राहुल, प्रियंका और कमलनाथ

राहुल, प्रियंका और कमलनाथ

हरियाणा चुनावों के नतीजे अपेक्षा के विरुद्ध आने के बाद देश की प्रमुख पार्टी कांग्रेस ने आत्ममंथन शुरू कर दिया
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हरियाणा चुनावों के नतीजे अपेक्षा के विरुद्ध आने के बाद देश की प्रमुख पार्टी कांग्रेस ने आत्ममंथन शुरू कर दिया है जिसकी कमान श्री राहुल गांधी के हाथ में समझी जा रही है। राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं अतः संसदीय लोकतन्त्र में उनका धर्म बनता है कि वह केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की नीतियों की तार्किक रूप से आलोचना करें और इसकी सरकार के काम-काज का 24 घंटे मूल्यांकन करें। संसदीय प्रणाली के लोकतन्त्र में विपक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि संसद या चुने गये सदनों में विपक्ष का कार्य सदैव सरकार की गलतियों की ओर लोगों का ध्यान खींचना होता है और सरकार का विरोध करना होता तथा खामियों को उजागर करना होता है और मौका मिलते ही सरकार की गद्दी संकट में डालना होता है। (एक्सपोज इट, अपोज इट एंड इफ पासिबिल डिपोज इट) मगर यह काम विपक्ष आम जनता का विश्वास जीत कर ही करता है। यही वजह है कि संसद देश की सड़कों पर चल रहे वातावरण का ‘अक्स’ कहलाती है क्योंकि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही संसद या अन्य किसी चुने हुए सदन में बैठते हैं।

सदन में विपक्ष तभी कारगर होता है जब देश की आम जनता की उसके साथ सहानुभूति होती है। मगर हरियाणा के चुनाव परिणामों से यह साबित होता है कि कांग्रेस पार्टी ने आम जनता की संवेदनाओं को छूने में गलती कर दी है और इसके नेता आपस में ही एक-दूसरे का हिसाब-किताब करने में लगे रहे जिसकी वजह से हरियाणा में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ दल बनते-बनते रह गई। कांग्रेस पार्टी देश की ऐसी सबसे पुरानी पार्टी है जिसने महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई और इसके बाद भारत के विकास की नींव डाली। अतः राहुल गांधी यदि अपनी पार्टी के पुनरुत्थान के लिए इसकी जड़ें जमीन पर आम लोगों के बीच पुख्ता कर रहे हैं तो उन्हें बेहिचक कांग्रेस पार्टी का महानायक समझा जायेगा। मगर उनके इस कार्य में उनकी बहन श्रीमती प्रियंका गांधी जिस तरह से मदद कर रही हैं और लोक कल्याणकारी राज के मुद्दों की तरफ लोगों का ध्यान खींच रही हैं वह भी कांग्रेस की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। राहुल गांधी कांग्रेस को फिर से इसकी जमीनी जड़ों तक पहुंचाने हेतु भाजपा के मुकाबले के लिए वैचारिक विकल्प तैयार करके देश में एक सशक्त विकल्प तैयार करने में जुटे लगते हैं।

लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि जनता के सामने ठोस व कारगर विकल्पों की कमी नहीं रहती। मगर कांग्रेस को ‘लुटे हुए नवाब’ की तरह देखने वालों की भारत में कमी नहीं है। राहुल गांधी इस अवधारणा को गलत साबित करने की मुहीम पर पिछले कई वर्षों से निकले हुए हैं। उनके हर वक्तव्य को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। प्रियंका गांधी इस मुहिम में उनके साथ लगातार कदमताल कर रही हैं और लोगों को समझा रही हैं कि वे जागरूक होकर अपने एक वोट की कीमत को जानें और स्वतन्त्र भारत के संविधान की उन पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें जिसमें भारत की किसी भी सरकार के लिए लोक कल्याणकारी राज कायम करना एक शर्त की मानिन्द है। दूसरी तरफ राहुल गांधी भारत की सामाजिक संरचना में पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक समुदायों की आनुपातिक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं जिससे भारत की सरकार वास्तविक अर्थों में लोक कल्याणकारी राज कायम कर सके। इस समीकरण को अगर हम ठीक से समझें तो राहुल महात्मा गांधी से लेकर पं. जवाहर लाल नेहरू के आदर्शों को ही पुनर्जीवित करना चाहते हैं जिसके लिए कांग्रेस के संगठन का मजबूत होना जरूरी है।

इस क्रम में एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के कद्दावर नेता श्री कमलनाथ से उनके घर जाकर मुलाकात की और सन्देश दिया कि कांग्रेस पार्टी को पुरानी पीढ़ी के नेताओं की भी सख्त जरूरत है। इस मामले में राहुल गांधी अपने पिता स्व. राजीव गांधी का ही अनुसरण कर रहे हैं। यह सभी सुविज्ञ नागरिकों को याद है कि राजीव गांधी के प्रधानमन्त्रीत्व काल के दौरान ही श्री प्रणव मुखर्जी ने कांग्रेस को अलविदा कहकर अपनी अलग पार्टी बनाई थी। मगर 1991 के चुनावों से पूर्व श्री राजीव गांधी खुद चलकर प्रणव दा के घर गये और उनके कमरे का दरवाजा खोलते ही राजीव गांधी ने कहा कि ‘सर आई नीड यू’। मगर श्री कमलनाथ के साथ एेसा कोई किस्सा नहीं है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी पराजय की वजह से श्री कमलनाथ राजनीति से लगभग गायब ही हो गये थे।

लोकसभा चुनावों से पहले उनके भाजपा में जाने की अफवाह गलत साबित हुई । मगर हरियाणा चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र व झारखंड राज्यों में चुनाव की घोषणा की। ये चुनाव अब कांग्रेस पार्टी व इंडिया गठबन्धन के लिए नाक का सवाल बन गये हैं। अतः राहुल गांधी का खुद चलकर कमलनाथ के घर जाना बताता है कि कांग्रेस अब अपने पुराने नेताओं को भी हरकत में देखना चाहती है और दूसरी तरफ अपेक्षाकृत युवा पीढ़ी के नेताओं को भी सम्मान देना चाहती है। अतः इसने केरल की वायनाड सीट पर होने वाले उपचुनाव में प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी घोषित कर दी। यह सीट राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में जीती थी। मगर उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से भी वह विजयी घोषित हुए थे। अतः एक सीट उन्हें खाली ही करनी थी। वायनाड सीट से प्रियंका गांधी का चुनाव लड़ना ही बताता है कि कांग्रेस पार्टी आज भी उत्तर से लेकर दक्षिणी राज्यों तक में एक मजबूत राष्ट्रीय विकल्प के रूप में देखी जाती है। वास्तव में यही कांग्रेस की असली ताकत है जिसमें राहुल गांधी नई ऊर्जा भरना चाहते हैं। मगर यह काम आसान नहीं है क्योंकि कांग्रेस की आन्तरिक धड़ेबन्दी की वजह से ही इसे हरियाणा में मात मिली। राहुल गांधी की कोशिश बताती है कि वह महाराष्ट्र व झारखंड चुनाव से पहले अपना घर ठीक से सजाना-संवारना चाहते हैं जिससे आम मतदाता में यह सन्देश जाये कि कांग्रेस में शिखर स्तर पर एका है।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com

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