Child Marriage: पूरी दुनिया में एक नहीं बल्कि कई प्रथाओं के नाम पर ऐसी कुरीतियां हैं जिनसे लोगों का आज तक शोषण होता आया है। पुराने समय से फैली ये कुरीतियां विशेष रूप से महिलाओं के जीवन की सबसे बड़ी समस्या बन गईं हैं। सभी प्रथाओं में से फैली एक प्रथा बाल विवाह है। बाल विवाह एक ऐसी काली प्रथा है जो छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गिरफ्त का शिकार बनाती है। आज भी कुछ जगहों पर छोटी-छोटी बच्चियों का विवाह उनके जन्म लेने पर ही कर दिया जाता है और उनके बचपन को उनसे छीन लिया जाता है। भारत को आज के समय में डेवलपिंग कंट्री के तौर पर देखा जाता है साथ ही यह अर्थव्यस्था में भी 5वें नंबर पर है ऐसा नहीं है की बाल-विवाह की शिकार हर लड़की हो रही है या यह खुले तौर पर यह किया जाता है लेकिन आज भी यह भारत में मौजूद है। बाल विवाह के ऊपर कानून बनने के बाद भी यह पूरी तरह रुका नहीं है इसलिए इस पर लगाम लगाना बहुत जरुरी है। बाल विवाह बहुत पुराने समय से चली आ रही एक कुप्रथा है जो आज के समय में भी मौजूद है लेकिन समय के बदलने के साथ ही अब इसका अंत होना चाहिए। यदि आपने बाल विवाह प्रथा के बारे में सुना है लेकिन आप इसके बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आगे पढ़ना जारी रखें। बाल विवाह क्या है, इसका कारण क्या है और इस प्रथा के कारण महिलाओं पर क्या गलत प्रभाव पड़ते हैं आइए जानें।
यदि भारत के कानून अनुसार बात करें तो बाल विवाह वह होता है जब किसी का नाबालिग उम्र (18 से कम उम्र) में विवाह कर दिया जाता है। यदि उम्र 18 से कम है तो ऐसे विवाह को कानून ने अपराध माना हुआ है। भारत समेत दुनिया के प्रत्येक देश में किसी भी बच्चे के बालिग होने की एक आयु सीमा निर्धारित होती है यदि इस उम्र से पहले किसी भी बच्चे का विवाह किया जाता है तो वह बाल विवाह माना जाता है जो कानून की नज़र में एक बड़ा अपराध होता है इसको लेकर कई तरह के कानून बनाएं गए हैं जिससे बच्चों का जीवन बर्बाद होने से बचाया जा सके लेकिन आज भी यह प्रथा खत्म नहीं हुई है। बाल विवाह से बच्चों का बचपन उनसे छिन जाता है उनके ऊपर एक ऐसी रेस्पॉन्सिबिल्टी ड़ाल दी जाती है जिसके बारे में उन्हें ज़रा भी ज्ञान नहीं होता है, बच्चों को नहीं पता होता की आगे जाकर यह विवाह उनके जीवन को कैसे प्रभावित करेगा या आगे के जीवन में वे अपने साथी साथ रह पाएंगे या नहीं? वैसे तो बाल विवाह में लड़के और लड़की दोनों ही पीड़ा का सामना करना पड़ता है लेकिन कई मामलों पर गौर किया जाये तो लड़कियों पर यह प्रथा ज्यादा प्रभाव ड़ालती है क्योंकि कई केसेस में छोटी-छोटी लड़कियों का विवाह उनसे आधी उम्र या आधी उम्र से भी अधिक उम्र वाले लड़कों से करा दिया जाता है जिसके बाद उनका जीवन मानों नर्क हो जाता है है। उन्हें मानसिक और शारारिक उत्पीड़न सहने को मज़बूर होना पड़ता है साथ ही वह अपने लिए आवाज़ उठाने से भी डरती हैं, महिलाओं का आत्मबल खत्म हो जाता है और न ही वह अपने अधिकारों को जान पाती हैं। वे अपने उसी जीवन अपनी किस्मत मान बैठती हैं। कानून में 18 वर्ष लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़कों का विवाह एक गंभीर अपराध है, यदि बाल विवाह का कोई भी केस कानून की नज़रों में आता है तो कानून उसे अमान्य घोषित कर देगा और विवाह कराने वालों पर सख्त कार्यवाही का निर्देश देगा।
बाल विवाह होने का कोई एक कारण नहीं है बाल विवाह होने के समाज में कई कारण छिपे हैं आइए जानें
