अयोध्या, भगवान श्रीराम मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विशेष

अयोध्या, भगवान श्रीराम मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विशेष
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श्रीराम अर्थातः तैर्युक्तः श्रूयतां नरः

करीब 500 वर्षों के लम्बे अंतराल के उपरान्त 22 जनवरी 2024 को, दोपहर 12 बजकर 29 मिनट से श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। यह सभी भारतीयों के लिए विशेष गौरव का दिन है। श्रीराम भारत की आत्मा में बसे हैं। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भले ही रामायण को कहानी करार दिया हो, लेकिन राम कालजयी हैं। राम की बात केवल आत्मा और आस्था से होती है। वे सभी तरह की टिप्पणियों से परे हैं। वे भारत के जन-जन में बसे हैं। वाणी में राम हैं, अभिवादन में राम हैं तो फिर राम किस प्रकार से हमसे अलग हैं। जब वर-वधू दोनों सुन्दर हो तो उनको रामसीता की प्रतिमूर्ति कहा जाता है। राम तो राम हैं। उनकी छवि हजारों वर्षों से वैसी ही है। असंख्य राजा-महाराजा या सम्राटों ने अपनी परम्पराओं को पोषित किया लेकिन रामनाम अक्षुण बना रहा। लेशमात्र भी अंतर नहीं आया। श्री हनुमान के कोमल प्रेममयी हृदय ने जो छवि गढी, वही आज भी है। उसकी कोमलता जरा भी कमतर नहीं हुई है।

रामनाम की महिमा अपार है। वे पुरुषों में उत्तम पुरुष हैं और उनका शासन आज भी रामराज्य के नाम से जाना जाता है। श्रेष्ठ गुणों से युक्त, पराक्रमी, कृतज्ञ, सत्यवादी और सब प्राणियों के हितैसी श्रीराम उस लोक में भी अनुकरणीय थे और आज भी हैं। वे नारायण नहीं थे लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम थे। जब महाराजा दशरथ ने उनको राजतिलक का शुभ समाचार दिया तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इसके तत्काल बाद जब छोटी माता कैकयी ने उनको चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा दी, तो भी वे ठीक वैसे ही बने रहे जैसे कि राजतिलक के शुभ समाचार को सुनने के समय थे। जैसे किसी भी सुख या दुःख का उनके लिए समान महत्त्व है। वनवास में भी उन्होेंने उसी प्रकार से कर्त्त्वयों का पालन किया जिस प्रकार कि वे राज भवन में करते थे।

श्रीराम का समय

श्रीराम के संबंध में यह भी प्रचलित है कि श्रीराम के जन्म से लगभग 14000 वर्षों पूर्व ही रामायण की रचना हो चुकी थी। यद्यपि यह अजीब लग सकता है लेकिन मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि पश्चिम में जब लोग जानवरों की खालें धारण किया करते थे तब भारत में नगर नियोजन जैसी उच्च तकनीक विकसित हो चुकी थी। स्पष्ट है कि दूसरे क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की उन्नति हुई होगी। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली नर्तकी की प्रतिमा के अतुल्य सौन्दर्य से पुरातत्त्व विशेषज्ञ मार्टिमर विलर इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने लिखा है कि- ''इस संसार में शायद ही इसके मुकाबले कोई वस्तु हो।''

अमेरिका की अन्तरिक्ष एजेन्सी नासा ने एक चित्र जारी करके श्रीलंका और भारत के मध्य एक सेतु (ब्रिज) जैसी संरचना का उल्लेख किया है। इसे आदम पुल कहा जाता है। हालांकि नासा ने इसको लाखों वर्ष प्राचीन माना है लेकिन यह गणना पत्थरों की गणना है न कि सेतु के निर्माण की। इसलिए कोई कारण नहीं कि यह सेतु रामायण में वर्णित रामसेतु ही है, जो कि लगभग छः से सात हजार वर्ष प्राचीन ठहराया जा सकता है। कमोबेश यही श्रीराम का औसत काल है। श्रीराम को पूरी वाल्मिकीय रामायण में पुरुष लिखा है भगवान नहीं, तथापि श्रीराम की अक्षुण कीर्ति से यह निश्चित है कि वे भगवान विष्णु के अवतारी थे। उनका व्यवहार सर्वदा एक साधारण पुरुष की ही तरह था। वह इसलिए कि लोगों के व्यवहार में भी मर्यादा हो-यथा राजा तथा प्रजा।

रामनवमी: श्रीराम जन्म

श्रीराम का जन्म चैत्र मास में शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को गुरुवार के दिन माना जाता है। इस दिन पुष्य नक्षत्र था और भगवान श्रीराम का जन्म सुप्रसिद्ध कर्क लग्न में हुआ था। उपरोक्त पौराणिक मत से श्रीराम का जन्मांग चक्र निम्न प्रकार से बनता है। भगवान श्रीराम के जन्मांग चक्र में उच्चस्थ बृहस्पति और स्वराशिस्थ चन्द्रमा पड़े हैं। चन्द्रमा पक्षबली भी हैं और चन्द्र-बृहस्पति से शक्तिशाली गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। इस योग के कारण ही श्रीराम को अमर लोकप्रियता, स्नेहीजनों का वात्सल्य और प्रजा का असीम प्रेम मिला है। मंगल-शनि की संयुक्त पाप दृष्टि के कारण भगवान श्रीराम की देह श्यामवर्ण थी। लेकिन बृहस्पति-चन्द्रमा और लग्नेश की जलीय राशि कर्क ने उनको अनुपम सौन्दर्य, तेज और रूपलावण्य से भरपूर काया प्रदान की थी । आधुनिक संदर्भ में बात करें तो दक्षिण भारतीय ज्योतिषी श्री एन. नरसिंह राव के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 11 फरवरी 4433 ईसा पूर्व में हुआ था। इनका जन्म अयोध्या में प्रातः 10 बजकर 50 मिनिट पर माना गया है।

उपरोक्त जन्मपत्रिका के अनुसार श्रीराम को मांगलिक दिखाया गया है। जो कि उनके कष्टपूर्ण वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। देवी सीता से उनका एक वर्ष का अलगाव भी इसी सप्तमस्थ मंगल के कारण ही हुआ होगा। प्रो. श्रीनिवास राघवन के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 4439 ईसा पूर्व हुआ था। दोनों मतों में करीब पांच वर्ष का अंतर दिखाई देता है। काल की पेचिदगियों के परिप्रेक्ष्य में यह क्षम्य है। एक तीसरे मत से श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ माना जाता है। श्रीराम का यह जन्म काल श्री हनुमान के जन्म से कुछ सामंजस्य रखता है। आधुनिक मतों के अनुसार श्री हनुमान का जन्म 5139 ईसा पूर्व हुआ था।

Astrologer Satyanarayan Jangid
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