असम में बदली गई 1,281 मदरसों की पहचान, विवाद के बीच चर्चा में बना अनुच्छेद 25, 29 और 30

असम में बदली गई 1,281 मदरसों की पहचान, विवाद के बीच चर्चा में बना अनुच्छेद 25, 29 और 30
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असम में 2022 से सरकारी फंड से चलने वाले मदरसो को बंद करने की बात चल रही थी, जिसे असम की सरकार ने अब लागू कर दिया है और 1281 मदरसों को बंद कर उनका नाम भी बदल दिया है। अब इन मदरसों को एमई स्कूल यानी मिडिल इंग्लिश स्कूल कर दिया गया है। असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा पहले ही कई बार दोहरा चुके हैं कि सरकार सरकार धार्मिक शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकती है।

बता दें, हेमंत बिस्वा सरमा ने 2020 के मार्च महीने में कर्नाटक के बेलगावी में बीजेपी की विजय संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए कहा था कि मैंने 600 मदरसों को बंद कर दिया है, लेकिन मेरा इरादा सभी मदरसो को बंद करने का है। क्योंकि हमें मदरसों की जरूरत नहीं है। हमें डॉक्टर इंजीनियर बनाने के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की जरूरत है। इसी के साथ अप्रैल 2021 में, मदरसा बोर्ड के तहत सभी 610 संचालित मदरसों को उच्च प्राथमिक, उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बदलाव कर दिया गया था, जिसमें शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की स्थिति, वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं हुआ था।

प्राथमिक शिक्षा निदेशक सुरंजना सेनापति ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि इन लगभग 1,300 मदरसा एमई स्कूलों में रेगलुर क्लासेस चल रही थीं और सरकारी निर्देश के अनुसार केवल उनका नामकरण "थोड़ा बदला" गया है। उन्होंने कहा, "मदरसों में छात्र, शिक्षक और अन्य कर्मचारी हैं। इन वर्षों में कक्षाएं चल रही थीं और ये बिना किसी बदलाव के जारी रहेंगी"।

अब असम के प्रारंभिक शिक्षा कार्यालय ने बुधवार को एक आदेश जारी कर सरकारी सहायता से 21 जिलों में चल रहे 1,281 मदरसों की पहचान बदल तत्काल प्रभाव से सामान्य स्कूलों में बदलने का निर्देश दिया गया है। बता दें, ये मदरसे ज्यादातर निचले असम क्षेत्र और बराक घाटी जिलों में चल रहे थे। धुबरी जिले में सबसे अधिक 269 एमई मदरसों का नाम बदला गया है। इसके अलावा नागांव में 165, बारपेटा जिले में 158, गोलपारा में कुल 99 और हैलाकांडी में 87 ऐसे मदरसों का नाम बदलकर एमई स्कूल कर दिया गया है।इससे पहले 2021 में भी 610 मदरसों को हाई और मिडिल स्कूलों में बदल दिया गया था। मदरसों के स्टेटस में बदलाव तो असम में हुआ है मगर अब यह राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।

क्या है मदसरों का विवाद?

असम में पिछले साल यानी 2022 में चार मदरसों को राष्ट्र विरोधी और जिहादी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के आरोप में बुलडोजर से ढहा दिया था। वहीं, इन मदरसों के संबंध आतंकवादी संगठनों से होने की जानकारी सामने आने के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने आतंकवादी गतिविधियों को पनाह देने वाले ऐसे मदरसों के खिलाफ कार्रवाई और तमाम मदरसों के नियमन की बात कही थी। वहीं इस साल शुरुआत यानी फरवरी में असम पुलिस महानिदेशक ने प्राइवेट मदरसे चलाने वाले लोगों के साथ बैठक की थी। जिसमें मदरसों के लिए कुछ नियम तय किए गए थे। ये नियम कुछ इस प्रकार थे

• 5 किलोमीटर के दायरे में सिर्फ एक ही मदरसा होगा।
• जिन मदरसों में 50 से कम छात्र हैं वो उनके पास के किसी बड़े मदरसे में खुद को शामिल कर लेंगे।
• मदरसों को वहां पढ़ने वाले छात्रों, उनके अभिभावकों, हेड मास्टर समेत सभी शिक्षकों की पूरी जानकारी समय-समय पर सरकार को देनी होगी।

