चौदह वर्ष के वनवास के उपरान्त, अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। इसी क्रम में उनके सहयोगियों को सम्मानित भी किया जा रहा था। सभी ने कुछ न कुछ प्राप्त किया लेकिन जब श्री हनुमानजी को अवसर मिला तो उन्होंने अपने स्वामी की भक्ति मांगी। श्रीराम के प्रति उनके वात्सल्य से सीता सुपरिचित थीं। वे भली प्रकार से यह जानती होंगी कि श्री हनुमान आदि देव रूद्र के अंशावतार हैं और देवताओं की कार्य सिद्धि के लिए अवतरित हुए हैं। श्रीराम के प्रति असीम प्रेम को जानकर उन्होंने श्रीहनुमान को इस पृथ्वी पर तब तक जीवित रहने का अमोघ वरदान प्रदान किया जब तक की श्रीराम की कीर्ति शेष रहेगी। माता सीता साधारण स्त्री नहीं थी। वे तो सीता के रूप में साक्षात शक्तिस्वरूपा थीं। इसलिए वे अजन्मी थीं। उनका आदुर्भाव भूमि से हुआ और अन्ततः वे भूमि में ही चली गईं। लेकिन उनके वरदान के कारण श्रीहनुमानजी आज भी अपने भक्तों के कष्टों को हरते हैं। यदि समय की बात की जाए तो यह नितान्त सत्य है कि मात्र चार माह के अल्प समय में ही श्रीहनुमान का चमत्कार साक्षात्कार किया जा सकता है। खास बात यह भी है कि इसके लिए आपको किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता भी नहीं है। श्रीहनुमान से तारतम्य बैठाना और अपनी जीवनशैली में कुछ परिवर्तन करना, बस! श्रीहनुमान की कृपा प्राप्ति के लिए इतना ही पर्याप्त हैं।
श्रीहनुमान के अवतरित होने के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं। आधुनिक युग में भी एक विक्रम संवत् वर्ष में श्रीहनुमानजी की दो जयन्तियां मनाई जाती हैं। हालांकि भक्त लोग इन गणितीय प्रपंच से दूर रह कर दोनों ही जयन्तियां पूरे उत्साह से मनाते हैं। वायु पुराण के अनुसार श्रीहनुमानजी का जन्म आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि को स्वाति नक्षत्र में हुआ। इस दिन मंगलवार था। आपका जन्म मेष लग्न में हुआ। वर्तमान ज्योतिषियों ने पौराणिक मत से गणना करके श्रीहनुमान का जन्म 3 सितम्बर 5139 ईसापूर्व गोधुली बेला में होना माना है। श्रीहनुमानजी के अवतरण की अनेकों कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। इनमें वाल्मिकी रामायण, स्कन्द पुराण, शिवपुराण प्रमुख हैं। हालांकि कथाओं में कुछ भिन्नताएं हैं। तथापि सभी जगहों पर उनकी माता अंजनी देवी, पिता केसरी और अवतार रूद्र का माना है।
श्रीहनुमानजी का बाल्यकाल बहुत नाटकीय रहा। वे विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की तरह बहुत चंचल थे। एक समय जब सूर्योदय हो रहा था, बालक हनुमान ने सूर्य को पर्वत मालाओं के मध्य किसी लाल फल की भांति समझा। वे उसे प्राप्त करने के लिए उड़े। दुर्भाग्य से उस दिन अमावस्या तिथि थी और कुछ ही क्षणों में सूर्य ग्रहण होने को था। राहु के द्वारा सूर्य का ग्रहण तय था। बालक हनुमान ने राहु को फल प्राप्त करने में अपना प्रतिद्वंद्वी समझ कर उसे अपनी बाहों में जकड़ कर ऐसा दबाया कि राहु महाराज को अपने प्राणों की फ्रिक होने लगी। सूर्य ग्रहण की अपनी स्वभाविक गति को विस्मृत करके राहु महाराज किसी प्रकार से अपने प्राण बचा पाए।
