ईसा मसीह के मृत्यु का पड़ा था ‘सैंटा क्लॉज़’ पर गहरा प्रभाव, ईसाई धर्म अपनाने की भावुक कहानी

ईसा मसीह के मृत्यु का पड़ा था ‘सैंटा क्लॉज़’ पर गहरा प्रभाव, ईसाई धर्म अपनाने की भावुक कहानी
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christmas पूरी दुनियां में लगभग सभी देश क्रिसमस का त्योहार मना रहें है, और हैरत की बात ये है कि न केवल एक धर्म बल्की कई धर्मों के लोग इसे पूरी धूमधाम और उल्लास के साथ मनाते हैं। इस त्योहार का में इसे लेकर ज्यादा उत्साहित दिखाई पड़ते हैं, उन्हें आने वाली क्रिसमस के आखिरी रात यही उम्मिद रहती है कि न जाने इस रात सैंटा उन्हें कौन सा तौफा देने वाले हैं। तो इस क्रिसमस के मौके पर आज हम आपको बताने जा रहें हैं आखिर कौन थे सैंटा क्लॉज और ईसा मसीह से वह कैसे प्रभावित हुए थे।

सैंटा क्लॉज़ का जन्म ईसा मसीह के मृत्यु के 280 साल बाद हुआ था

क्रिसमस पर सैंटा क्लॉज़ क्यों आता है तो हम आपको बता दें कि सबसे पहले आपको जानना होगा कि सैंटा क्लॉज़ के द्वारा गिफ्ट देने की परंपरा कब शुरू हुई तो आपको बता दें कि सैंटा क्लॉज़ का जन्म ईसा मसीह के मृत्यु के 280 साल बाद हुआ था और बचपन में ही उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया बड़े होने के बाद उन्होंने ईसाई धर्म को स्वीकार किया और वह चर्च में पादरी बन गए इसके बाद वह गरीब बच्चों की सहायता किया करते थे सबसे महत्वपूर्ण बात है कि वह रात के समय चुपके से बच्चों के पास जाकर उपहार रहे थे और वहां से चले जाते थे |

क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ के द्वारा उपहार देने की परंपरा शुरू

christmas वह बिल्कुल नहीं चाहते कि कोई जाने और ना ही उन्हें दिखावा में पसंद था I इसी कारण लोगों ने ईसा मसीह के रूप मे देखा करते थे यहीं से क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ के द्वारा उपहार देने की परंपरा शुरू हुई अब हम आपको बता दें कि क्रिसमस पर लोगों को उपहार देने के लिए आता है और उनके जीवन में जो भी दु:ख दूर कर कर जीवन में खुशियां का संचार करता है I

क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ लोगों को क्या उपहार देता है?

christmas क्रिसमस के त्योहार पर सांता क्लॉस बच्चों को विशेष प्रकार का उपहार प्रदान करता है वह अपने झोली में कई प्रकार के उपहार लेकर आता है बच्चे उसका इंतजार विशेष तौर पर करते हैं ऐसा कहा जाता है कि क्रिसमस के त्योहार में क्लॉज़ लोगों के लिए खुशियां लेकर आता है और उनके दु:खों को दूर करता है I

सेंट निकोलस बने सैंटा क्लॉज

निकोलस गरीबों के प्रति अपने उदार उपहारों के लिए जाने जाते थे, विशेष रूप से एक धर्मपरायण ईसाई की तीन गरीब बेटियों को दहेज के रूप में भेंट करते थे ताकि उन्हें वेश्या न बनना पड़े। वह कम उम्र से ही बहुत धार्मिक थे और उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से ईसाई धर्म को समर्पित कर दिया। महाद्वीपीय यूरोप (अधिक सटीक रूप से नीदरलैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य और जर्मनी) में, उन्हें आमतौर पर विहित वस्त्र में दाढ़ी वाले बिशप के रूप में चित्रित किया जाता है।

प्रभु ईशु का हुआ था जन्म

पूरी दुनिया में हर जगह क्रिसमस का त्योहार 25 दिसंबर के दिन मनाया जाता है। यह पर्व ईसाई धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। माना जाता है कि इस दिन ईसाई धर्म के संस्थापक प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। इस खुशी में यह पर्व उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। मान्यता है कि प्रभु यीशु का जन्म बेथलेहम शहर में हुआ था।

कहां मनाया गया था पहला क्रिसमस डे

वैसे तो क्रिसमस को दुनिया भर में लोग मनाते हैं लेकिन माना जाता है कि सबसे पहला क्रिसमस का त्योहार रोम शहर में मनाया गया था। 25 दिसंबर को हर साल दुनिया भर के चर्चों में यीशु का जन्मदिन मनाया जाता है। ईसाई धर्म को मानने वाले लोग इस दिन चर्च में जाकर बाइबिल पढ़ते हैं और मोमबत्तियां जला कर यीशु का जन्मदिन प्रेम और सद्भावना के साथ मनाते हैं। इस दिन चर्च को सजाया जाता है और इसी के साथ क्रिसमस का पेड़ लगाना भी ईसाई धर्म में शुभ माना जाता है।

फादर क्रिसमस की शुरुआत

फादर क्रिसमस की शुरुआत 16वीं शताब्दी में इंग्लैंड में हेनरी अष्टम के शासनकाल के दौरान हुई थी, जब उन्हें फर से सजे हरे या लाल रंग के वस्त्र पहने एक बड़े आदमी के रूप में चित्रित किया गया था। उन्होंने क्रिसमस पर अच्छे उत्साह की भावना को दर्शाया , जिससे शांति, खुशी, अच्छा भोजन और शराब और मौज-मस्ती हुई।

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