Anumula Revanth Reddy : वो हादसा जब CM बनने की ज़िद्द ठानी, छात्र नेता से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

Anumula Revanth Reddy : वो हादसा जब CM बनने की ज़िद्द ठानी, छात्र नेता से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
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तेलंगाना को पहली बार BRS जो पूर्व में TRS रह चुकी है , से अलग अपना पहला मुख्यमंत्री मंत्री मिला है। विधानसभा चुनाव से पहले TRS को छोड़ कर सभी दलों में एक प्रश्न समान्य था मुख्यमंत्री चेहरा कौन ? परिणाम के बाद ये सवाल ना सिर्फ पार्टी के लिए उत्सुकता का विषय बन गया था, बल्कि आम जनमानस में भी ये चर्चा बनी रही । अधिकतर लोग मान रहे थे कर्नाटक की तरह ही इस राज्य में भी सत्ता के शासन के लिए घमासान होगा। लेकिन सभी अटकलों को विराम देते हुए परिणाम के कुछ दिन बाद ही, दिल्ली से तेलंगाना कि कुर्सी की किस्मत का फैसला देते हुए पार्टी के आला अधिकारियों ने रेवंत रेड्डी के नाम पर सहमति जताई। हालंकि इस नाम से कोई अधिक हैरानी नहीं हुई क्योकि रेवंत रेड्डी का नाम चर्चाओं में शुरू से ही था। लेकिन तेलंगाना में कैसे KCR के बाद अचानक ये नाम इतना बड़ा हो गया की इस नाम के आगे मुख्यमंत्री लग गया। आज हम आपको एक कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री तक सफर बताते है।

छात्र नेता से विधायक तक

रेवंत रेड्डी का जन्म 1969 में हुआ उन्होंने एवी कॉलेज से स्नातक की पढाई की । छात्र नेता के रूप में इन्होने अपनी राजनीतिक जीवन शुरू किया। छात्र नेता रहते हुए एबीवीपी से अपनी राजनीती की भूमि तैयार करना शुरू कर दिया। बढ़ते समय के साथ साल 2006 में उन्होंने निर्दलीय उमीदवार के रूप में मध्य मंडल ZPTC चुनाव लड़ा और उसमे विजय प्राप्त कर राजनीति जीवन में मजबूत नींव रखी। साल 2007 में निकाय चुनाव में महबूब नागर से फिर एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप चुनाव लड़ा और जीते। क्षेत्रीय राजनीति में बढ़ते प्रभाव के चलते TDP प्रमुख चंद्रबाबू नायडू इन से प्रभावित हुए और इन्हे अपने पास बुला अपने साथ जोड़ लिया। अब वो समय  आया जिसका सभी राजनीतिक लोगो को इंतजार रहता है। साल 2009 में टीडीपी की ओर से कोंडगल से विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने। प्रभावशाली छवि और कुशल नेतृत्व क्षमता से वह चंद्रबाबू के बेहद नजदीकी बन गए। साल 2014 में रेवंत फिर से जीते। यहीं नहीं उन्होंने टीडीपी में जमीनी नेता से लेकर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई।

जेल ,जमानत और गैरत

कहते है अच्छे समय के साथ बुरा वक्त ठीक उसी के पीछे आता है। लेकिन बुरा वक्त अपने और गैरो की पहचान करा जाता है। साल 2015 में एमएलसी चुनाव के वक्त रेवंत की गिफ्तारी हुई। जिसके पीछे की वजह करेंसी नोटों के इस्तेमाल करना था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी की इन सबके पीछे केसीआर और उनके साथियों का हाथ है। वो गिरफ्तारी रेवंत के लिए सीएम पद की जिद्द हो गई। जिसमे एक जिद्द और शामिल थी। KCR को मुख्यमंत्री पद से हटाना। अपनी बेटी की शादी में मेहमान बनकर आना – जाना बेहद आहात देना वाला पल होता है। लेकिन रेवंत यहां भी निराश नहीं हुए और उन्होंने लक्ष्य को साधते हुए आगे की रणनीति पर कार्य किया। इस घटाना के बाद रेवंत के तेवर तेज हो गए।