राहु ने देवराज इन्द्र से इस संबंध में शिकायत की कि कोई बालक उसके धर्मपालन में बाधा उत्पन्न कर रहा है। देवराज इन्द्र आश्यर्च चकित रह गए। ऐसा कौन है जो राहु को उसके स्वभाविक कार्य को करने से रोक सके। वे अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर घटनास्थल पर पहुंचे। स्थिति की गंभीरता को भांप कर इन्द्र ने अपने वज्र का प्रहार बालक हनुमान पर किया। वज्र का प्रहार हनुमान की ठोडी पर हुआ और वे अचेत होकर भूमि पर गिरने लगे। पिता पवनदेव अपने मूर्छित पुत्र को हवा में ही थाम कर एक अंधेरी गुफा में प्रवेश कर गये।
पवनदेव के गुफा में प्रवेश करने से वायु की गति बन्द होने लगी। इससे पृथ्वी के सभी प्रणियों को सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हुआ। अन्ततः इन्द्र को अपनी भूल का अहसास हुआ। परन्तु वे विवश थे। समस्या के समाधान के लिए इन्द्रदेव मनुष्यों, गन्धर्वों, देवों और असुरों के प्रतिनिधियों के साथ ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हुए। उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया और सहयोग की अपेक्षा की। ब्रह्माजी सभी देवताओं और दूसरे लोगों के साथ गुफा के द्वार पर पहुंचे।
गुफा में पवनदेव अपने पुत्र हनुमान को गोद में उठाए आंसू बहा रहे थे। आदिदेव को देख कर उन्होंने तुरन्त दण्डवत् प्रणाम किया। आदिदेव ब्रह्माजी ने स्नेहपूर्वक हनुमान के मस्तक का स्पर्श किया। बालक हनुमान तुरन्त सचेत होकर बाल क्रीड़ा करने लगे। ब्रह्माजी ने कहा- हे कपिश्रेष्ठ! यह बालक साधारण नहीं है। कालांतर में यह देवताओ और मनुष्यों के अनेकों कार्यों में सहभागी बनेगा। अतः सभी देवताओं को इसे वरदान देना चाहिए। ब्रह्माजी की सलाह के अनुसार सभी ने बालक हनुमान को वरदान प्रदान किये। स्वयं ब्रह्माजी ने उन्हें ब्रह्मशाप नहीं लगने का वर दिया। इन्द्रदेव ने अपने व्रज को हनुमान पर हमेशा के लिए निष्प्रभावी कर दिया। यमराज ने ताउम्र हनुमान को बल, स्वास्थ्य और दीर्घ आयु प्रदान की।
सूर्यदेव ने बालक हनुमान को अपना शिष्य स्वीकार किया और समय आने पर शिक्षा देने का वचन दिया। भगवान शंकर ने स्वयं और अपने अधीन योद्धाओं से अपराजित रहने का वर दिया। भगवान श्री विश्वकर्माजी ने कहा कि उनके द्वारा बनाए अस्त्र-शस्त्र हनुमानजी पर प्रभावी नहीं होेंगे। इसी प्रकार से सभी देवताओं ने अपने-अपने सामर्थ्य अनुसार वर प्रदान किये। इस प्रकार वरदानों की अनेकों आलौकिक शक्तियों से संपन्न बालक हनुमान अद्भुत और रोमांचकारी कार्य करने के लिए तैयार हो चुके थे।
कालातंर में बालक हनुमान अपनी असीम शक्तियों के बल पर और ज्यादा शैतानी पर उतर आये। कुछ ऋषियों ने रोज-रोज की परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए बालक हनुमान को अपनी शक्तियों को भूल जाने का श्राप दे दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि समय आने पर कोई इनके असीम बल के बारे में स्मरण करायेगा तो ही इनको अपने बल के बारे में जानकारी होगी। इस घटना के बाद बालक हनुमान सरल और सौम्य स्वभाव के हो गये। जब सीतामाता की खोज के लिए लंका को लाघंने की बात आई तो जाम्बवत ने हनुमानजी को उनके बल के बारे में परिचय कराया। जाम्बवत श्राप की घटना से पूर्व परिचित थे। उस दिन हनुमान पुनः शक्तिसंपन्न हुए। और अपने इष्ट श्रीराम के निर्देशन में देवों और मनुष्यों के अनेक कार्य सिद्ध किये। श्रीहनुमान सेवाभावी, भक्त, परमशक्तिशाली और ब्रह्मविद्या के ज्ञाता हैं। इनको सभी देवताओं का आशीर्वाद और वर तो प्राप्त है ही, साथ ही देवी सीता ने हनुमान जी को अजर-अमर होने का वरदान भी दिया था।