E-Commerce: चीन के बाद भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। भारत में ई-कॉमर्स बाजार उसी वर्ष तक 325 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें डिजिटल अर्थव्यवस्था 800 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाएगी।
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सूत्रों की माने तो, 881 मिलियन उपयोगकर्ताओं के साथ, भारत दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता-आधार है, और 2030 तक तीसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन खुदरा बाजार बनने के लिए तैयार है। भारत 2030 तक वैश्विक E-Commerce पावरहाउस बनने की राह पर है, जो एक उभरती हुई डिजिटल अर्थव्यवस्था और तेजी से बढ़ते इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार द्वारा संचालित है।
भविष्य के परिदृश्य में भारत को ऑनलाइन शॉपिंग में अग्रणी स्थान प्राप्त होता हुआ दिखाया गया है, जहाँ 2030 तक अनुमानित 500 मिलियन खरीदार होंगे। वर्तमान में, भारत का E-Commerce क्षेत्र 70 बिलियन अमरीकी डॉलर के बाजार आकार पर है, जो देश के कुल खुदरा बाजार का लगभग 7 प्रतिशत है। इंटरनेट की पहुँच में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, 2022 तक भारत की 52 प्रतिशत आबादी, यानी लगभग 759 मिलियन लोग, इंटरनेट का उपयोग करेंगे।
भारत के E-Commerce बूम में कई कारक योगदान करते हैं। इसका एक मुख्य कारण इंटरनेट की बढ़ती पहुंच है, जिसके अनुसार 2025 तक लगभग 87 फीसदी भारतीय घरों में इंटरनेट कनेक्शन होने की उम्मीद है। बता दें, मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट एक्सेस की अवधि में 2019 की तुलना में 21 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।
भारत में ऑनलाइन शॉपर्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है, 2019 और 2026 के बीच ग्रामीण भारत में 22 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ यह 88 मिलियन हो जाएगी और शहरी भारत में 15 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 263 मिलियन हो जाएगी। डेटा की कीमतों में भारत की सामर्थ्य भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसमें एक गीगाबाइट डेटा की कीमत लगभग 0.17 अमेरिकी डॉलर (13.5 रुपये) है, जो अधिकांश आबादी को ऑनलाइन लाती है।
स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि, जो 2026 तक 1.18 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, प्रति उपयोगकर्ता औसत डेटा खपत में वृद्धि के साथ मिलकर डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाती है। 2018 से 2023 तक मोबाइल डेटा ट्रैफ़िक तीन गुना बढ़ गया है, जो विभिन्न ज़रूरतों के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) डिजिटल भुगतान में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरा है, जो 2022 में 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के लेन-देन के लिए ज़िम्मेदार है। 2026 तक, भारत की 81 फीसदी आबादी के पास स्मार्टफ़ोन तक पहुँच होने की उम्मीद है। वहीं स्थानीय भाषा और मोबाइल-फ़र्स्ट कंटेंट की उपलब्धता में उछाल देखा गया है, भारत के लगभग 73 फीसदी इंटरनेट ग्राहक भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं। इससे अनुमानित क्षेत्रीय भाषा आधार 540 मिलियन हो गया है, जो 53 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बाज़ार आकार प्रदान करता है।
UPI, eKYC और आधार जैसे डिजिटल बुनियादी ढाँचे ने उपभोक्ताओं को जोड़ने में लगने वाले समय को 80 फीसदी तक कम कर दिया है, जिससे डिजिटल अनुभव और भी बेहतर हो गया है। ग्रामीण आधारित मूल्य E-Commerce की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है, जिसमें 2026 तक 60 प्रतिशत से अधिक मांग टियर 2-4 शहरों और ग्रामीण भारत द्वारा संचालित होने की उम्मीद है।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसी सरकारी पहल का उद्देश्य दूरदराज के इलाकों में डिलीवरी को आसान बनाना है, जिससे लॉजिस्टिक्स कुशल और लागत प्रभावी बन सके। हाइपरलोकल मोबिलिटी में, भारत का त्वरित वाणिज्य बाजार 2025 तक 5.5 बिलियन अमरीकी डॉलर के बाजार आकार तक पहुँचने की उम्मीद है। स्विगी और ज़ोमैटो जैसी कंपनियाँ कार-पूलिंग और E-Scooter किराए पर लेने जैसे नए माइक्रोसेगमेंट पेश करके बाजार का नेतृत्व कर रही हैं। स्वास्थ्य तकनीक में, निवारक स्वास्थ्य सेवा 2025 तक दोगुनी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे महत्वपूर्ण रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
E-Commerce क्षेत्र में प्रमुख विलय और अधिग्रहण उल्लेखनीय रहे हैं, जिसमें Zomato और PhonePE जैसी कंपनियाँ अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए रणनीतिक कदम उठा रही हैं। जन धन योजना, भारतनेट परियोजना और वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसी सरकारी पहलों ने भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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