E-commerce business : कैसे भारत में ऑनलाइन खरीददारी घर – घर पहुंची
आज की इस भाग – दौड़ भरी जिंदगी में अधिकतर लोगो के पास समय का अभाव है। अपने व्यस्त समय में परिवार के साथ भी लोग कम ही बैठ पाते है ऐसे में बाहर जा कर खरीदारी करना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है। सभी वर्ग के खरीदारी करने वालो की पहली पसंद अब ई कॉमर्स वेबसाइट हो गई है चाहे वह किसी भी उम्र से हो। इस खरीदारी में एक जगह पर कई सारे उत्पाद उचित दाम पर उपलब्ध हो जाते है। जिसमे कई प्रकार के विकल्प भी मौजूद होते है। जो एक उपभोक्ता को किसी दुकान या बाजार में एक जगह बैठे – बिठाए नहीं मिलेगा। लेकिन इन सब के बाद भी भारत के बाज़ार में ऑनलाइन करोबार को स्थापित करना बड़ी बात है। लोगों को अपने विश्वास में लाना और लगातार उस भरोसे को बनाए रखना इस पर्तिस्पर्धा के दौर में कोई आसन कार्य नहीं है। जहा बाजार और जानपहचान के दुकानदारों से सामान की खरीददारी होती थी वहा पर आज के दौर में ऑनलाइन ख़रीदारी घर – घर तक पहुंच गई। आज की इस रिपोर्ट में हम आपको बताएँगे कैसे E-commerce business ने भारत में अपनी पकड़ बनाई।
कैशलेस दुनिया का प्रारम्भ
आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है जिसे आगे की रूपरेखा नई सोच या विचार देते है। अंग्रेज अविष्कारक और कारोबारी माइकल एल्ड्रिच के दिमाग में कैशलेस दुनिया का विचार बहुत पहले से चल रहा था। इंटरनेट का आगमन हो चुका था और सुविधाओं के लिए उसका प्रयोग भी होने लगा था। साल 1979 वो वर्ष था जो कैशलेस दुनिया का प्रारम्भ था। उस समय ऑनलाइन खरीदारी का मतलब केवल धन के लेन – देन से था। माइकल ने वीडियो टेक्स के ज़रिए दो तरफ़ा सन्देश भेजना शुरू किया जो उस समय व्यापार में क्रांतिकारी कदम था।
पहला ऑनलाइन ट्रांसैक्शन
दुनिया में पहली बार था जब कोई व्यापर में बिजनेस टू बिजनेस के बारे में विचार कर रहा था। साल 1981 में थॉमसन ने वीडोटेक्स के ज़रिए ही पहला ऑनलाइन ट्रांसैक्शन किया। 1982 में मिन्टेल नाम की सर्विस आई जो वीडियो टेक्स सुविधा फ़ोन पर देती थी जैसे ट्रैन बुकिंग या स्टॉक रेट चेक करना। WWW के आने से पूर्व मिन्टेल सबसे मशहूर और कामयाब सर्विस थी। 1984 में टेस्को स्टोर में पहली बार किसी ग्राहक ने ऑनलाइन पेमेंट किया। 1985 में निसान ने पहली बार क्रेडिट पेमेंट की सुविधा उपलब्ध कराई ।
1991 में इंटरनेट का बाज़ारीकरण
1987 में SWREG की स्थापना हुई। यहां दुकानदार अपना सामान ऑनलाइन बेच सकते थे। अब यह पेमेंट गेटवे है। 1989 में Peapod.com आया जो अमेरिका में घरेलु सामान का पहला ऑनलाइन स्टोर था। 1990 में टिम बेर्नेर्स-ली ने WWW सर्वर की खोज की । 1991 में इंटरनेट का बाज़ारीकरण हुआ और ऑनलाइन के माध्यम से पेमंट और खरीदारी की सुविधा को ई-कॉमर्स का नाम दिया। 1994 में पहला बिजनेस ब्राउजर नेटस्केप ने लंच किया जो कुछ वक्त के लिए बाजार में रहा लेकिन ज्यादा दिन नहीं चल सका।
ई -कॉमर्स में बड़ा बदलाव
1995 ई -कॉमर्स में की दुनिया में बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ चुकी थी। इसी वर्ष अमेजन ने पुस्तकों को ऑनलाइन के माध्यम से बेचना शुरू किया और डेल और सिस्को ने बेचने और ट्रांसैक्शन के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल प्रारम्भ किया। 1997 में तुलना करने वाली वेब्साइट्स का आगमन हुआ और इंटरनेट पर छा गया। 1998 में पेपैल ने ऑनलाइन बाजार में प्रवेश किया । ये कुछ – कुछ आज पेटीएम् के आने जैसा है। 1999 में ज़ापोस नाम की ऑनलाइन स्टोर खुला जिसे अमेज़न ने 1.2 बिलियन डॉलर में खरीद लिया।
ई -कॉमर्स का भारत में पहला कदम
1999 में ही भारत में रेडिफ.कॉम ऑनलाइन शॉपिंग शुरु कर ई -कॉमर्स के लिए कदम रखा । 2000 में इंडियाटाइम्स और बाजी.कॉम ने यही सेवा शुरु की और बाजी को अमेरिकी कंपनी ई-बे ने खरीद लिया। भारत में ई कॉमर्स 2002 में IRCTC के साथ शुरू हुआ जिसे अपार सफलता मिली इसे देखते हुए 2003 में एयर इंडिया और एयर दक्कन ने ऑनलाइन टिकट बेचने शुरू किए।2003 में अमेरिका में ऑनलाइन शॉपिंग 50 बिलियन डॉलर की हो गई और इसी साल अमेज़न को 35 मिलियन डॉलर का फ़ायदा हुआ। 2005 में ई कॉमर्स सोशल कॉमर्स में तब्दील हो गया। इसी साल मेक माई ट्रिप ने फ्लाइट टिकट ऑनलाइन बेचने शुरू किए और सोशल मीडिया पर हॉलिडे पैकेज प्रोमोट किए। 2006 में यात्रा.कॉम ने भी फ्लाइट टिकट सेवा शुरू की और क्रेडिट कार्ड पेमेंट ऑप्शन देने की भारतीय झिझक से दूर हटी। 2007 तक भारत में ई कॉमर्स का चलन धीरे – धीरे रफ़्तार पकड़ चुका था।
भारत में खरीदारी के लिए पसंद बनने लगी ई कॉमर्स
फ्लिपकार्ट और बुक माय शो ने इसी साल ऑनलाइन बाजार में कदम रखा। अमेज़न ने अमेज़न इंडिया के नाम से भारतीय बाजार में 2013 में कदम रखा. इसी बीच पेटीएम ने आकर और बैंकिग को भी इ-कॉमर्स से जोड़ दिया। 2007 से 2013 के बीच बहुत सी ई -कॉमर्स वेबसाइट आई और गई।