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पाकिस्तान और ईरान के बीच टकराव की संक्षिप्त कहानी यह है कि घोषित रूप से ईरान ने पाकिस्तान स्थित बलूची आतंकवादी ग्रुप जैश अल अदल के दो ठिकानों को नष्ट करने के लिए हमले किए, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने ईरान के अंदर अलगाववादी आतंकवादियों पर हमले कर दिए। एक दूसरे पर हमले के साथ तेहरान और इस्लामाबाद ने अपने-अपने राजदूत वापस बुला लिए। दोनों देशों की आपसी सीमा 900 किमी लंबी है और दोनों तरफ अब भी तनाव है। लेकिन दोनों के बीच कोई पहली बार झड़प नहीं हुई है।
Highlights
एक साल के अंदर ही दोनों तरफ से कई आतंकवादी हमले हुए हैं। दिसंबर 2023 में ही जैश अल-अदल ने दक्षिणपूर्वी सीमा प्रांत स्थित ईरानी शहर रस्क में एक पुलिस स्टेशन पर हमला कर 11 सुरक्षा कर्मियों को मार डाला था। जून 2023 में पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा आईएसपीआर ने यह आरोप लगाया था कि बलूचों ने धावा बोलकर दो पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर दी। एक साल के अंदर ही दोनों तरफ से कई आतंकवादी हमले हुए हैं। दिसंबर 2023 में ही जैश अल-अदल ने दक्षिणपूर्वी सीमा प्रांत स्थित ईरानी शहर रस्क में एक पुलिस स्टेशन पर हमला कर 11 सुरक्षा कर्मियों को मार डाला था। जून 2023 में पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा आईएसपीआर ने यह आरोप लगाया था कि बलूचों ने धावा बोलकर दो पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर दी।
अप्रैल 2023 में भी आईएसपीआर ने यही कहा था कि ईरान के हमलावरों ने केच जिले के जलगाई सेक्टर में गश्ती कर रहे चार सैनिकों की हत्या कर दी। सितंबर 2021 में भी पाकिस्तान ने दावा किया था कि ईरान की ओर से सीमा पार से की गई गोलीबारी में एक सैनिक की मौत हो गई। ईरान और पाकिस्तान के बीच तनाव और सहयोग दोनों का इतिहास रहा है। दोनों ओर से दहशतगर्दी के लिए बलूच विद्रोहियों को ही दोषी बताया जा रहा है। ईरान विरोधी बलूच आतंकवादी समूह जैश अल-अदल पर पकिस्तान में पनाह लेने का आरोप लग रहा है तो सरमाचर बलूच ईरान की भूमि से पाकिस्तान के खिलाफ हमले के लिए जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं।
हमले दोनों तरफ से हो रहे हैं, इसलिए दोनों देश अब एक दूसरे पर हमलावर होने की भूमिका में है। कभी ईरान और पाकिस्तान मिलकर भारत और अमेरिका के खिलाफ कूट रचनाएं रचते रहे हैं। ईरान ने भारत के खिलाफ 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की खुलकर सहायता की थी। अयातुल्ला खुमैनी ने ईरान में अति-रूढ़िवादी शिया शासन को स्थापित किया तो उसी समय पाकिस्तान सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक ने सुन्नी-बहुसंख्यक नजरिए के साथ पाकिस्तान का इस्लामीकरण किया। 1979 के बाद पाकिस्तान और ईरान के बीच अविश्वास की एक दीवार खड़ी हुई, जिसका मुख्य कारण अमेरिका रहा। इस्लामाबाद अमेरिका का सहयोगी बन गया और तेहरान अमेरिका का विरोधी। 9/11 के बाद यह खाई और चौड़ी हो गई जब पाकिस्तान ने अपने यहाँ अमेरिकी फौज को मिलिट्री बेस प्रदान कर आतंकवाद के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलवा दिए। इसके अलावा अरब देशों के साथ पाकिस्तान के बढ़ते रणनीतिक संबंधों ने भी ईरान को पाकिस्तान से दूरी बढ़ाने में मदद की। फिर अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद तो पाकिस्तान और ईरान एक दूसरे के सामने खड़े हो गए।
1998 में मजार-ए-शरीफ में कट्टरपंथी सुन्नी मिलिशिया द्वारा शिया हजारा और आठ ईरानी राजनयिकों की हत्या के बाद दोनों देश मे एक बार युद्ध की स्थिति बन गई थी। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की जब-जब सरकार रही, ईरान के साथ दोस्ती आगे बढ़ाने का प्रयास हुआ, लेकिन नवाज शरीफ की पार्टी के दौर में अरब देशों के साथ संबंध सुधारने में ईरान को नजरअंदाज किया गया। लगभग 900 किलोमीटर लंबी ईरान-पाकिस्तान सीमा, जिसे गोल्डस्मिथ लाइन भी कहा जाता है, पर दोनों तरफ मुख्य रूप से बलूच रहते हैं। उनकी संख्या लगभग 90 लाख है। एक तरफ पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान है तो दूसरी तरफ ईरानी प्रांत सिस्तान। बलूच आज भी कबीलाई जिंदगी बसर कर रहे हैं। पाकिस्तान में पंजाबी मुसलमानों के मुकाबले वे जातीय अल्पसंख्यक समूह हैं।
ईरान में जो बलूच हैं वे वहाँ भी अल्पसंख्यक हैं और उनके सुन्नी होने के कारण ईरान के शासकों द्वारा उन्हें खूब सताया जाता है। ईरान में बलूच आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे है। बलूच क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन बलूच गरीब है। पाकिस्तान और चीन ने इस क्षेत्र में बेल्ट एंड रोड जैसी बड़ी परियोजना शुरू की है, पर इससे बलूचों को कोई फायदा नहीं हुआ है। लगातार हाशिए पर रखे जाने के कारण इस क्षेत्र में विद्रोह की आग सुलग रही है और "ग्रेटर बलूचिस्तान" राष्ट्र की मांग की जाने लगी है।