बढ़ती गरीबी बाल विवाह का एक बड़ा कारण होता है। बहुत से माँ-बाप अपनी बच्ची का बाल विवाह सिर्फ इसलिए कर देते हैं क्योंकि लड़का भले ही आधी उम्र का या उससे ज्यादा का हो वह पैसे में उनसे ज्यादा है और उसकी देहज को लेकर कोई मांग नहीं है फिर उन्हें लड़की की कम उम्र या उसके छोटी सी बच्ची होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। कई बार परिवार के लोग इसलिए भी बाल-विवाह कराते हैं क्योंकि वह अपने एक बच्चे की शादी करते हैं तो पैसा बचाने के लिए दूसरे का भी उसके ही साथ करने लगते हैं वहां भी उन्हें बच्ची की कितनी उम्र है उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इससे वह खर्च कम करते हैं।
शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी होती है उसके बिना व्यक्ति के अंदर कॉन्फिडेंस की कमी होने लगती है साथ ही व्यक्ति के सोचने और समझने पर भी शिक्षा प्रभाव ड़ालती है एक शिक्षित व्यक्ति कोई भी फैसला लेने से पहले हमेशा यह देखता है कि उसके बच्चों के लिए क्या सही है और क्या गलत? यदि समाज में साक्षरता दर बढ़ जाए तो बाल विवाह को एक हद तक रोका जा सकता है। शिक्षा लोगों को यह सीख देगी की किस उम्र में विवाह किया जाना चाहिए। लोगों में विवाह के प्रति जल्दी होती है ताकि वे अपना गृहस्थ जीवन जी सकें लेकिन विवाह के बाद जीवन में आने वाली चुनौतियों के बारे में वे नहीं सोचते।
बहुत से लोग अपने बच्चों का विवाह बचपन में ही बस इसलिए तय कर देते हैं ताकि उनकी पुरानी रिश्तेदारी बनी रहे। ये लोग मानते हैं की जब एक लड़का-लड़की की शादी होती है तो उस दौरान न सिर्फ लड़का- लड़की एक पवित्र बंधन में बंधते हैं बल्कि उससे दो परिवारों का रिश्ता जुड़ता है, जिससे परिवारों के बीच पहले से मौजूद रिश्ता और मज़बूत हो जाता है, इसी बारे में सोच कर ये लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों के बारे में सोचे बिना ही कम उम्र में उनका रिश्ता तय करदेते हैं और बालिग होने से पहले ही उनका विवाह कर देते हैं। कई बार बाल विवाह होने का एक कारण घर के बड़े बुजुर्ग भी होते हैं उनके अनुसार वे अपनी मृत्यु से पहले अपने घर के बच्चों शादी देखने की इच्छा जताते हैं जिससे नाबालिग बच्चों का विवाह बचपन में ही कर दिया जाता है।
पुराने जमाने में अक्सर बाल-विवाह होता था लेकिन आज के समय में बाल विवाह जैसी प्रथा का होना पूरी तरह गलत है। बहुत से लोग बाल विवाह सिर्फ इसलिए कराते हैं क्योंकि यह उनकी सालों से चली आ रही एक परंपरा है। पूरी तरह से गलत यह प्रथा आज भी देश के कई हिस्सों में मौजूद है। कई स्थानों पर तो ऐसी मान्यताएं हैं जिनके बारे में सुनकर आपको यकीन नहीं होगा दरअसल, ऐसा भी माना जाता है कि, लड़की की शादी उसके मासिक धर्म शुरू होने से पहले ही कर देनी चाहिए यदि ऐसा नहीं जाता है तो इससे उसके माँ-बाप को पाप का भागीदार बनना पड़ता है इसका कारण यह बताया गया है कि शादी एक पवित्र बंधन हैं लेकिन लड़कियां मासिक धर्म के बाद अशुद्ध हो जाती हैं। इस चीज को लेकर पेरेंट्स अपनी लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में ही कर देते हैं। इसके अलावा मासिक धर्म से पहले शादी करना कई जगह जरुरी माना जाता है क्योंकि एक विशेष समुदाय के लिए लड़कियां उस दौरान महिलाएं बन जाती हैं।
आज भी कई जगह ऐसी हैं जहां पेरेंट्स अपनी इज्जत को अपनी बेटियों से जोड़ते हैं और उनपर शादी जैसी बड़ी जिम्मेदारी कम उम्र में ही ड़ाल देते हैं। उनको यह ड़र रहता है कि, कहीं उनकी बेटी किसी गलत आदत में पड़कर उनकी समाज में इज्जत खत्म न कर दे इसको सोचकर वे अपनी बच्चियों का विवाह कराते हैं जिससे लड़कियां जीवन भर संघर्ष करती हैं
बाल विवाह होने का सबसे बड़ा प्रभाव अधिकारों पर पड़ता है। लड़कियों का कम उम्र में विवाह होना उनसे उनके अधिकार छिन लेता है। कम उम्र में विवाह करके लड़कियों के सारे सपने खत्म हो जाते हैं वह चूल्हा-चौका में लग जाती हैं। दोनों बच्चों पर ही ऐसी जिम्मेदारियों का बोझ पड़ता है जो उनको तनाव देकर विकास को रोकता है।