मालूम हो, मदरसो में होने वाली पढ़ाई को लेकर पहले भी कुछ विवाद भी सामने आते रहे हैं। कट्टरपंथी हिंदू संगठन ये आरोप लगाते आए हैं कि दूरदराज के इलाकों में नियमित स्कूल नहीं है वहां के कुछ मदरसो में कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई होती है।

1995 में मदरसों का सरकारीकरण

असम में मदरसे के इतिहास पर नजर डालें तो यहां दो तरह के मदरसे चलाए जा रहे थे पहले सरकारी मान्यता प्राप्त जिन्हें सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसों से संचालित किया जा रहा था और दूसरे खैराती यानी जिन्हें निजी संगठनों द्वारा चलाया जा रहा था।

असम के शिक्षा पाठ्यक्रम में मदरसा की शिक्षा को 1934 में शामिल किया गया था और उसी साल राज्य मदरसा बोर्ड का भी गठन हुआ था। राज्य में मदरसों का सरकारीकरण साल 1995 में हुआ था। इन सरकारी अनुदान वाले मदरसो को प्री-सीनियर, सीनियर और टाइटल मदरसे में बांटा गया था। जिसमें प्री-सीनियर मदरसो में छठी से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाई जाती थी।

सीनियर मदरसो में क्लास आठवीं से बारहवीं तक की पढ़ाई करवाई जाती थी और टाईटल मदरसों में स्नातक से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई होती थी। इनके अलावा असम में चार अरबी कॉलेज भी थे जिनमें कक्षा 6 से स्नाकोत्तर तक की पढ़ाई हो रही थी। लेकिन असम सरकार ने साल 2020 में निरस्तीकरण अधिनियम लागू कर दिया, जिससे सभी मदरसो और अरबी कॉलेज प्रभावित हुए। इसके बाद 12 फरवरी 2021 में एक अधिसूचना जारी कर राज्य मदरसा बोर्ड को भंग कर दिया गया।

मालूम हो, मदरसों के नाम बदलने का आदेश सिर्फ सरकारी मदरसों पर उठाया गया है जबकि प्राइवेट मदरसे अब भी चलते रहेंगे। राज्य में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद स्वामी का कहना है कि मजहबी शिक्षा सरकारी अनुदान से नहीं दी जा सकती। इसीलिए सरकारी मदरसों को असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत स्कूल में तब्दील कर दिया गया है।

उनका कहना है कि हमारा मकसद मुसलमान बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराना है। ताकि आगे चलकर उनका भविष्य दूसरे बच्चों की तरह डॉक्टर, इंजीनियर बनकर देश की सेवा करेना हो। सरकार ने यह फैसला अल्पसंख्यक बच्चों के हित में लिया है। गौरतलब है कि हर साल सरकार द्वारा इन मदरसो पर लगभग तीन से चार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे थे।

क्या कहता है अनुच्छेद 25, 29 और 30?

बता दें, असम में सरकारी मदरसो को बंद करने को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। वहीं, गुवाहाटी हाई कोर्ट में रिट याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी करने वाले वकील एआर भुइयां ने एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए बताया कि जिन मदरसों को स्कूल में बदला गया है वो पूरी तरह से मदरसे नहीं थे। इन मदरसों में अरबी पाठ्यक्रम के साथ हाई स्कूल में पाए जाने वाले सभी विषयों की पढ़ाई होती है। लेकिन सरकार का कहना है कि सरकारी पैसे से धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। इसी वजह से इन मदरसों को सामान्य स्कूलों में तब्दील कर दिया गया। उन्होंने आगे कहा, लेकिन भारत के संविधान ने खासतौर पर अनुच्छेद 25, 29 और 30 के तहत जो अधिकार दिए गए हैं सरकार उसका हनन कर रही है।

भारतीय अनुसंधान के अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार, लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा। इसके अलावा अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की गारंटी देता है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार शामिल है। वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकार की गारंटी देता है।

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