चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बहुत तगड़ा झटका दे दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी देने के लिए कहा है। अब निर्वाचन को यह जानकारी देनी होगी कि बीत चुके 5 साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा प्रदान किया है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से पूरी जानकारी लेकर इसे अपनी वेबसाइट पर शेयर करें। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने गुरुवार को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जिसमें चुनावी बांड योजना असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया गया है। पीठ केंद्र सरकार की चुनावी बांड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला दे रही थी, जो राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देती है। फैसले की शुरुआत में CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि दो राय हैं, एक उनकी और दूसरी जस्टिस संजीव खन्ना की और दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।
पीठ ने कहा कि याचिकाओं में दो मुख्य मुद्दे उठाए गए हैं, क्या संशोधन अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का उल्लंघन किया है। CJI ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है। अदालत ने माना कि कंपनी अधिनियम में कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक योगदान की अनुमति देने वाला संशोधन मनमाना और असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। SC ने बैंकों को आदेश दिया कि वे चुनावी बांड जारी करना तुरंत बंद कर दें और भारतीय स्टेट बैंक को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बांड का विवरण प्रस्तुत करना होगा। अदालत ने कहा कि SBI को भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत करना चाहिए और ECI इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह योजना, जिसे सरकार द्वारा 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था, को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या राज्य विधान सभा चुनावों में डाले गए वोटों का कम से कम 1 प्रतिशत वोट मिले हों। विधानसभा चुनावी बांड प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजनीतिक दलों को electoral bonds की अनुमति देने वाली चुनावी बांड योजना को रद्द करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक को तुरंत चुनावी बांड जारी करना बंद करने का आदेश दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बांड योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को रद्द कर दिया। इसने एसबीआई को 12 अप्रैल, 2019 से चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण और प्राप्त सभी विवरण 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग को सौंपने के लिए कहा। एसबीआई जो विवरण प्रस्तुत करेगा, उसमें राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड के विवरण का खुलासा होगा, जिसमें नकदीकरण की तारीख और चुनावी बांड का मूल्य शामिल होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि 13 मार्च तक ECI अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर चुनावी बांड का विवरण प्रकाशित करेगा।
चुनावी बांड एक वचन पत्र या धारक बांड की प्रकृति का एक उपकरण है जिसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या व्यक्तियों के संघ द्वारा खरीदा जा सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति या निकाय भारत का नागरिक हो या भारत में निगमित या स्थापित हो। बांड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के उद्देश्य से जारी किए जाते हैं। केंद्र ने एक हलफनामे में कहा था कि चुनावी बांड योजना की पद्धति राजनीतिक फंडिंग का पूरी तरह से पारदर्शी तरीका है और काला धन या बेहिसाब धन प्राप्त करना असंभव है। वित्त अधिनियम 2017 और वित्त अधिनियम 2016 के माध्यम से विभिन्न क़ानूनों में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएँ शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित थीं, इस आधार पर कि उन्होंने राजनीतिक दलों के लिए असीमित, अनियंत्रित फंडिंग के द्वार खोल दिए हैं। चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है।
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