चंद्र बाबू से हुए अलग

गिरफ्तारी , जेल और जमानत इन सब के बाद रेवंत की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ । तेज – तर्रार और आक्रमक रुख रखने वाले नेताओ में से एक नाम रेड्डी का भी आता है। जमानत पर रिहा होने के बाद उन्होंने अपने शब्दों और आलोचनाओं की धार और तेज कर दी। हर मंच से वो केसीआर और उनके परिवार के लिए तीखे शब्दों के तीर छोड़ने लगे। उन्होंने खुद की छवि को अधिक मजबूत करने के लिए सोशल मीडिया आर्मी बनाई जिसमे वो सफल भी रहे। वही दूसरी ओर तेलंगाना में टीडीपी की स्थिति ख़राब होने लगी और उसके विधायक एक के बाद एक  पार्टी का दामन छोड़ते चले गए। ऐसे में रेवंत पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया। चंद्रबाबू भी तेलगांना में ज्यादा रूचि नहीं ले रहे थे। इन सबके बीच नई राजनीतिक दल बनाने की चर्चा भी जोर पकड़ने लगी। कांग्रेस के नेताओं ने रेवंत से संपर्क साधा जो चंद्रबाबू नायडू को पसंद नहीं आया जिसके चलते उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया।

रेवंत का हाथ का कांग्रेस के साथ

जब एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा दरवाजा खुलता है। इधर चंद्रबाबू ने उन्हे पार्टी से निकला तो कांग्रेस ने हाथो – हाथ उनके साथ दोस्ती पक्की कर ली। 30 अक्टूबर 2017 को राहुल गांधी की मौजूदगी में रेवंत ने कांग्रेस की सदस्य्ता ग्रहण की। ये कदम उनके लिए भाग्यशाली सिद्ध हुआ। अपने कुशल भाषण और बात करने की शैली से उन्होंने सत्ता रूढ़ बीआरएस नेताओं , मुख्यतः केसीआर पर कड़ा प्रहार किया और तेलंगाना में अपने लिए एक खसा माहौल तैयार कर लिया। पार्टी से जुड़े एक साल के अंतराल में ही रेवंत सुर्खियों में आने लगे। साल 2018  में पार्टी अध्यक्ष पद की दौड़ में एक ओर जहा रेवंत रेड्डी थे तो वही दूसरी और वरिष्ठ नेता उत्तम रेड्डी थे। लेकिन पार्टी ने उत्तम कुमार को जिम्मेदारी सौंपी।

फिर से संघर्ष शुरू

2018 के चुनाव में कांग्रेस को हार का समाना करना पड़ा। वही रेवंत रेड्डी को भी कोडंगल से हार के रूप में झटका लगा। जिसके बाद उनको आलोचको ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। 2019 में मल्काजीगिरी से लोकसभा चुनाव जीत कर खुद को सक्रिय राजनीति में स्थापित किया। 2021 में पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी।

रेवंत के विरुद्ध 200 मामले दर्ज

अपने आक्रमक रुख को बरकार रखते हुए वो सरकार के खिलाफ लगातार बोलते रहे और विरोध प्रदर्शन में कोई कमी नहीं छोड़ी जिस कारण उन पर 200 के आस – पास मामले दर्ज किए गए। रेवंत ने इन्हे खुद को मिले पदक बताया। वह यह मजबूत तर्क देने में सफल रहे कि रेवंत रेड्डी एकमात्र मजबूत नेता हैं जो तेलंगाना में केसीआर को हरा सकते हैं।

अपने वयक्तिगत जीवन पर कम ध्यान

रेवंत की शादी पूर्व केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी की भतीजी से हुआ। शादी से पहले दोनों को एक – दूसरे से प्यार हुआ और 1992 में इनका विवाह हुआ। रेवंत ने कई बार कहा है कि वो अपना पूरा ध्यान पार्टी और राज्यों के मामलों पर रखते है।

शपथ से पहले बोले रेवंत

रेवंत रेड्डी ने कहा कि शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले हमने प्रगति भवन की लोहे की बाड़ तोड़ दी। राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर मैं कहना चाहता हूं कि लोग इस सरकार का हिस्सा हैं। हम कल सुबह 10 बजे ज्योति राव फुले प्रजा भवन में एक सार्वजनिक बैठक करेंगे। उन्होंने कहा कि हम शासक नहीं, बल्कि सेवक हैं। हम इस क्षेत्र के विकास के लिए आपके द्वारा दिए गए अवसर का इस्तेमाल करेंगे।

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