कम उम्र में लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है बिना ये सोचे की इससे उनके शारारिक स्वास्थ्य पर कितना गलत प्रभाव पड़ेगा। जल्दी शादी करने से लड़कियां कई तरह की बिमारियों का शिकार हो सकती हैं। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनमें विवाह के बाद कम उम्र की लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं जिस दौरान उन्हें खुद को कैसे संभालना है इसकी जानकारी नहीं होती है जिससे ऐसा भी होता है कि बच्चा स्वस्थ पैदा नहीं होता या बच्चे के जन्म के दौरान माँ या बच्चे में से कोई एक मृत्यु का शिकार हो जाता है। बाल विवाह होने से शिशु मृत्यु दर में तेजी से गिरावट आयी है।
कम उम्र में विवाह होना कई बार कपल की ज़िन्दगी भर की परेशानी बन जाता है जिससे बड़े होने के बाद कपल्स डाइवोर्स लेने के लिए कदम बढ़ा देते हैं। कुछ मामलों में तलाक का एक कारण शिक्षा भी रहा है। कम उम्र की लड़कियों से विवाह करने के बाद लड़कों को माता-पिता पढ़ाई के लिए बाहर भेज देते हैं और लड़कियों से घर का चूल्हा-चौका कराने लगते हैं जिससे लड़के पढ़-लिख जाते हैं और लड़कियां अशिक्षित रह जाती हैं जिससे लड़कों को अशिक्षित लड़की का साथ पसंद नहीं आता है और वह उससे तलाक ले सकता है। कोर्ट में कई मामले ऐसे सामने आए हैं जिसमें लड़के ने लड़की को अपनी पसंद की न बताते हुए और बचपन की भूल बताते हुए तलाक की अर्जी डाली है।
बाल विवाह को लेकर सबसे पहले सन 1929 में कानून बना। इस कानून को सन 1930 में 1 अप्रैल को भारत के सभी राज्यों में लागु किया गया। उस दौरान बाल विवाह के मामलों में बहुत तेजी देखी जाती थी जिसको लेकर सरकार ने यह कानून बनाया। इस कानून में कुछ खास सजा नहीं दी गई थी यह बाल विवाह के परिणामों को देख कर बनाया गया था।
इसके अंतर्गत, विवाह करने के लिए लड़के की उम्र 21 और लड़की की उम्र 18 निर्धारित की गई थी। यदि इस उम्र से पहले विवाह किया जायेगा तो यह अपराध की श्रेणी में दर्ज किया जायेगा। यदि लड़का 21 साल का लड़का 18 साल से छोटी उम्र की लड़की से शादी करेगा तो उसे 15 दिनों की सज़ा व 1000 रुपये का फाइन देना होगा। इसके अलावा इस कानून में एक यह प्रवधान था कि, यदि 21 साल से ज्यादा उम्र का पुरुष नाबालिग लड़की के साथ विवाह करेगा तो पुरुष को, जो विवाह कराएगा उसे और दोनों पक्षों के परिवार वालों को 3 महीने की सजा मिलेगी और जुर्माने के लिए तय की गई राशि दी जाएगी
इस अधिनियम में साल 2006 में बदलाव किया गया। भारत सरकार ने साल 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम बनाया गया था जिसे साल 2007 में 1 नवम्बर को देश भर में लागू किया। भारत सरकार ने इस कानून को बनाने का उदेश्य देश से बाल विवाह प्रथा को खत्म करना रखा था। इसमें लड़के और लड़की की उम्र पहले वाली ही रखी गयी और कुछ महत्वपूर्ण बदलाव करके इसको सख्त बनाया गया। इसके अंतर्गत इसमें सबसे पहला बदलाव यह किया कि, यदि किसी लड़के-लड़की का बाल विवाह हुआ है और वे उसे तोडना चाहते हैं तो वह बालिग होने के 2 साल के भीतर वह अपना विवाह तोड़ सकते हैं।
इसके साथ ही यदि विवाह टूटता है तो लड़के वालों को लड़की की तरफ से मिले सभी गिफ्ट्स वापस करने का प्रावधान भी बनाया गया है। इसके अलावा शादी टूटने के बाद लड़के पक्ष की यह जिम्मेदारी होती है कि जब तक लड़की कमाने नहीं लगती या उसका दूसरा विवाह नहीं हो जाता तब तक उसे रहने के लिए एक घर दें। नाबालिग लड़की से शादी करने पर अब 3 साल की सजा और भारी फाइन भरना होता है।