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह चालीस चौपाइयों की हनुमत प्रार्थना है। तुलसीदासजी रचित ये चालीस चौपाई बहुत ही सरल और आमजन की भाषा में हैं। आम धारणा है कि तुलसीदासजी और श्रीहनुमान के मध्य साक्षात्कार हुआ था। यह सब रामचरितमानस की रचना से पूर्व की बात है। यह भी संभव है कि तुलसीदासजी ने रामचरितमानस की रचना श्रीहनुमान के निर्देश पर ही की हो। हनुमान चालीसा का पठन और मनन न केवल सहज है बल्कि इसमें एक लय भी दिखाई देती है। जो आराध्य में ध्यान को बनाए रखने में मदद करती है।
हनुमान चालीसा की चौपाइयों में रामायण की उन कुछेक घटनाओं का चित्रण है जो कि हनुमानजी से सम्बन्धित है, जैसे –
इन कुछ चौपाइयों के अतिरिक्त शेष में हनुमानजी का संक्षिप्त जीवन परिचय और स्तुति है। हनुमान चालीसा का सरल और प्रभावी होना ही इसकी लोकप्रियता का कारण है। बहुत से गृहस्थ साधक मात्र हनुमान चालीसा के पाठ से अनेक सिद्धियां प्राप्त करते रहे हैं। इसमें कोई शंका नहीं है कि यह एक तांत्रिक प्रयोग भी है और बहुत ही चमत्कारी है।
जो लोग व्यस्त रहते हैं और पूजा-पाठ में पूरा समय नहीं दे पाते हैं उन्हें प्रातः नित्यकर्मों से निवृत्त होकर हनुमान चालीसा का एक या पांच पाठ अवश्य संपन्न करने चाहिए। इसमें मात्र दो मिनिट का समय लगता है और बदले में चौबिसों घंटे श्रीहनुमानजी की कृपा बनी रहती है। श्रीहनुमान उपासना के दूसरे भी अनेक प्रयोग हैं। साधारणतया बजरंगबाण, संकटमोचक और हनुमान अष्टक प्रसिद्ध हैं। लेकिन आप कैसे भी उपासना करें हमेशा कुछ बातों को ध्यान में रखें कि श्रीहनुमान बहुत ही सात्विक देव हैं। इसलिए इनसे तारतम्य यदि आपको बैठाना है तो न केवल शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखना होगा बल्कि मानसिक शुद्धता भी बहुत जरूरी है। हनुमानजी सभी सिद्धियों के दाता हैं। यदि कुछ बातों का ध्यान रखकर श्रीपवनपुत्र की आराधना की जाए तो शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है।
राम वनवास के उपरान्त जब भगवान श्रीराम अयोध्या पर शासन कर रहे थे, तब की बात है। एक दिन श्रीहनुमानजी ने देखा कि माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थीं, श्रीहनुमान ने बहुत आश्चर्य से माता से प्रश्न किया कि सिंदूर लगाने का क्या औचित्य है। सीता माता ने प्रसन्नता से उत्तर दिया कि इससे भगवान राम की आयु में वृद्धि होती है। दूसरे ही दिन सभी सभासद आश्चर्यचकित थे कि श्रीहनुमान ने अपने पूरे शरीर पर ही सिंदूर का लेप कर रखा है। इस संबंध में श्रीहनुमान का कहना था कि माता सीता के चुटकी भर सिंदूर लगाने से ही श्रीराम की आयु वृद्धि होती है तो उन्होंने अपने पूरे शरीर पर ही सिंदूर का लेप कर लिया है जिससे उनके आराध्य श्रीराम की आयु सैकड़ों-हजारों वर्षों हो जायेगी। सभी सभासद श्रीहनुमान के निश्छल प्रेम के आगे नतमस्तक हो गए।
इस दृष्टान्त के माध्यम से मैं श्रीहनुमान के भक्तों को यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि श्रीहनुमान की किसी भी प्रकार से उपसना से पूर्व या उपरान्त श्रीराम की स्तुति की जानी आवश्यक है। क्योंकि श्रीहनुमान को वे भक्त बहुत प्रिय हैं जो श्रीराम की स्तुति करते हैं। इसलिए विद्वानों का मत है कि जो श्रीराम की उपासना करते हैं, उन पर श्रीहनुमानजी की कृपा सहज ही बनी रहती है। इस बात में कोई संशय नहीं है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
WhatsApp – 6375962521