटीए पर छात्रों का भरोसा उठ चुका है। नेट परीक्षा रद्द किए जाने के एक दिन बाद शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अनियमितताओं की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए दोषियों को दंडित करने की बात कही है और जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति भी बनाने की घोषणा की है। यूजीसी नेट परीक्षा के प्रश्न पत्र डार्क नेट पर लीक हुए थे, जिसके बाद मंत्रालय ने परीक्षा रद्द करने का फैसला किया। जहां तक नीट परीक्षा का सवाल है शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि अनियमितताओं की कुछ घटनाओं के लिए उन लाखों छात्रों को नुक्सान नहीं होना चाहिए जिन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर यह परीक्षा पास की है। अब पेपर लीक कांड की जांच होगी। जांच रिपोर्ट मंत्रालय को दी जाएगी। फिर किसी न किसी को बलि का बकरा बनाया जाएगा। इसमें कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
नीट परीक्षा रद्द करने या नहीं करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद ही आएगा। परीक्षा की शुचिता बनाए रखने के लिए निष्पक्ष जांच जरूरी है। नीति निर्माताओं को यह सोचना होगा कि देश की प्रतिभाओं को सहेज कर रखा जाए। इन्हीं अव्यवस्थाओं के चलते हर साल लाखों छात्र पढ़ाई के लिए विदेशों में जाते हैं और वहीं जाकर बस जाते हैं। भारत से प्रतिभाओं का पलायन लगातार हो रहा है, जो किसी भी तरह देश के हित में नहीं है। शिक्षा मंत्रालय को इस बात का अहसास होना चाहिए कि परीक्षा रद्द होने पर छात्रों की हालत क्या होती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे देश में छात्रों काे मनोवैज्ञानिक रूप से कोई समझने वाला नहीं है। अमीर परिवारों के बच्चे तो महंगे कोचिंग सैंटरों में पढ़ लेते हैं। उन्हें जीवन की हर सुख-सुविधाएं उपलब्ध होती हैं लेकिन उन परिवारों के बच्चों की क्या हालत होगी जो अपनी मेहनत की कमाई से सपने पूरे करने के लिए अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाते हैं। जिन परिवारों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है उनकी हालत क्या होती है, इसे कोई समझ नहीं रहा। किसी भी छात्र के लिए परीक्षा की दोबारा तैयारी करना मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत मुश्किल होता है। आईआईटी या नीट परीक्षा क्वालीफाई न कर पाने पर अनेक छात्र अपनी जिन्दगी को बेकार मान लेते हैं और फिर उनकी जिन्दगी में भटकाव आ जाता है। कुछ तो आत्महत्या तक करने की हद तक पहुंच जाते हैं।
देश के विभिन्न राज्य नीट और नेट परीक्षाओं का आयोजन करने के लिए एक ही संस्था को जिम्मेदारी दिए जाने का विरोध करते रहे हैं। कोचिंग सैंटरों के माफिया के खेल और अंग्रेजी के वर्चस्व को लेकर भी आरोप लगाए जाते रहे हैं। दक्षिण भारतीय राज्य आरोप लगाते रहे हैं कि इस परीक्षा में अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों को नुक्सान उठाना पड़ रहा है। तमिलनाडु सरकार पहले भी आरोप लगाती रही है कि मैडिकल कॉलेजों में तमिल भाषी छात्रों को कम जगह मिल रही है। इन परीक्षाओं में हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों के साथ अन्याय होने की खबरें पहले भी आती रही हैं लेकिन इन पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। मैडिकल परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को दूर कर एनटीए की स्थापना की गई थी लेकिन यह संस्था भी माफिया का शिकार हो गई। हजारों छात्र दोबारा परीक्षा आयोजित करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दर्ज की जा चुकी हैं। पेपर लीक मामले के तार कई माफिया गिरोहों से जुड़ रहे हैं। राजनीतिक दल इस सारे मामले को सियासी बनाने पर तुले हुए हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि उठे सवालों का हल कौन तलाशेगा। इनमें अहम प्रश्नचिह्न था कई विद्यार्थियों का अस्वाभाविक रूप से पूर्णांक हासिल करना। इनमें कई हरियाणा के एक ही सेंटर से परीक्षा देने वाले थे। इसके अलावा यह भी सामने आया कि प्रश्न पत्र की दिक्कतों की वजह से कुछ बच्चों को 'ग्रेस मार्क्स' यानी कृपांक दिए गए। इससे पारदर्शिता को लेकर सवाल उठे। बिहार और गोधरा में पर्चा लीक होने की खबरें भी आईं। उसके बाद केंद्र सरकार ने कृपांक रद्द कर दिए और इस माह के अंत में उन बच्चों की पुनः परीक्षा कराने को कहा है। शिक्षण में प्रवेश स्तर के रोजगार और पीएचडी में दाखिले के लिए यूजीसी-नेट की ताजा परीक्षा को शिक्षा मंत्रालय ने उस समय रद्द कर दिया जब गृह मंत्रालय की ओर से खबर आई कि इस परीक्षा में भी गड़बड़ी हुई है। दिलचस्प है कि पेपर लीक होने की दोनों घटनाएं उस समय हुई हैं जब बमुश्किल कुछ माह पहले संसद ने इस देशव्यापी समस्या से निपटने के लिए कानून पारित किया। एनटीए की कमियां इस समस्या का एक पहलू है। परंतु मौजूदा विवाद बड़े सवालों की ओर भी संकेत करता है जो शिक्षा व्यवस्था के ढांचे से संबद्ध है। उनमें से ताजा सवाल यह है कि क्या देशव्यापी स्तर पर फैली परीक्षाओं का केंद्रीकरण व्यावहारिक विकल्प है? फिलहाल लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर है। देखना यह है कि सरकार इस मामले से कैसे निपटती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com